उत्तर:
दृष्टिकोण:
- भूमिका: ताइवान जलडमरूमध्य की भूराजनीतिक प्रासंगिकता और वहां उत्पन्न होने वाले संकट की संभावना को परिभाषित करते हुए परिचय दीजिए ।
- मुख्य विषयवस्तु:
⮚ एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक संतुलन पर संभावित प्रभावों, चीन-भारत संबंधों पर प्रभाव और साथ ही अमेरिका-भारत संबंधों पर प्रभाव के सन्दर्भ में चर्चा कीजिये।
⮚ व्यापार और वाणिज्य में संभावित व्यवधान और निवेश प्रवाह पर प्रभाव के सन्दर्भ में विश्लेषण कीजिये।
⮚ संभावित प्रभावों को कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के सम्बन्ध में सुझाव दीजिये।
- निष्कर्ष: उत्तर को एक सारांश के साथ समाप्त करें जो भारत को इस सन्दर्भ में चतुराई से निपटने, सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने और अपने हितों की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर देता हो।
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भूमिका:
ताइवान जलडमरूमध्य संकट से चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ रहा है। चीन के गृहयुद्ध के बाद, दो अलग–अलग सरकारों का गठन हुआ: मुख्य भूभाग पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और ताइवान में कुओमितांग। चूँकि ताइवान स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है, इसलिए यह चीन के इस दावे को ख़ारिज करता है, कि ताइवान उसके क्षेत्र का हिस्सा है, जिससे संभावित टकराव होने की सम्भावना बनी रहती है। यह लड़ाई राष्ट्रीय पहचान, संप्रभुता और अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के कारण होती है। चीन और ताइवान के बीच यह तनाव संभावित रूप से भूराजनीतिक और आर्थिक सुरक्षा दोनों के संदर्भ में भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
मुख्य विषयवस्तु:
भूराजनीतिक निहितार्थ
- एशिया–प्रशांत में सामरिक संतुलन:
- ताइवान जलडमरूमध्य में संकट एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन को बाधित कर सकता है।
- यदि चीन ताइवान पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है, तो यह बीजिंग को दक्षिण चीन सागर और चीन–भारत सीमा संघर्ष जैसे क्षेत्रीय विवादों में खुद को और अधिक आक्रामक रूप से पेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
- भारत–चीन संबंधों पर प्रभाव:
- ऐसा संकट चीन-भारत में तनाव पैदा कर सकता है।
- ताइवान पर भारत के रुख से आमतौर पर बीजिंग के साथ उसके संबंधों का आकलन किया जाता है।
- अधिक स्पष्ट विवाद भारत को कूटनीतिक सख्ती से चलने पर मजबूर कर सकता है।
- अमेरिका–भारत संबंध:
- ताइवान की स्थिति में संयुक्त राज्य अमेरिका की गहरी रुचि और चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के उसके प्रयासों को ध्यान में रखते हुए, ताइवान जलडमरूमध्य संकट संभावित रूप से भारत को अमेरिका के करीब ला सकता है या भारत को पक्ष चुनने के लिए अमेरिकी दबाव में डाल सकता है, जिससे भारत की विदेश नीति प्रभावित हो सकती है।
आर्थिक निहितार्थ
- व्यापार एवं वाणिज्य में व्यवधान:
- ताइवान जलडमरूमध्य में उत्पन्न संकट पूर्वी एशियाई आपूर्ति श्रृंखलाओं को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है।
- ताइवान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख हितधारक है, विशेष रूप से अर्धचालक उद्योग में जहां 2021 तक दुनिया के 63% अर्धचालक फाउंड्री का उत्पादन होता था।
- इसका मतलब यह है, कि दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ताइवान में निर्मित घटकों पर निर्भर करता है।
- 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने ताइवान से अर्धचालक सहित लगभग3 बिलियन डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक घटकों का आयात किया, जो ताइवान पर भारत के आईटी क्षेत्र की भारी निर्भरता को दिखाता है।
- इसलिए, ताइवान जलडमरूमध्य में संकट भारत के आईटी उद्योग में गंभीर व्यवधान पैदा कर सकता है।
- निवेश पर प्रभाव:
- तनाव बढ़ने से निवेश के प्रवाह पर असर पड़ सकता है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अक्सर भू–राजनीतिक जोखिम के प्रति संवेदनशील होता है, निवेशकों द्वारा अस्थिरता से जुड़े क्षेत्रों में निवेश रोकने की संभावना होती है।
- ताइवानी कंपनियां धीरे–धीरे भारत में अपना निवेश बढ़ा रही हैं, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, पेट्रोकेमिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्रों में।
- अप्रैल 2000 से जून 2020 के बीच भारत को ताइवान से लगभग 360 मिलियन डॉलर का FDI प्राप्त हुआ।
- ताइवान जलडमरूमध्य में हुए संकट, ताइवानी कंपनियों को भारत में आगे निवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है, जिससे इन क्षेत्रों में विकास भी बाधित हो सकता है।
भारत के लिए सुझाए गए उपाय
- सामरिक स्वायत्तता: भारत को प्रमुख शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अवांछित क्षेत्रीय संघर्षों में ना फंसे।
- रक्षा क्षमताओं में वृद्धि: बदले हुए भू–राजनीतिक परिदृश्य की संभावना को देखते हुए, भारत को अपनी रक्षा क्षमताओं, विशेषकर हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति को मजबूत करना जारी रखना चाहिए।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण: आर्थिक जोखिमों को कम करने के लिए, भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने, अर्धचालक जैसे महत्वपूर्ण घटकों के लिए एकल स्रोतों पर निर्भरता कम करने पर काम करना चाहिए।
- बहुपक्षीय सहयोग: भारत को जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य एशिया–प्रशांत लोकतंत्रों के साथ मजबूत संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे आक्रामक कदमों के खिलाफ एक लोकतांत्रिक घेराबंदी की जा सके।
निष्कर्ष:
हालाँकि, ताइवान जलडमरूमध्य में संभावित संकट का भारत पर महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हो सकता है, लेकिन भारत के लिए इस जटिल परिस्थिति से चतुराई से निपटना, रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना और अपने हितों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। ऐसे संकट के संभावित प्रभावों को कम करने के लिए बहुपक्षीय कूटनीति, रक्षा तैयारियों और आर्थिक समरसताओ पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
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