उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण
- प्रस्तावना: एंटीबायोटिक प्रतिरोध की परिभाषा लिखें और भारतीय संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता भी बताएं।
- मुख्य विषयवस्तु:
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध की अवधारणा के बारे में लिखें, यह कैसे विकसित होती है और एक प्रासंगिक उदाहरण भी लिखें।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य पर एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रभावों की चर्चा करें।
- व्यापक समाधानों को लिखें एवं उनका उल्लेख करें।
- प्रासंगिक डेटा और उदाहरण अवश्य लिखें।
- निष्कर्ष: राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर त्वरित और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता को दोहराते हुए निष्कर्ष लिखें।
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प्रस्तावना:
एंटीबायोटिक प्रतिरोध, वैश्विक स्तर की एक ऐसी चुनौती है जिसने भारतीय स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य में भी प्रवेश कर लिया है। बैक्टीरिया जनित रोगों के उपचार में प्रयुक्त दवाओं के अत्यधिक सेवन से रोगजनक जीवाणुओं में विकसित होने वाली प्रतिरोध क्षमता को बैक्टीरियल रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहते हैं। इसके कारण बैक्टीरिया जनित संक्रमण के इलाज में प्रयुक्त दवाएँ कम प्रभावी या अप्रभावी हो जाती हैं तथा संक्रमण का इलाज करना कठिन या असंभव हो जाता है जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
मुख्य विषयवस्तु:
एंटीबायोटिक प्रतिरोध:
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध स्वाभाविक रूप से, धीरे-धीरे उत्पन्न होता है।
- फिर भी, चिकित्सा क्षेत्र और कृषि दोनों में एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध और अत्यधिक उपयोग ने इस प्रक्रिया को अत्यधिक तेज कर दिया है।
- यह प्रतिरोध तब उत्पन्न होता है जब बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक द्वारा उत्पन्न चयनात्मक दबाव के कारण आनुवंशिक उत्परिवर्तन होता है, या एक बैक्टीरिया किसी अन्य बैक्टीरिया से प्रतिरोध प्राप्त करता है।
- उदाहरण, मल्टीड्रग-प्रतिरोधी तपेदिक (एमडीआर-टीबी) का प्रसार।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 206,030 एमडीआर-टीबी मामलों में से लगभग 27% भारत में थे।
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- मृत्यु दर और रुग्णता में वृद्धि:
- एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमण से अक्सर दीर्घकालिक बीमारी और मृत्यु दर का उच्च जोखिम बना रहता हैं।
- एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध के कारण प्रतिवर्ष अनुमानित 58,000 से अधिक नवजातों की मौत नियोनेटल सेप्सिस से होती है।
- आर्थिक प्रभाव:
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण अस्पताल में मरीजों की संख्या में असमान वृद्धि हुई है जिसके परिणाम स्वरूप आर्थिक दबाव पड़ता है।
- अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर समीक्षा के अनुसार, एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण भारत को 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद में 11 ट्रिलियन डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर प्रभाव/दबाव:
- चूंकि भारत अपने स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में सुधार लाने और सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल को सुलभ बनाने पर काम कर रहा है, एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि अतिरिक्त और महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध का समाधान करने के उपाय:
एंटीबायोटिक प्रतिरोध के लिए एक व्यापक और समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, जिसमें मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और – ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण जैसे पर्यावरण के तत्व शामिल होते हैं:
- एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग:
- स्वास्थ्य देखभाल और कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को सुनिश्चित करके प्रतिरोध को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- एंटीबायोटिक दवाओं की ओवर-द-काउंटर(दुकानों पर) बिक्री को विनियमित करने वाली नीतियों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
- संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण:
- स्वच्छता, शीघ्र निदान और टीकाकरण का व्यापक उपयोग संक्रमण के प्रसार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकता है, जिससे एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
- अनुसंधान और विकास:
- सरकार को निजी क्षेत्र के सहयोग से नई एंटीबायोटिक दवाओं, त्वरित निदान परीक्षणों, टीकों और वैकल्पिक उपचार रणनीतियों के अनुसंधान में निवेश करना चाहिए।
- जन जागरण:
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध की सार्वजनिक समझ बढ़ाने के लिए अभियानों की आवश्यकता हैं।
- प्रमाणित स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा निर्धारित किए जाने पर ही एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने की सलाह को भी बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- समस्या की वैश्विक प्रकृति को देखते हुए, राष्ट्रों के लिए एकजुट होकर काम करना महत्वपूर्ण है। भारत की ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2017) WHO की वैश्विक कार्य योजना के अनुरूप, सही दिशा में कदम है।
निष्कर्ष:
एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक गंभीर मुद्दा है जो हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपलब्धियों को पीछे ले जाने और हमें एक ऐसे युग में वापस ले जाने का खतरा बन रहा है जहां मामूली संक्रमण घातक हो सकते हैं। यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर तीव्र, एकीकृत कार्रवाई का एक स्पष्ट आह्वान है। भारत में इस उभरते स्वास्थ्य संकट को टालने के लिए जिम्मेदार(तर्कसंगत) एंटीबायोटिक उपयोग, सार्वजनिक शिक्षा, अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है।
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