Q. टीबी उन्मूलन की दिशा में भारत की प्रगति के संदर्भ में WHO वैश्विक TB रिपोर्ट 2025 के निष्कर्षों पर चर्चा कीजिए। भारत के TB नियंत्रण प्रयासों में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक TB  रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष
  • भारत के क्षय रोग नियंत्रण प्रयासों में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ
  • आगे की राह।

उत्तर

विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक TB रिपोर्ट, 2025 भारत के लिए मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करती है, जिसमें क्षय रोग के मामलों में प्रभावशाली गिरावट है, फिर भी मामलों का बोझ और दवा प्रतिरोध लगातार उच्च बना हुआ है। जैसे-जैसे भारत अपने महत्त्वाकांक्षी टीबी उन्मूलन लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, ये निष्कर्ष उन गंभीर चुनौतियों को उजागर करते हैं जिनके लिए अधिक तीव्र रणनीतियों और मजबूत प्रणालियों की आवश्यकता है।

WHO वैश्विक TB  रिपोर्ट,  2025 के प्रमुख निष्कर्ष

  • टीबी संक्रमण में उल्लेखनीय गिरावट: भारत ने विश्व-स्तर पर टीबी संक्रमण में सबसे अधिक कमी दर्ज की— वर्ष 2015 से अब तक 21% की गिरावट।
    • उदाहरण: वर्ष 2015 में 237/लाख से घटकर वर्ष 2024 में 187/लाख।
  • भारत अभी भी विश्व का सबसे बड़ा टीबी बोझ वहन करता है: उल्लेखनीय सुधारों के बावजूद भारत विश्व के कुल टीबी मामलों का 25% हिस्सा रखता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक टीबी मामले भारत में दर्ज हुए।
  • MDR-/RR-TB का अत्यधिक बोझ: दवा-प्रतिरोधी टीबी (MDR-/RR-TB) भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनी हुई है।
    • उदाहरण: वैश्विक MDR-/RR-TB मामलों में भारत की भागीदारी 32%—विश्व में सबसे अधिक।
  • उपचार परिणामों में मिश्रित स्थिति: सामान्य टीबी के उपचार परिणाम संतोषजनक हैं, लेकिन MDR-TB के परिणाम अपेक्षाकृत कमजोर हैं।
    • उदाहरण: नए मामलों में 90% सफलता, जबकि MDR-/RR-TB में केवल 77%।
  • मृत्यु दर में गिरावट, पर लक्ष्य से अभी भी दूर: टीबी मृत्यु दर घटी है, परंतु उन्मूलन लक्ष्यों की तुलना में अब भी बहुत अधिक है।
    • उदाहरण: मृत्यु दर वर्ष 2015 के 28/लाख से घटकर वर्ष 2024 में 21/लाख—अब भी लक्ष्य से तीन गुना।

भारत के टीबी नियंत्रण प्रयासों में प्रमुख बाधाएँ

  •  टीबी उन्मूलन लक्ष्य का पूर्ण ना होना: भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन का था, जो वैश्विक लक्ष्य से 5 वर्ष पहले का था, परंतु यह लक्ष्य अधूरा रह गया।
    • उदाहरण: उच्च संक्रमण, मृत्यु-दर और MDR मामलों से अपर्याप्त प्रगति स्पष्ट होती है।
  • विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में निदान संबंधी अंतराल: ग्रामीण इलाकों में निदान सुविधाएँ सीमित होने के कारण बड़ी संख्या में मामले अनदेखे रह जाते हैं।
    • उदाहरण: आणविक परीक्षण उपकरणों और स्क्रीनिंग अवसंरचना की कमी।
  • सामाजिक-आर्थिक कमजोरियाँ: गरीबी, कुपोषण और भीड़भाड़ टीबी की संवेदनशीलता बढ़ाते हैं।
  • उदाहरण: आदिवासी और निम्न-आय क्षेत्रों में कुपोषण अब भी प्रमुख कारण।
  • MDR-/RR-TB का उच्च बोझ: यह लंबा, जटिल और कठिन उपचार माँगता है, जिसके कारण परिणाम अक्सर कमजोर रहते हैं।
    • उदाहरण: वैश्विक MDR भार में भारत की 32% हिस्सेदारी स्वास्थ्य प्रणालियों को भारी दबाव में डालती है।
  • दवाइयों की कमी व उपचार में व्यवधान: अस्थिर आपूर्ति शृंखला उपचार की शुरुआत और निरंतरता दोनों को प्रभावित करती है।
    • उदाहरण: द्वितीय-पंक्ति की  दवाओं का समय-समय पर स्टॉक समाप्त होना।

आगे की राह 

  • त्वरित निदान और ग्रामीण पहुँच का विस्तार: आणविक परीक्षण, AI-सक्षम स्क्रीनिंग और डिजिटल ट्रैकिंग को व्यापक बनाना।
    • उदाहरण: सभी PHC में TrueNAT/CBNAAT उपकरण तथा दूरदराज क्षेत्रों में मोबाइल वैन।
  •  MDR-/RR-TB प्रबंधन को मजबूत बनाना: समय पर निदान, दवा आपूर्ति में निरंतरता, और नए उपचार-पद्धतियों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: उच्च-बोझ वाले जिलों में BPaLM जैसी नई दवाओं का व्यापक उपयोग।
  • सामाजिक-आर्थिक निर्धारकों का समाधान: पोषण, आवास और रोगियों को आर्थिक सहायता में सुधार।
    • उदाहरण: निक्षय पोषण योजना जैसी पोषण योजनाओं का विस्तार और बेहतर फंड फ्लो।
  • आपूर्ति शृंखला एवं दवा उपलब्धता को सुदृढ़ करना: सभी टीबी दवाओं के लिए मजबूत खरीद प्रणाली और पर्याप्त बफर-स्टॉक बनाना।
    • उदाहरण: दवा स्टॉक की वास्तविक-समय निगरानी हेतु केंद्रीय डिजिटल डैशबोर्ड।
  • समुदाय एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना: जागरूकता, त्वरित रिपोर्टिंग और निजी क्षेत्र द्वारा नोटिफिकेशन को प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण: निजी क्लीनिकों को त्वरित परीक्षण और NTEP के तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग के लिए प्रोत्साहन।

निष्कर्ष

भारत के टीबी-नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, परंतु लगातार बना हुआ संक्रमण बोझ, निदान-अंतराल और बढ़ता ड्रग रेजिस्टेंस यह दर्शाता है कि उन्मूलन का लक्ष्य अभी भी दूर है।
केवल मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों, व्यापक सामुदायिक पहुँच और निरंतर सामाजिक-आर्थिक समर्थन के माध्यम से ही भारत अपनी इस मिश्रित प्रगति को एक निर्णायक जीत में बदल सकता है।

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