प्रश्न की मुख्य माँग
- सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए रक्षा समझौते के कारण उत्पन्न परिस्थितियाँ।
- यह समझौता भारत और उसके क्षेत्रीय हितों के लिए रणनीतिक चिंताएँ उत्पन्न करता है।
- यह समझौता भारत और उसके क्षेत्रीय हितों के लिए सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करता है।
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उत्तर
सितंबर 2025 का सऊदी अरब–पाकिस्तान सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौता (SMDA), अमेरिकी विश्वसनीयता में कमी और क्षेत्रीय अस्थिरता (जिसमें दोहा पर इजरायली हमला शामिल है) के बीच रियाद की वैकल्पिक सुरक्षा साझेदारों की खोज को दर्शाता है। वहीं पाकिस्तान वित्तीय और सामरिक लाभ चाहता है, परंतु यह समझौता भारत के खाड़ी हितों के लिए गंभीर सामरिक तथा सुरक्षा चिंताएँ उत्पन्न करता है।
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हालिया रक्षा समझौते की परिस्थितियाँ
- ऐतिहासिक रक्षा सहयोग: सऊदी–पाकिस्तान रक्षा संबंध वर्ष 1951 से हैं, जो वर्ष 1979–89 के दौरान चरम पर पहुँचे, जब 20,000 पाकिस्तानी सैनिक सऊदी अरब में तैनात थे।
- उदाहरण: पाकिस्तान ने पवित्र हरमों की रक्षा की और ईरान व यमन के विरुद्ध सुरक्षा कवच का कार्य किया।
- अमेरिकी मध्यस्थता और सहभागिता: पेंटागन की भूमिका उनके सहयोग में केंद्रीय रही है। हालिया घटनाएँ बताती हैं कि इस समझौते को आकार देने में अमेरिका का प्रोत्साहन रहा है।
- इजराइल की कार्रवाई के बाद सऊदी असुरक्षा: दोहा में हमास के कार्यालय पर इजरायली वायु हमले ने GCC देशों के लिए अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर संदेह उत्पन्न किया।
- उदाहरण: कतर की सुरक्षा में अमेरिकी विफलता ने रियाद को सुरक्षा साझेदारों को विविधीकृत करने की ओर अग्रसर किया।
- ईरान से खतरों का संतुलन आवश्यक: सऊदी अरब को ईरान और उसके प्रॉक्सी से दीर्घकालिक खतरे हैं, जिसने उसे एक मुस्लिम-बहुल परमाणु राष्ट्र पाकिस्तान पर निर्भर होने को मजबूर किया।
भारत और उसके क्षेत्रीय हितों के लिए इस समझौते से उत्पन्न सामरिक चिंताएँ
- खाड़ी में पाकिस्तान का प्रभाव: समझौता पाकिस्तान को सऊदी रक्षा नीतियों पर रणनीतिक प्रभाव दे सकता है, जिससे भारत की कूटनीतिक उपलब्धियाँ कमजोर होंगी।
- चीन कारक: पाकिस्तान–सऊदी निकटता से चीन का प्रभाव इस समझौते के माध्यम से पश्चिम एशिया तक फैल सकता है।
- सऊदी निवेश का विचलन: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सऊदी वित्तीय प्रतिबद्धताएँ भारत में वादित 100 अरब डॉलर निवेश से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
- क्षेत्रीय संतुलन चुनौतियाँ: समझौता सऊदी अरब को पाकिस्तान और भारत के बीच संतुलन साधने का अवसर देता है, किंतु पाकिस्तान इसे कूटनीतिक लाभ के लिए प्रयोग कर सकता है।
- संभावित परमाणु आयाम: पाकिस्तान का परमाणु दर्जा इस समझौते में परमाणु सुरक्षा आयाम जुड़ने की आशंका उत्पन्न करता है।
भारत और उसके क्षेत्रीय हितों के लिए इस समझौते से उत्पन्न सुरक्षा चिंताएँ
- पाकिस्तान की सैन्य क्षमता में वृद्धि: समझौते से पाकिस्तान को सऊदी और अमेरिकी उन्नत उपकरणों पर प्रशिक्षण का अवसर मिल सकता है, जिससे उसकी क्षमताएँ बढ़ेंगी।
- उदाहरण: इस्लामाबाद, सऊदी असुरक्षा का लाभ उठाकर रक्षा उपकरण और परिचालन अनुभव प्राप्त करना चाहता है, जो भारत के सुरक्षा संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
- पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा: सऊदी सहायता, तेल आपूर्ति और वित्तीय सहायता पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सँभाल सकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से उसकी सैन्य स्थिति को भारत के विरुद्ध बनाए रखेगी।
- उदाहरण: इस्लामाबाद समझौते के अंतर्गत “बड़े पैमाने पर सऊदी फंड” की अपेक्षा करता है, जो उसे भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता को और अधिक मजबूत करेगा।
- भारत-विरोधी रुख को परोक्ष समर्थन: पाकिस्तान की सामरिक कमजोरियों को भरपाई कर यह समझौता उसकी सैन्य व्यवस्था को भारत विरोधी रुख में प्रोत्साहित कर सकता है।
- अस्थिरता का सीमा पार विस्तार: यदि पाकिस्तान ईरान या यमन के साथ संघर्षों में गहराई से शामिल होता है, तो इसका प्रभाव दक्षिण एशिया को परोक्ष रूप से अस्थिर कर सकता हैं।
- भारत की सतर्कता की आवश्यकता में वृद्धि: यह समझौता भारत की पश्चिम एशिया में समुद्री और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौता रियाद के नए सुरक्षा संरेखण की ओर झुकाव और इस्लामाबाद के वित्तीय एवं सामरिक लाभ की खोज को उजागर करता है। भारत के लिए यह समझौता सामरिक और सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करता है, जिससे रक्षा सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय कूटनीति को सुदृढ़ करना आवश्यक हो जाता है, ताकि खाड़ी में अपने महत्त्वपूर्ण हितों की रक्षा की जा सके और उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों का संतुलन किया जा सके।
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