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Q. राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना एक मंत्री को बर्खास्त करने के संवैधानिक निहितार्थों पर चर्चा करें साथ ही राज्यपाल की भूमिका और संघीय व्यवस्था पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन करें । अपने उत्तर के समर्थन में उदाहरण प्रदान करें।(250 शब्द, 15 अंक)

Answer:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका: अनुच्छेद 163 पर विशेष ध्यान देने के साथ उस संवैधानिक ढांचे पर प्रकाश डालिए जिसके तहत राज्यपाल कार्य करता है। साथ ही, राज्यपाल द्वारा तमिलनाडु में एक मंत्री को बर्खास्त करने के हालिया उदाहरण का भी उल्लेख कीजिये।
  • मुख्य भाग:
    • राज्यपाल की औपचारिक भूमिका और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने के उनके कर्तव्य पर जोर देते हुए, राज्यपाल की शक्तियों की संवैधानिक सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
    • विशिष्ट उदाहरण के रूप में तमिलनाडु में हाल ही में मंत्री की बर्खास्तगी और बहाली पर चर्चा कीजिये।
    • उन प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों और न्यायालय के फैसलों पर चर्चा करें जिन्होंने भारत की संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपालों की भूमिका को स्पष्ट किया है।
    • भारत के संघीय ढांचे पर पड़ने वाले प्रभाव पर जोर देते हुए राज्यपालों के ऐसे कार्यों के संभावित परिणामों पर चर्चा कीजिये।
    • साथ ही लोकतंत्र पर इसके प्रभावों को बताइये।
  • निष्कर्ष:भारत के संघीय ढांचे के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए राज्यपालों के कार्यों में संवैधानिक औचित्य की आवश्यकता पर जोर देते हुए निष्कर्ष दीजिये।

भूमिका:

जैसा कि भारत के संविधान में व्यक्त किया गया है, भारत की संघीय संरचना का तात्पर्य केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से है। संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को अपने कार्यों के निर्वाहन के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता के अंतर्गत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है। यह एक संतुलित संघीय ढांचे की नींव है, जहां राज्यपाल की भूमिका कुछ विवेकाधीन शक्तियों के साथ काफी हद तक औपचारिक होती है। हालाँकि, संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन (जैसा कि हाल ही में तमिलनाडु में देखा गया), विवादों को जन्म दे सकता है, जो भारत में संघीय गतिकी के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता को दर्शाता है।

मुख्य भाग:

राज्यपाल की भूमिका और संघीय व्यवस्था पर प्रभाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

संवैधानिक प्रावधान:

  • मंत्रियों की नियुक्ति
    • संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, राज्यपाल को मुख्यमंत्री की नियुक्ति करनी होती है, और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है।
    • राज्यपाल के पास मुख्यमंत्री की सलाह के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करने का विवेकाधिकार नहीं होता है।

हालिया विवाद और उसके निहितार्थ:

  • तमिलनाडु में मंत्री की बर्खास्तगी
    • मुख्यमंत्री की सलाह के बिना एक मंत्री को बर्खास्त करने के राज्यपाल के फैसले और फिर उसे पलटने से कई संवैधानिक सवाल खड़े हो गए।

संघीय ढांचे पर प्रभाव:

  • संभावित अस्थिरता: इस तरह की कार्रवाइयां संभावित रूप से राज्य सरकारों के भीतर अस्थिरता पैदा कर सकती हैं, जिससे संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है।
    • वे राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच संवैधानिक संतुलन को भी बाधित कर सकते हैं।

न्यायिक व्याख्याएँ:

  • इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
    • सर्वोच्च न्यायलय ने शमशेर सिंह और नबाम रेबिया जैसे मामलों में यह स्पष्ट किया, कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर ध्यान देना चाहिए सिवाय उन मामलों को छोड़कर जिनमें उन्हें संविधान द्वारा विवेकाधीन शक्तियां प्रदान की गई हैं।
  • मिसालें और न्यायिक व्याख्याएँ
    • अतीत में, राज्यपाल के कार्यालय के दुरुपयोग की आलोचना की गई।
    • एस. आर. बोम्मई मामले (1994) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह रेखांकित किया कि राज्यपाल में निहित शक्ति पूर्ण नहीं है और इसका उपयोग मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता है, इस प्रकार राज्यपाल की शक्तियों पर नियंत्रण के साथ-साथ संघीय संतुलन भी बनाए रखा जा सकता है।

सहकारी संघवाद के निहितार्थ:

  • राज्य और केंद्र के बीच तनाव:
    • ऐसे मामले राज्य और केंद्र के बीच अनावश्यक तनाव पैदा कर सकते हैं, जो भारत में सहकारी संघवाद की भावना पर प्रतिकूल प्रभाव बन सकते हैं।

लोकतंत्र पर प्रभाव

  • मुख्यमंत्री को जनता द्वारा चुना जाता है, और मंत्रियों को मुख्यमंत्री द्वारा चुना जाता है।
  • यदि कोई राज्यपाल मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करता है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर सकता है।
  • इसे एक अलोकतांत्रिक कृत्य के रूप में देखा जाएगा जो अस्थिर सरकार का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष:

तमिलनाडु में मंत्री की बर्खास्तगी से जुड़ा विवाद उस महत्वपूर्ण संतुलन को उजागर करता है जिसे संवैधानिक शक्तियों के सन्दर्भ में बनाए रखने की आवश्यकता है। यह भारत में संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक प्रणाली के सुचारू संचालन हेतु संवैधानिक पदाधिकारियों को अपने निर्दिष्ट प्राधिकार के तहत कार्य करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

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