प्रश्न की मुख्य माँग
- शहरी भारत में आतंकवाद के बढ़ने के पीछे के कारक।
- चर्चा कीजिए कि डिजिटल युग में चरमपंथियों का स्वरूप किस प्रकार विकसित हुआ है।
- उग्रवाद से निपटने के तरीके।
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उत्तर
हालिया लाल किला मेट्रो ब्लास्ट यह दर्शाता है कि भारत में आतंकवाद का स्वरूप अब सीमावर्ती संघर्ष से हटकर शहरी केंद्रों में स्थानांतरित हो रहा है। विचारधारात्मक उग्रवाद आज शहरों, डिजिटल नेटवर्कों और पेशेवर समूहों में जड़ें जमा रहा है, जिससे नई प्रकार की संवेदनशीलताएँ उभर रही हैं। इस परिवर्तन को समझने के लिए आवश्यक है कि हम शहरी आतंकवाद के कारकों और डिजिटल युग में उग्रवादियों की बदलती प्रोफाइल का विश्लेषण करें।
शहरी भारत में आतंकवाद बढ़ने के प्रमुख कारण
- शहरी ‘इको चेंबर्स’ में चरमपंथी विचारों का प्रसार: विश्वविद्यालयों, धार्मिक समूहों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों में उग्र विचारों का तेजी से प्रसार होता है, जिससे स्थानीय स्तर पर कट्टरता विकसित होती है, जो पारंपरिक सीमा-पार नेटवर्कों पर निर्भर नहीं रहती।
- महानगरों में ‘स्लीपर सेल्स’ का पुनर्संगठन: शिक्षित, तकनीकी-साक्षर और नेटवर्कयुक्त मॉड्यूल महानगरीय गुमनामी का लाभ उठाकर सुरक्षा एजेंसियों की पारंपरिक निगरानी सीमा से बाहर कार्य करते हैं।
- डिजिटल प्रोपेगेंडा और वैश्विक इस्लामी आख्यानों का प्रभाव: ऑनलाइन उपदेश, वीडियो और शिकायत-आधारित वक्तव्य , उन युवाओं को भी उग्र बनाती हैं, जिनका किसी प्रत्यक्ष संघर्ष से कोई संबंध नहीं।
- उदाहरण: वैश्विक उग्रवादी डिजिटल सामग्री की “डिजिटल निकटता” ने शहरी कट्टरता को तीव्र किया है।
- आस्था और अंधभक्ति के बीच की पतली रेखा का दुरुपयोग: अनियंत्रित वैचारिक प्रभावक धार्मिक-भावनात्मक संवेदनशीलताओं का उपयोग कर धीरे-धीरे व्यक्तियों को उग्र विचारधाराओं की तरफ धकेलते हैं।
- सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारक: पहचान के संकट या अलगाव का सामना कर रहे युवा, शिक्षित व्यक्ति वैचारिक प्रताड़ना के शिकार हो जाते हैं।
डिजिटल युग में उग्रवादियों की बदलती प्रोफाइल
- शिक्षित और ‘व्हाइट-कालर’ उग्रवादी का उदय: आधुनिक उग्रवादी डॉक्टर, इंजीनियर, पेशेवर और छात्र भी हैं—केवल हाशिये पर मौजूद तत्त्व नहीं।
- उदाहरण: लाल किला मामले में एक डॉक्टर की संलिप्तता।
- वैश्विक वैचारिक नेटवर्कों से डिजिटल जुड़ाव: सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड चैनलों और वर्चुअल समूहों के माध्यम से उग्रवादी वैश्विक विचारधाराओं से जुड़ते हैं।
- उदाहरण: IS भर्ती में देखी गई “निहिलिस्टिक सेडक्शन” जैसी प्रवृत्ति।
- शहरी, गुप्त और अत्यधिक गतिशील कट्टरता: शहरों की भीड़ और गुमनामी चरमपंथियों को “सम्मानजनक पहचान” के पीछे छिपकर कार्य करने की सुविधा प्रदान करती है।
- तकनीक-साक्षर युवाओं का उभार: वैश्विक असंतोष और शिकायत-कथाओं से प्रभावित शिक्षित युवा डिजिटल माध्यमों के जरिए आसानी से कट्टरवाद की ओर आकर्षित होते हैं।
- आत्मघाती रणनीतियों की ओर मनोवैज्ञानिक झुकाव: आत्मबलिदान की प्रवृत्ति गहरे वैचारिक प्रभाव और मानसिक ‘कंडीशनिंग’ का संकेत होती है।
डिजिटल युग में विकसित हो रहे उग्रवाद से निपटने के उपाय
- समुदाय-आधारित ‘डिरैडिकलाइजेशन’ ढाँचे को मजबूत करना: मध्यमार्गी धर्मगुरुओं, सामाजिक नेताओं और स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी कर चरमपंथी आख्यानों को चुनौती देना।
- उदाहरण: सिंगापुर का मॉडल, जिसमें मध्यमार्गी मौलवियों को वैचारिक परामर्श हेतु जोड़ा जाता है।
- डिजिटल निगरानी और काउंटर-प्रोपेगेंडा को सशक्त बनाना: AI, साइबर-फॉरेंसिक और इंटेलिजेंस तालमेल के जरिए कट्टर सामग्री एवं नेटवर्कों पर कड़ी निगरानी।
- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक खुफिया का एकीकरण: पारंपरिक कानून-व्यवस्था को परामर्श, शिकायत-निवारण और समावेशन-आधारित हस्तक्षेपों से जोड़ना।
- उदाहरण: “तकनीक विस्फोटक पकड़ सकती है, परंतु सहानुभूति ही कट्टरता रोक सकती है।”
- वैचारिक पारिस्थितिकी तंत्र का विनियमन: उपदेशकों का प्रमाणन, संवेदनशील डिजिटल प्लेटफॉर्मों की निगरानी और उग्रवादी वित्त-सहायता तंत्र पर कड़ा नियंत्रण।
- सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना और अलगाव को कम करना: कट्टरपंथी आख्यानों के आकर्षण को कमजोर करने के लिए अवसरों, संवाद और अंतर-समुदाय विश्वास निर्माण को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
शहरी आतंकवाद दर्शाता है कि संघर्ष अब सीमाओं से हटकर विचारधारात्मक और डिजिटल युद्धक्षेत्रों में प्रवेश कर चुका है, जहाँ कट्टरता प्रायः चुपचाप पनपती है। इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए तीक्ष्ण खुफिया तंत्र, तकनीकी सतर्कता और समुदाय-आधारित डिरैडिकलाइजेशन का संयुक्त मॉडल आवश्यक है। अंततः एक सुदृढ़ भारत वही है, जो कठोर सुरक्षा के साथ सामाजिक एकता को भी मजबूत करे, ताकि उग्रवादी विचारों की जड़ें जमने से पहले ही निष्प्रभावी की जा सकें।
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