उत्तर:
प्रश्न का समाधान कैसे करें?
- भूमिका
- ‘आभासी जल ‘ की अवधारणा की व्याख्या से शुरू करें और एक उदाहरण दें।
- मुख्य भाग
- आभासी जल के प्रमुख घटक प्रदान करें।
- भारत की जटिल जल निकासी प्रणाली के अंतर्गत जल संसाधनों के रणनीतिक प्रबंधन में आभासी जल की प्रासंगिकता का वर्णन करें।
- निष्कर्ष
- आभासी जल की क्षमता का दोहन करने के लिए कुछ रणनीतियां बताएं और एक आशावादी नोट के साथ समापन करें।
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भूमिका
आभासी जल से तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले छिपे हुए जल से है, जिसका बाद में व्यापार या उपभोग किया जाता है। यह किसी वस्तु के संपूर्ण उत्पादन चक्र में शामिल जल की मात्रा को समाहित करता है, जिसमें फसल की खेती, विनिर्माण और परिवहन शामिल है। उदाहरण के लिए, कॉफी बीन्स की खेती और प्रसंस्करण में प्रयुक्त किया जाने वाला जल , बाद में निर्यात किया जाता है और दूसरे देश में उपयोग किया जाता है।
मुख्य भाग
आभासी जल के घटक:
- प्राथमिक उत्पादन जल: यह घटक कृषि उत्पादों, जैसे कि फसलों एवं पशुओं की खेती में उपयोग किए जाने वाले प्रत्यक्ष जल को संदर्भित करता है। इसमें पौधों को उगाने और पशुधन को पालने के लिए आवश्यक वर्षा जल और सिंचाई जल शामिल है। उदाहरण – भारत में, सिंचाई में कुल उपलब्ध जल का लगभग 84% भाग उपयोग होता है।
- द्वितीयक उत्पादन जल: इसे औद्योगिक जल के रूप में भी जाना जाता है , यह घटक उत्पाद के निर्माण एवं प्रसंस्करण में उपयोग किए जाने वाले जल को दर्शाता है। इसमें प्रसंस्करण, सफाई, शीतलन तथा अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक जल शामिल है । उदाहरण के लिए – औद्योगिक क्षेत्र कुल उपलब्ध जल का लगभग 12% उपयोग करता है।
- प्रसंस्करण तथा पैकेजिंग जल : इस घटक में प्रसंस्करण, पैकेजिंग तथा वितरण एवं उपभोग के लिए उत्पादों को तैयार करने में उपयोग किया जाने वाला जल शामिल है। इसमें सफाई, छंटाई, पैकेजिंग तथा लेबलिंग जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- परिवहन जल: उत्पादन स्थलों से बाज़ारों तक उत्पाद के परिवहन में अप्रत्यक्ष रूप से जल का उपयोग किया जाता है। इसमें ट्रक, जहाज, ट्रेन तथा विमान जैसे विभिन्न परिवहन साधनों में उपयोग होने वाला जल शामिल है।
- वितरण जल: यह घटक खुदरा दुकानों एवं उपभोक्ताओं को उत्पादों के वितरण में उपयोग किए जाने वाले जल को दर्शाता है। इसमें वेयरहाउसिंग, रेफ्रिजरेशन और खुदरा संचालन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- उपभोग जल: अंतिम घटक उस जल को दर्शाता है जो किसी उत्पाद का उपभोग या उपयोग करने में आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए,क्रय की गई सामग्री के बाद कॉफ़ी बनाने, कपड़े धोने, या खाना पकाने में उपयोग होने वाला जल।
भारत की जटिल जल निकासी प्रणाली के अंतर्गत जल संसाधनों के रणनीतिक प्रबंधन में आभासी जल की प्रासंगिकता:
- जल-कुशल व्यापार: चावल, कपास एवं चीनी जैसी फसलों में आभासी जल की मात्रा की जानकारी प्राप्त कर भारत रणनीतिक रूप से जल-गहन फसलों से कम जल की मांग वाली फसलों की ओर अग्रसर हो सकता है, जिससे जल का अधिकतम उपयोग हो सके। उदाहरण के लिए, पंजाब एवं हरियाणा, जो चावल के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं, चावल की कुछ खेती को दालों जैसी कम जल -गहन फसलों में परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे सतत कृषि को बढ़ावा मिलेगा।
- आयात और निर्यात निर्णय: आभासी जल जल-गहन आयात निर्णयों का मार्गदर्शन करता है। उच्च आभासी जल उपभोग घरेलू उत्पादन की तुलना में आयात का सुझाव देती है, जिससे जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों को राहत मिलती है। आभासी जल जागरूकता के कारण भारत का ब्राजील से सोयाबीन तेल आयात कुशल जल उपयोग का उदाहरण है।।
- उद्योग का वाटर फुटप्रिंट:उद्योग विनिर्माण की जल खपत से पर्याप्त आभासी वाटर फुटप्रिंट रखते हैं।। उत्पाद की आभासी जल सामग्री का मूल्यांकन नीति निर्माताओं को जल-कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देने एवं क्षेत्र-संगत उद्योगों को आकर्षित करने के लिए सशक्त बनाता है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के तिरुपुर कपड़ा क्षेत्र ने पर्यावरण के अनुकूल रंगाई को अपनाया, जिससे जल का उपयोग कम हुआ – यह सतत उद्योग में आभासी जल की भूमिका का प्रमाण है।
- अंतरराज्यीय जल बंटवारा: आभासी जल विश्लेषण से अंतरराज्यीय जल बंटवारे में मदद मिल सकती है। अधिशेष वाले राज्य उच्च आभासी जल सामग्री वाली फसलों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जबकि कमी वाले राज्य कम जल गहन फसलों को चुन सकते हैं, जिससे कुशल आवंटन को बढ़ावा मिलेगा और विवादों में कमी आएगी। कर्नाटक तथा तमिलनाडु के मध्य कावेरी विवाद न्यायसंगत आवंटन तथा फसल चयन में आभासी जल की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है।
- शहरीकरण एवं खाद्य मांग: शहरीकरण के बीच आभासी जल सामग्री शहरी नियोजन तथा कृषि नीतियों में सतत खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी है।शहरी बागवानी और कम आभासी जल सामग्री वाली सब्जियों की छत पर खेती खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में मदद कर सकती है। ऊर्ध्वाधर खेती, जिसमें पत्तेदार साग जैसी जल की कुशल फसलों की खेती शामिल है, शहरी संपोषणीयता प्राप्त करने में आभासी जल की भूमिका को प्रदर्शित करती है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः, ‘वर्चुअल वॉटर’ का प्रतिमान भारत के जल संसाधन प्रबंधन के लिए एक परिवर्तनकारी अवसर प्रदान करता है। स्मार्ट कृषि परिवर्तनों के माध्यम से इस अवधारणा का अभिनव रूप से उपयोग करके, वैश्विक व्यापार गतिशीलता का लाभ उठाकर, जल-कुशल उद्योगों को बढ़ावा देकर, सहयोगात्मक अंतरराज्यीय समझौतों को बढ़ावा देकर और शहरी कृषि पहलों को एकीकृत करके, भारत एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है जहाँ जल की कमी को कम किया जा सके, पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित किया जा सके तथा हमारी जटिल जल निकासी प्रणाली के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को साकार किया जा सके।
ExtraEdge:
- किसी उत्पाद में आभासी जल की मात्रा बहुत भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक किलोग्राम बीफ़ के उत्पादन में लगभग 1,000 लीटर जल का उपयोग होता है , लेकिन एक किलोग्राम गेहूँ के उत्पादन में केवल 250 लीटर जल लगता है।
- ग्राउंडवाटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट जर्नल में 2006-2016 की अवधि को कवर करते हुए प्रकाशित शोध के आधार पर, भारत सालाना लगभग 26,000 मिलियन लीटर वर्चुअल जल का निर्यात करता है। प्राथमिक निर्यात में चावल, भैंस का मांस और मक्का शामिल थे।
- 1990 से पहले न्यूनतम आभासी जल निर्यात की अपेक्षा भारत का आभासी जल निर्यात 1990 से 2018 के दौरान 32 बिलियन m3 तक पहुंच गया है।
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