प्रश्न की मुख्य माग
- म्याँमार में राजनीतिक अस्थिरता का पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर मणिपुर और मिजोरम पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, इस पर प्रकाश डालिए।
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में म्याँमार शरणार्थियों के आगमन के सुरक्षा निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में म्याँमार शरणार्थियों के आगमन के जनसांख्यिकीय प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में म्याँमार शरणार्थियों के आगमन के आर्थिक प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
वर्ष 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से म्याँमार की राजनीतिक उथल-पुथल का पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर मणिपुर और मिजोरम पर गहरा असर पड़ा है। व्यापक हिंसा ने सीमा पर तनाव और नृजातीय तनाव को बढ़ावा देते हुते शरणार्थियों की आमद को बढ़ावा दिया है और सीमा पार व्यापार को बाधित किया है। तब से इन राज्यों में हुए जनसांख्यिकीय परिवर्तनों ने उनके सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को काफी प्रभावित किया है, जिससे मौजूदा क्षेत्रीय जटिलताएँ और बढ़ गई हैं।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में म्याँमार शरणार्थियों की आमद के निहितार्थ
सुरक्षा निहितार्थ
- विद्रोही गतिविधियों में वृद्धि: पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (PDF) और नृजातीय सशस्त्र संगठन (EAO) जैसे विद्रोही समूह अक्सर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए शरणार्थी आंदोलनों का उपयोग कवर के रूप में करते हैं।
- उदाहरण के लिए: नवंबर 2023 में मणिपुर में म्याँमार से हथियारों की तस्करी करने वाले नेटवर्क को पकड़ा गया, जिससे विद्रोहियों और सीमा पार शरणार्थी आंदोलन के बीच संबंधों का पता चला।
- हथियारों और नशीले पदार्थों का प्रसार: इस प्रवाह ने सीमा पार से हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी को बढ़ा दिया है, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हुआ है।
- उदाहरण के लिए: मणिपुर में म्याँमार के ‘गोल्डन ट्राइंगल’ से मादक पदार्थों की तस्करी में उछाल देखा गया है। वर्ष 2024 में हेरोइन की जब्ती में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है ।
- सीमा प्रबंधन में चुनौतियाँ: शरणार्थियों की लगातार बढ़ती आमद ने भारत के सीमा सुरक्षा ढाँचे पर दबाव डाला है। जहाँ मिजोरम ने नृजातीय संबंधों के कारण शरणार्थियों का स्वागत किया है, वहीं मणिपुर में तनाव देखा गया है, जिसके कारण सीमा पर बाड़ लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं और वर्ष 2024 में फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।
- मणिपुर में नृजातीय तनाव: म्याँमार के शरणार्थियों की आमद, मुख्य रूप से चिन-कुकी-जोमी समुदाय से, ने मैतेई-कुकी संघर्ष को तेज कर दिया है जिससे नृजातीय तनाव और सांप्रदायिक हिंसा बढ़ गई है।
जनसांख्यिकीय निहितार्थ
- मिजोरम में जनसंख्या दबाव: शरणार्थियों की संख्या में अचानक वृद्धि के साथ, मिजोरम की छोटी आबादी को आवास, स्वास्थ्य सेवा और भोजन की बढ़ती माँग का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सार्वजनिक संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिए: दिसंबर 2024 तक, 35,000 से अधिक म्याँमार शरणार्थी मिजोरम में बस गए, जिससे आइजोल और आस-पास के जिलों में शहरी भीड़भाड़ बढ़ गई।
- राज्यविहीनता और पहचान संघर्ष का जोखिम: कई शरणार्थियों के पास आधिकारिक दस्तावेज नहीं होते, जिससे वे शोषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और भारत की नागरिकता नीतियों और शासन को जटिल बना देते हैं।
- उदाहरण के लिए: मिजोरम में शरणार्थी अक्सर अस्थायी आश्रयों में रहते हैं, जिनकी कोई स्पष्ट कानूनी स्थिति नहीं होती, जिससे वे जीवित रहने के लिए स्थानीय समुदायों पर निर्भर हो जाते हैं ।
- अंतर-समुदाय तनाव: शरणार्थियों के दीर्घकालिक निवास से स्थानीय लोगों और प्रवासियों के बीच सामाजिक दरार उत्पन्न हो सकती है, जिससे भूमि अधिकारों और नौकरी की प्रतिस्पर्द्धा को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- कानून और व्यवस्था में चुनौतियाँ: खुली सीमाओं के जरिए शरणार्थियों की अनियंत्रित आवाजाही अपराध निगरानी में बाधा डालती है, जिससे सुरक्षा जोखिम बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: म्याँमार के विद्रोही और ड्रग तस्कर, अवैध व्यापार और तस्करी के लिए संकट का लाभ उठाते हैं।
आर्थिक निहितार्थ
- सार्वजनिक सेवाओं पर दबाव: जनसंख्या में अचानक वृद्धि ने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और कल्याण कार्यक्रमों पर दबाव डाला है, जिससे स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिए धन की उपलब्धता कम हो गई है।
- उदाहरण के लिए: मिजोरम को शरणार्थियों को भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए राज्य के धन का पुनर्वितरण करना पड़ा, जिससे राज्य में प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में देरी हुई।
- सीमा पार व्यापार में गिरावट: म्याँमार में हुई हिंसा ने सीमावर्ती बाजारों और सीमा पार व्यापार को बाधित किया है, जिससे मणिपुर और मिजोरम में व्यापार को नुकसान पहुँचा है।
- उदाहरण के लिए: मोरेह, एक प्रमुख सीमावर्ती शहर में व्यापार की मात्रा में भारी गिरावट देखी गई, जिससे कई व्यापारियों को अपनी दुकानें बंद करने और वैकल्पिक आय की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- अनौपचारिक श्रम बाजार में वृद्धि: औपचारिक रोजगार पाने में असमर्थ शरणार्थी अक्सर कम वेतन वाली अनौपचारिक नौकरियाँ करने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे स्थानीय मजदूरों के साथ प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न होती है।
- आवास और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती लागत: भोजन, आश्रय और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती माँग के कारण कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे स्थानीय आबादी के जीवनयापन की लागत प्रभावित हुई है ।
- कनेक्टिविटी परियोजनाओं को खतरा: म्याँमार में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण प्रमुख क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ बाधित हुई हैं, जिससे सीमा पार व्यापार और आर्थिक एकीकरण प्रभावित हुआ है।
- उदाहरण के लिए भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना, जो दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ पूर्वोत्तर भारत के व्यापार को बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है, इस मार्ग पर संघर्ष और सुरक्षा खतरों के कारण रुकी हुई है।
आगे की राह
- सीमा प्रबंधन को मजबूत करना: भारत को बेहतर सीमा निगरानी लागू करनी चाहिए, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वास्तविक शरणार्थियों को मानवीय सहायता मिले।
- उदाहरण के लिए: बायोमेट्रिक-आधारित शरणार्थी पंजीकरण प्रणाली की शुरुआत म्याँमार प्रवासियों को अधिक प्रभावी ढंग से ट्रैक और प्रबंधित करने में मदद कर सकती है।
- मानवीय सहायता बढ़ाना: भारत को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर राहत शिविर स्थापित करने चाहिए और शरणार्थियों के लिए भोजन, चिकित्सा सहायता और शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: UNHCR के साथ साझेदारी करके सीमावर्ती क्षेत्रों के पास बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और स्कूली शिक्षा सुविधाओं के साथ अस्थायी आश्रय स्थापित करने में मदद मिल सकती है।
- आर्थिक अवसरों को पुनर्जीवित करना: सीमा व्यापार और हाटों को फिर से शुरू करने से शरणार्थियों और स्थानीय लोगों दोनों को रोजगार सृजित करने और सीमावर्ती शहरों में अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
- उदाहरण के लिए: भारत, मोरेह के सीमा व्यापार बाजार को फिर से खोल सकता है, जिससे म्याँमार के साथ सख्त सुरक्षा निगरानी के तहत विनियमित व्यापार की अनुमति मिल सके।
- म्याँमार के साथ कूटनीतिक जुड़ाव: भारत को लोकतांत्रिक परिवर्तन और शांति-निर्माण प्रयासों का समर्थन करने के लिए क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम करके म्याँमार में स्थिरता के लिए प्रयास करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारत म्याँमार में राजनीतिक संवाद और संघर्ष समाधान को प्रोत्साहित करने के लिए ASEAN और म्याँमार के पड़ोसियों के साथ जुड़ सकता है।
- सामुदायिक एकीकरण कार्यक्रम: शरणार्थियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों को लागू करने से आर्थिक तनाव कम हो सकता है और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिल सकता है।
- उदाहरण के लिए: सरकार कृषि और हस्तशिल्प प्रशिक्षण पहल शुरू कर सकती है, जिससे शरणार्थी स्थानीय लोगों को विस्थापित किए बिना उत्पादक रूप से योगदान दे सकें।
शरणार्थियों प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो अपनी मानवीय प्रतिबद्धताओं को कायम रखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करे। सीमा प्रबंधन, कूटनीतिक जुड़ाव और शरणार्थियों के लिए आजीविका के अवसरों को मजबूत करके चुनौतियों को कम किया जा सकता है। आसियान और म्याँमार के पड़ोसियों के साथ एक सहकारी क्षेत्रीय ढाँचा, पूर्वोत्तर भारत में दीर्घकालिक स्थिरता, आर्थिक प्रत्यास्थता और जनसांख्यिकीय सद्भाव के लिए महत्त्वपूर्ण है।
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