प्रश्न की मुख्य माँग
- आदर्श आचार संहिता की सीमाएँ।
- इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए सुधार की आवश्यकता।
- इसकी प्रवर्तनीयता बढ़ाने के लिए सुधार की आवश्यकता।
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उत्तर
आदर्श आचार संहिता की शुरुआत वर्ष 1960 के केरल चुनाव से हुई थी, जिसे राजनीतिक दलों के लिए एक स्वैच्छिक नैतिक ढाँचा माना गया। इसे 1990 के दशक में औपचारिक मान्यता मिली और अंतिम संशोधन 2013 में किया गया। किंतु चूँकि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, इसलिए यह नैतिक आग्रह पर निर्भर करती है न कि कानूनी प्रवर्तन पर — जिससे इसका निरोधक प्रभाव सीमित हो जाता है।
चुनावी अनियमितताओं को रोकने में MCC की प्रमुख सीमाएँ
- कानूनी समर्थन का अभाव: MCC कानूनन लागू नहीं है, इसलिए यह बाध्यकारी प्रावधान की बजाय केवल नैतिक मार्गदर्शन भर है।
- उदाहरण: संसदीय स्थायी समिति (कानून और न्याय, 2013) ने MCC को कानूनी दर्जा देने की सिफारिश की थी, लेकिन इस पर कोई विधायी कार्रवाई नहीं हुई।
- सत्तारूढ़ दलों द्वारा बार-बार उल्लंघन: सरकारें अक्सर चुनाव के पहले नकद हस्तांतरण या नई योजनाओं की घोषणा करती हैं, जिससे MCC की भावना भंग होती है।
- उदाहरण: बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (2025) के तहत मतदान से ठीक पहले महिलाओं को ₹10,000 वितरित किए गए, जिससे मतदाता भावना प्रभावित हुई।
- कमजोर दंडात्मक तंत्र: चुनाव आयोग केवल चेतावनी या निंदा जारी कर सकता है; वास्तविक कार्रवाई जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैसे कानूनों पर निर्भर करती है, जिससे जवाबदेही में देरी होती है।
- “चल रही योजनाओं” की अस्पष्ट परिभाषा: MCC के तहत जारी कार्यक्रमों को जारी रखने की अनुमति है, जिसका उपयोग सत्तारूढ़ दल नई लोकलुभावन योजनाओं को “पुरानी” बताकर करते हैं।
- निगरानी क्षमता की सीमा: चुनाव आयोग के पास संसाधन और जनशक्ति की कमी है, जिससे वास्तविक समय में उल्लंघन की निगरानी कठिन हो जाती है।
MCC की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए सुधार
- MCC प्रावधानों को कानून में शामिल करना: आचार संहिता के मुख्य प्रावधानों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में सम्मिलित किया जाए ताकि उल्लंघन पर स्पष्ट दंड मिल सके।
- उदाहरण: चुनाव व्यय सीमा कानून की तरह MCC उल्लंघन पर सीधे दंडात्मक कार्रवाई की जा सके।
- चुनाव आयोग की स्वायत्तता और संसाधन सुदृढ़ करना: ECI को स्वतंत्र जाँच एवं अभियोजन (prosecution) अधिकार प्रदान किए जाएँ ताकि त्वरित कार्रवाई हो सके।
- स्थायी MCC पर्यवेक्षण प्रकोष्ठ की स्थापना: नागरिकों व पर्यवेक्षकों के लिए डिजिटल शिकायत प्रणाली तैयार की जाए ताकि पारदर्शिता के साथ उल्लंघन रिपोर्ट किए जा सकें।
- उदाहरण: cVIGIL ऐप जैसी रियल-टाइम शिकायत निवारण प्रणाली से जवाबदेही बढ़ाई जा सकती है।
- सार्वजनिक प्रकटीकरण और नाम उजागर करने की व्यवस्था: सभी MCC उल्लंघनों की सार्वजनिक घोषणा की जाए ताकि मतदाताओं में जागरूकता के माध्यम से राजनीतिक जवाबदेही सुनिश्चित हो।
MCC के प्रवर्तन को सशक्त करने के उपाय
- त्वरित न्यायाधिकरण: चुनाव से संबंधित MCC उल्लंघनों को 45 दिनों में निपटाने हेतु विशेष न्यायाधिकरण स्थापित किए जाएँ।
- चुनाव पर्यवेक्षकों को अर्द्ध-न्यायिक अधिकार देना: स्पष्ट उल्लंघनों पर वे मौके पर ही जुर्माना या अस्थायी प्रतिबंध लगा सकें।
- वास्तविक समय निगरानी हेतु तकनीकी एकीकरण: AI-आधारित निगरानी उपकरणों से रैलियों व विज्ञापनों में MCC उल्लंघनों को स्वतः चिह्नित किया जा सके।
- ECI और प्रवर्तन एजेंसियों में बेहतर समन्वय: चुनाव आयोग, पुलिस, और आयकर विभाग के मध्य संस्थागत सहयोग विकसित कर धन प्रलोभनों की त्वरित जाँच सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष
आदर्श आचार संहिता भारत के लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों की रीढ़ है, परंतु कानूनी व संस्थागत कमजोरियों के कारण इसका प्रभाव सीमित है। इसे कानूनी समर्थन, डिजिटल निगरानी और चुनाव आयोग के सशक्तीकरण के माध्यम से मजबूत करना आवश्यक है, ताकि निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र में जनविश्वास दोनों कायम रह सकें।
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