Q. विभिन्न क्षेत्रों में समकालीन सफलताओं को आगे बढ़ाने के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान को एकीकृत करने की क्षमता पर चर्चा कीजिये। इस संबंध में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों का भी उल्लेख कीजिये। (10 अंक 150 शब्द) अतिरिक्त

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • भूमिका
    • प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में संक्षेप में लिखें।
  • मुख्य भाग
    • विभिन्न क्षेत्रों में समकालीन सफलताओं को आगे बढ़ाने के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान को एकीकृत करने की क्षमता लिखें।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों की बहुमुखी उपलब्धियाँ लिखिए।
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

भूमिका

प्राचीन भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सभ्यता ने गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और धातु विज्ञान में उल्लेखनीय योगदान के साथ परिष्कृत प्रणालियाँ विकसित कीं। विकास में शून्य की अवधारणा, आयुर्वेदिक चिकित्सा, खगोलीय अवलोकन और उच्च धातुकर्म कौशल को दर्शाने वाला दिल्ली का लौह स्तंभ शामिल है।

मुख्य भाग

कई क्षेत्रों में समकालीन सफलताओं को आगे बढ़ाने के लिए प्राचीन भारतीय ज्ञान को एकीकृत करने की क्षमता

  • स्वास्थ्य देखभाल: आयुर्वेद व्यक्तियों के अद्वितीय गठन (दोष) के आधार पर व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। आधुनिक चिकित्सा इस व्यक्तिगत दृष्टिकोण से लाभान्वित हो सकती है, जो जीनोमिक्स और सटीक चिकित्सा का पूरक है।
  • खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान: ‘सूर्य सिद्धांत’ जैसे प्राचीन ग्रंथ, ग्रहों की गति और ग्रहण के परिष्कृत मॉडल प्रदान करते हैं। प्राचीन ज्ञान को उजागर करने के लिए इन ग्रंथों का और अध्ययन किया जा सकता है जिससे समकालीन खगोलीय अध्ययन को लाभ हो सकता है।
  • सामग्री विज्ञान: दिल्ली के लौह स्तंभ और वुट्ज़ स्टील में प्रदर्शित धातुकर्म कौशल का समकालीन सामग्री विज्ञान में संक्षारण प्रतिरोधी सामग्री और उच्च शक्ति मिश्र धातुओं में सुधार के लिए अध्ययन किया जा सकता है।
  • गणित: प्राचीन गणितीय अवधारणाओं और संख्यात्मक तकनीकों को आधुनिक गणितीय समस्या समाधान और गणनाओं के लाभार्थ अन्वेषित किया जा सकता है जैसे कि आर्यभट्ट के कार्यों में पाए जाते हैं।
  • सतत वास्तुकला: वास्तु शास्त्र के सिद्धांत , वास्तुकला का प्राचीन भारतीय विज्ञान, प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की वकालत करते हैं। ये सिद्धांत आज की दुनिया में सतत वास्तुकला और शहरी नियोजन के विकास का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य: प्राचीन भारतीय प्रथाओं से प्राप्त माइंडफुलनेस और ध्यान तकनीकों को पहले से ही तनाव कम करने और मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए मनोचिकित्सा में स्वीकृति मिल गई है। इसमें और भी अधिक समेकन की संभावना है।
  • सतत कृषि और पारिस्थितिकी: पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ जैसे जैविक खेती और सतत और पर्यावरण-संबंधी को प्रोत्साहित करने के लिए फसल चक्र को आधुनिक खेती के तरीकों के साथ एकीकृत किया जा सकता है। उदाहरण- मिलेट्स का समावेश

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों की बहुमुखी उपलब्धियाँ

  • गणित: शून्य, अनंत और दशमलव प्रणाली की अवधारणा यहीं से उत्पन्न हुई। 5वीं शताब्दी के प्रसिद्ध गणितज्ञ-खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने स्थानीय मूल्य प्रणाली की शुरुआत की और पाई की अनुमापन पर व्यापक काम किया।
  • खगोल विज्ञान: उदाहरण के लिए, 7वीं शताब्दी के खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ने प्रस्तावित किया कि पृथ्वी अपनी अक्ष पर परिभ्रमण करती है। इसी प्रकार, आर्यभट्ट ने सूर्य और चंद्र ग्रहण जैसी कई खगोलीय घटनाओं को सटीक रूप से परिभाषित किया।
  • चिकित्सा: एक प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सक चरक ने ‘चरक संहिता’ का संकलन किया, जिसमें कई औषधीय पौधों और शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का विवरण दिया गया है। सुश्रुत, जिन्हें अक्सर ‘सर्जरी के जनक’ के रूप में जाना जाता है , ने ‘सुश्रुत संहिता’ लिखी जिसमें 300 से अधिक सर्जिकल प्रक्रियाओं का वर्णन है।
  • धातुकर्म: दिल्ली का लौह स्तंभ, जो 402 ई.पू. का है, उन्नत संक्षारण-प्रतिरोधी तकनीकों का प्रमाण है। इसी प्रकार, प्राचीन भारत में वुट्ज़ स्टील का उत्पादन एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि थी।
  • जहाज निर्माण और नेविगेशन: लोथल, एक हड़प्पा स्थल , जहां दुनिया का पहला ज्ञात गोदीखाना स्थित था। भारतीय नाविकों ने नौवहन कौशल और समुद्री विज्ञान भी विकसित किया, जो भोज के ‘युक्तिकल्पतरु’ जैसे ग्रंथों में दर्ज हैं।
  • योग: पश्चिमी संदर्भ में ‘विज्ञान’ के रूप में वर्गीकृत न होने के बावजूद, योग स्वास्थ्य और कल्याण की एक व्यापक प्रणाली है जो शारीरिक आसन, प्राणायाम और ध्यान को एकीकृत करती है। पतंजलि के ‘योग सूत्र’ आधुनिक समय में भी प्रभावशाली बने हुए हैं।
  • वनस्पति विज्ञान और कृषि: कौटिल्य (चाणक्य): एक प्राचीन अर्थशास्त्री, दार्शनिक और रणनीतिकार, कौटिल्य ने अपने ग्रंथ “अर्थशास्त्र” में कृषि और सिंचाई विधियों के बारे में लिखा। “ऋग्वेद” जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में विभिन्न पौधों, उनके उपयोग और औषधीय गुणों का उल्लेख है।

निष्कर्ष

निष्कर्षतःप्राचीन भारतीय ज्ञान ज्ञान का एक समृद्ध भंडार प्रदान करता है जिसे कई क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए समकालीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत किया जा सकता है। इस एकीकरण से आधुनिक चुनौतियों का समाधान करने वाले सतत, समग्र समाधान प्राप्त हो सकते हैं

 

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