Q. अनेक आयोगों, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और सुधार पहलों के बावजूद, भारत में पुलिस की कार्यप्रणाली चुनौतियों का सामना कर रही है। भारतीय पुलिस व्यवस्था में उन लगातार समस्याओं पर चर्चा कीजिए जो पुलिस सुधारों में बाधा उत्पन्न करती हैं और कानून के शासन को बनाए रखने में सक्षम एक जवाबदेह और आधुनिक पुलिस बल सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय पुलिस व्यवस्था में उन लगातार समस्याओं पर चर्चा कीजिए, जो पुलिस सुधारों में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • कानून के शासन को बनाए रखने में सक्षम एक जवाबदेह और आधुनिक पुलिस बल सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए।

उत्तर

भूमिका

भारत में पुलिस व्यवस्था मुख्यतः औपनिवेशिक पुलिस अधिनियम, 1861 के अंतर्गत संचालित होती है और यह कानून-व्यवस्था बनाए रखने की प्राथमिक संस्था है। सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2006 के निर्देशों, राष्ट्रीय पुलिस आयोग (वर्ष 1979) जैसी समितियों तथा स्मार्ट (SMART) पुलिस  जैसी सुधार पहल के बावजूद गहरी राजनीतिक हस्तक्षेप और संरचनात्मक जड़ता ने व्यापक परिवर्तन को रोक रखा है, जिससे जवाबदेही और विधि के शासन (Rule of Law) जैसे सिद्धांत कमजोर हो रहे हैं।

मुख्य भाग

भारतीय पुलिस व्यवस्था की स्थायी समस्याएँ

  • संकट के समय कार्यपालिका का प्रभुत्व: राजनीतिक आदेशों के कारण पुलिस अक्सर मूकदर्शक या अति-प्रवर्तक की भूमिका में रही है।
    • उदाहरण: आपातकाल (वर्ष 1975) में शाह आयोग ने पुलिस की स्वतंत्रता के हनन को उजागर किया एवं वर्ष 1984 के सिख-विरोधी दंगों में पुलिस निष्क्रिय रही।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कमजोर क्रियान्वयन: अधिकांश राज्यों ने केवल कागजी अनुपालन किया, परंतु स्वतंत्र संस्थागत ढाँचा नहीं बनाया।
    • उदाहरण: वर्ष 2006 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, पुलिस स्थापना बोर्ड और शिकायत प्राधिकरण का गठन होना था, लेकिन राजनीतिक वर्ग ने सुधारों का विरोध किया।
  • औपनिवेशिक ढाँचे की जड़ता: अधिकांश राज्य आज भी पुलिस अधिनियम, 1861 पर आधारित हैं, जिसका उद्देश्य सेवा के बजाय नियंत्रण  पर है।
  • नेतृत्व और कार्यकाल में स्वायत्तता की कमी: लगातार तबादलों से न केवल संचालन दक्षता घटती है, बल्कि मनोबल भी प्रभावित होता है।
  • अत्यधिक बोझ और दोहरी भूमिकाएँ: कानून-व्यवस्था और जाँच कार्यों का पृथक्करण अब तक लागू नहीं हुआ है।
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने महानगरों में जाँच और कानून-व्यवस्था को अलग करने का निर्देश दिया था, किंतु राज्यों ने अनदेखी की।

जवाबदेह और आधुनिक पुलिस के लिए आवश्यक कदम

जवाबदेह पुलिस बल

  • संस्थागत स्वतंत्रता का सुदृढ़ीकरण: राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने हेतु राज्य सुरक्षा आयोगों की स्थापना।
  • स्पष्ट और पारदर्शी जवाबदेही तंत्र: राज्य और जिला स्तर पर शिकायत प्राधिकरण स्थापित करना।
  • जाँच एवं कानून-व्यवस्था का पृथक्करण: दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने हेतु दोनों कार्यों का विभाजन।
  • कार्य-आधारित मूल्यांकन और प्रोत्साहन: आचरण और जन प्रतिक्रिया पर आधारित मूल्यांकन प्रणाली लागू करना।

आधुनिक पुलिस बल

  • तकनीक और अवसंरचना में निवेश: डिजिटल डेटाबेस, निगरानी प्रणाली और फॉरेंसिक टूल्स का उपयोग।
    • उदाहरण: दिल्ली पुलिस ने सेफ सिटी प्रोजेक्ट के तहत AI-आधारित निगरानी प्रणाली लागू की।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: साइबर अपराध, आतंकवाद-रोधी कार्रवाई और लैंगिक संवेदनशीलता पर नियमित प्रशिक्षण।
  • नेतृत्व सुधार और निश्चित कार्यकाल: योग्यता-आधारित पदोन्नति और स्थिर कार्यकाल से राजनीतिक प्रभाव घटाना।
  • सामुदायिक सहभागिता और सार्वजनिक संवाद: स्मार्ट  पुलिसिंग और सामुदायिक कार्यक्रमों से पुलिस-जन संबंध मजबूत करना।
    • उदाहरण: बंगलूरू का सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल, जिसमें नियमित बैठकें और सुरक्षा कार्यक्रम शामिल हैं।

निष्कर्ष

वर्ष 2006 के प्रकाश सिंह प्रकरण  में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुलिस को राजनीतिक दबाव से मुक्त करना, अधिकारियों का स्थिर कार्यकाल सुनिश्चित करना और स्वतंत्र शिकायत प्राधिकरण स्थापित करना आवश्यक है। भारत यदि वर्ष 2047 तक $30 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था और विकसित भारत  का लक्ष्य हासिल करना चाहता है, तो उसके लिए विधि के शासन पर आधारित एक पेशेवर, स्वायत्त और आधुनिक पुलिस बल अनिवार्य है।

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