Q. अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए केंद्र द्वारा किए गए उपायों पर चर्चा कीजिए, साथ ही बताएं कि ये उपाय आत्मनिर्भरता और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देने के लक्ष्यों में कैसे योगदान कर सकते हैं? अंतरिक्ष अन्वेषण के निजीकरण पर पक्ष और विपक्ष में भी बिन्दुओं को लिखिए।  (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में बदलाव का परिचय दीजिए, साथ ही इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी क्षमता के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालें।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • IN-SPACe की स्थापना, नीति और नियामक सुधार और निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए वित्तीय प्रोत्साहन जैसी विस्तृत पहल।
    • चर्चा कीजिए कि ये उपाय तकनीकी क्षमताओं को कैसे बढ़ाते हैं और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में विविधता लाते हैं।
    • दक्षता में बढ़ोतरी, लागत-प्रभावशीलता और वैश्विक बाजार के अवसरों जैसे फायदे गिनाएं।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं, एकाधिकार के जोखिम और नियामक जटिलताओं जैसी चुनौतियों की रूपरेखा तैयार कीजिए।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी में प्रगति को दर्शाने वाले हालिया सरकारी पहल का उल्लेख कीजिए।
  • निष्कर्ष: भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख देश के रूप में स्थापित करने हेतु अंतरिक्ष अन्वेषण के निजीकरण के लाभों और चुनौतियों को संतुलित करने के महत्व पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।

 

प्रस्तावना:

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र, जिस पर ऐतिहासिक रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रभुत्व था, निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के साथ एक आदर्श बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यह परिवर्तन अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देने के सरकार के व्यापक दृष्टिकोण का परिचय दे रहा है।

मुख्य विषयवस्तु:

निजी क्षेत्र की भागीदारी के उपाय:

  • IN-SPACe की स्थापना: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना इसरो और निजी संस्थानों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करने के लिए की गई थी, जिससे इसरो के बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञता को साझा करने की सुविधा मिल सके।
  • नीति और नियामक सुधार: सरकार ऐसी नीतियां बना रही है जो निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए अनुकूल हैं, जिसमें अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाना और परियोजनाओं के आवंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित करना शामिल है।
  • वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन: निजी संस्थानों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना जैसी पहल पर विचार किया जा रहा है।

आत्मनिर्भरता और स्वदेशी क्षमताओं में योगदान:

  • तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना: निजी क्षेत्र की भागीदारी से नई प्रौद्योगिकियों और नवाचार का विकास होता है, जिससे भारत की स्वदेशी क्षमताओं में वृद्धि होती है।
  • अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का विविधीकरण: निजी क्षेत्र की भागीदारी अंतरिक्ष क्षेत्र के दायरे को व्यापक बनाती है, जिसमें छोटे उपग्रह विकास, प्रक्षेपण सेवाएं, अंतरिक्ष-आधारित सेवाएं और अनुसंधान शामिल हैं।

अंतरिक्ष अन्वेषण के निजीकरण के लाभ:

  • दक्षता में बढ़ोतरी और नवाचार: निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी प्रकृति से दक्षता और तकनीकी नवाचार में वृद्धि हो सकती है।
  • लागत-प्रभावशीलता: लाभप्रदता से प्रेरित निजी कंपनियां, अंतरिक्ष अन्वेषण चुनौतियों का लागत-प्रभावी समाधान ढूंढ सकती हैं।
  • वैश्विक बाज़ार अवसर: निजी खिलाड़ियों के प्रवेश से वैश्विक स्तर पर भारत के लिए नए बाज़ार और अवसर खुल सकते हैं।

अंतरिक्ष अन्वेषण के निजीकरण के नुकसान:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संवेदनशील होने, निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी से राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों की सुरक्षा को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • एकाधिकार का जोखिम: बाजार के एकाधिकार का जोखिम है, जिससे वैज्ञानिक और खोजपूर्ण उद्देश्यों पर लाभ को प्राथमिकता दी जा सकती है।
  • नियामक से जुड़ी चुनौतियाँ: अंतर्राष्ट्रीय संधियों और विनियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना कई निजी संस्थाओं के शामिल होने से और अधिक जटिल हो जाता है।

नव गतिविधि:

  • Pixxel और स्काईरूट एयरोस्पेस जैसी निजी भारतीय कंपनियों द्वारा उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की क्षमता को दर्शाता है।
  • निजी क्षेत्रों के लिए सरकार द्वारा अन्तरिक्ष क्षेत्र में मार्ग खोलने से सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है।

निष्कर्ष

भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में निजी क्षेत्र की भागीदारी आत्मनिर्भरता हासिल करने और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह कदम कई फ़ायदों को रेखांकित करता है, जैसे दक्षता में बढ़ोतरी, नवाचार और वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण उपस्थिति। हालांकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, नियामक संबंधी निरीक्षण और एकाधिकार के जोखिम के संदर्भ में चुनौतियां भी पेश करता है। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संस्थानों के रूप में उभरने हेतु भारत के लिए निजी क्षेत्रों के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देते हुए इन पहलुओं को संतुलित करना आवश्यक है। सरकार के सक्रिय उपाय और नीतिगत सुधार भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए एक आशाजनक भविष्य का संकेत हैं।

 

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