प्रश्न की मुख्य माँग
- सहमति और बलात्कार पर व्यापक कानूनी ढाँचे के संदर्भ में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 के साथ संभावित कानूनी मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
- सहमति और बलात्कार पर व्यापक कानूनी ढांचे के संदर्भ में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 के साथ संभावित संवैधानिक मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
- प्रावधान को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कानून में संशोधन की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिए।
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उत्तर
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा-69 विवाह, नौकरी या पदोन्नति के झूठे वादों के जरिए बनाये गये यौन संबंधों को अपराध मानती है। महिलाओं को शोषण से बचाने के उद्देश्य से बनाए गए इस प्रावधान ने सहमति और बलात्कार पर मौजूदा कानूनों के साथ इसके संरेखण को लेकर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
BNS की धारा 69 से जुड़े कानूनी मुद्दे
- ‘धोखेबाज तरीके’ को परिभाषित करने में अस्पष्टता: धारा-69 में “धोखेबाज साधनों” का प्रयोग अस्पष्ट है और इससे विभिन्न व्याख्याएं हो सकती हैं जिससे कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
- आशय के अभाव (Lack of Intent) साबित करने में चुनौतियाँ: यह साबित करना कि अभियुक्त का विवाह के वादे को पूरा करने का कोई इरादा नहीं था, व्यक्तिपरक है जिससे कानूनी कार्यवाही जटिल हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: ऐसे मामलों में जहाँ अभियुक्त वादा पूरा करने का इरादा होने का दावा करता है, अदालत में धोखाधड़ी साबित करना मुश्किल हो जाता है।
- अनुपातहीन दण्ड: कानून में 10 वर्ष तक के कारावास की कठोर सजा का प्रावधान है जो कभी-कभी अन्य समान अपराधों के साथ मेल नहीं खाती।
- झूठे आरोपों के विरुद्ध सुरक्षा उपायों का अभाव: धारा-69 में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के अभाव से झूठे आरोपों का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे गलत कानूनी कार्रवाई की संभावना बढ़ जाती है और निर्दोषता की धारणा कमजोर हो जाती है।
BNS की धारा 69 से संबंधित संवैधानिक मुद्दे
- लैंगिक-विशिष्ट अनुप्रयोग: धारा 69 लैंगिक रूप से विशिष्ट है क्योंकि यह महिलाओं के विरुद्ध छल करने के लिए पुरुषों को लक्षित करती है जो संविधान के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है।
- लैंगिक रूढ़िवादिता को सुदृढ़ बनाना: यह मानकर कि महिला में वादों की निष्क्रिय प्राप्तकर्ता होती हैं, धारा-69 पुराने लैंगिक मानदंडों को सुदृढ़ कर सकती है।
- उदाहरण के लिए: यह कानून अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दे सकता है कि महिलाएँ अपने यौन संबंधों के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ होती हैं।
- स्वच्छंद प्रवर्तन की संभावना: इस धारा में स्पष्ट मानकों का अभाव है, जिसके कारण स्वच्छंद प्रवर्तन और असंगत अनुप्रयोग की संभावना बनी रहती है।
- मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष: आलोचकों का तर्क है, कि धारा-69 व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है क्योंकि इसमें स्पष्ट मानकों के बिना सजा की गंभीरता है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय संविधान समान सुरक्षा और न्याय की गारंटी देता है, जिसे इस प्रावधान की व्यापक भाषा से समझौता किया जा सकता है।
- दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा उपायों का अभाव: धारा 69 में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का अभाव है जिससे दुरुपयोग का जोखिम बढ़ जाता है और न्याय कमजोर हो जाता है।
धारा 69 में संशोधन की आवश्यकता
- ‘धोखेबाज साधनों’ की व्याख्या: गलत व्याख्या को रोकने और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए “धोखेबाज साधनों” की परिभाषा को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने की आवश्यकता है।
- लैंगिक आधार पर सभी का समावेशन: समानता को बनाए रखने के लिए धारा 69 को लैंगिक आधार पर लागू करने हेतु संशोधित किया जाना चाहिए ताकि पुरुष पीड़ितों के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
- सुरक्षा उपायों का क्रियान्वयन: धारा 69 में प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिए, जैसे कि दुरुपयोग को रोकने के लिए अनिवार्य जाँच और न्यायिक निगरानी।
- उदाहरण के लिए: न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करने में सहायक हो सकती है कि दंड लगाने से पहले धोखाधड़ी के आरोपों की गहन जाँच की जाए।
- अनिवार्य डेटा पारदर्शिता: वार्षिक सजा दरों और मामले के निपटारे के प्रकाशन की आवश्यकता से जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा।
BNS की धारा-69 का उद्देश्य यौन शोषण को रोकना है परंतु यह कानूनी और संवैधानिक चुनौतियां भी पेश करती है। इसके आवेदन में स्पष्टता, निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान में संशोधन आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किए बिना सहमति और बलात्कार के मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करे।
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