प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत-भूटान सीमा पार रेलवे परियोजनाओं का महत्त्व
- कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ।
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उत्तर
हाल ही में घोषित भारत–भूटान अंतर–सीमा रेल परियोजनाएँ कोकराझार (असम) से गेलेफू (भूटान) तथा बनरहाट (पश्चिम बंगाल) से समत्से (भूटान) द्विपक्षीय संबंधों में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर हैं। ये परियोजनाएँ संपर्क, आर्थिक सहयोग, और रणनीतिक गहराई को सुदृढ़ करेंगी। यह पहल क्षेत्रीय भू-राजनीति में हो रहे परिवर्तनों के प्रति भारत की सक्रिय प्रतिक्रिया है, जो विकासात्मक लाभ प्रदान करते हुए दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में भारत की रणनीतिक चिंताओं को भी संबोधित करती है।
भारत–भूटान अंतर–सीमा रेल परियोजनाओं का महत्त्व
- रणनीतिक रूप से भारत–भूटान संबंधों की सुदृढ़ता: यह परियोजनाएँ भारत के प्रभाव को भूटान में मजबूत करती हैं, जो चीन से कूटनीतिक संबंध नहीं रखता।
- उदाहरण: ये रेल परियोजनाएँ दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते कूटनीतिक प्रसार के बीच भूटान की भारत-केंद्रित नीति को सुदृढ़ करती हैं।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा: ये परियोजनाएँ द्विपक्षीय व्यापार, पर्यटन, और रोजगार सृजन को गति देंगी।
- उदाहरण: परिवहन लागत में कमी, वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही और पर्यटन में वृद्धि से भूटान और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
- क्षेत्रीय संपर्क में सुधार: यह परियोजनाएँ भारत के पूर्वोत्तर को भूटान से जोड़कर दूरस्थ क्षेत्रों के एकीकरण में सहायक होंगी।
- उदाहरण: कोकराझार–गेलेफू (Kokrajhar–Gelephu) और बनरहाट–समत्से (Banarhat–Samtse) रेल लाइनें सीमा पार लोगों और सामान की आवाजाही को सहज बनाएँगी।
- भू–राजनीतिक और सुरक्षा लाभ: यह परियोजनाएँ “चिकन नेक” कॉरिडोर के पास रणनीतिक अवसंरचना प्रदान करती हैं, जो सैनिकों और संसाधनों की तेजी से तैनाती में सहायक होगी।
- उदाहरण: यह भारत की सीमावर्ती सुरक्षा क्षमता को चीन के नजदीकी इलाकों में मजबूत करेगी।
- चीन के क्षेत्रीय प्रभाव का प्रत्युत्तर: ये परियोजनाएँ दक्षिण एशिया में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मुकाबले भारत की सक्रिय रणनीतिक नीति को प्रदर्शित करती हैं।
कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ
- भौगोलिक और इंजीनियरिंग चुनौतियाँ: हिमालयी क्षेत्रों की कठिन भौगोलिक स्थिति और पर्यावरणीय संवेदनशीलता निर्माण को जटिल बनाती है।
- उदाहरण: भूटान के पहाड़ी भू-भाग में सुरंगों और पुलों का निर्माण महँगा और जटिल है।
- वित्तीय और संसाधन सीमाएँ: लगभग ₹4,000 करोड़ की लागत और सीमित बजटीय संसाधन समय पर परियोजना पूर्णता में बाधा बन सकते हैं।
- उदाहरण: बालू–हल्दीबाड़ी रेलवे परियोजना भी फंडिंग की कमी के कारण विलंबित हुई थी।
- पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ:बड़े पैमाने की रेल परियोजनाएँ वन कटाई, आवासीय क्षति और स्थानीय विस्थापन का जोखिम बढ़ाती हैं।
- उदाहरण: कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट में वन स्वीकृति और विस्थापन को लेकर स्थानीय विरोध हुआ था।
- द्विपक्षीय समन्वय और नियामक बाधाएँ: सुचारु क्रियान्वयन के लिए भूमि अधिग्रहण, परमिट, और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं पर दोनों देशों के मध्य सशक्त सहयोग आवश्यक है।
- उदाहरण: भारत और भूटान के विभिन्न भूमि कानून और अनुमोदन समयसीमा) में असमानता कोकराझार–गेलेफू रेल लिंक में विलंब का कारण बन सकती है।
- सुरक्षा जोखिम: संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों के निकट अवसंरचना परियोजनाएँ
रणनीतिक खतरों के प्रति संवेदनशील होती हैं।
- उदाहरण: “चिकन नेक” कॉरिडोर के पास रेल मार्गों को निगरानी और सुरक्षा की अधिक आवश्यकता होगी ताकि विघटन या जासूसी को रोका जा सके।
निष्कर्ष
भारत–भूटान रेल पहल एक ऐसी रणनीतिक दृष्टि को दर्शाती है, जो विकासात्मक लाभ और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन स्थापित करती है। यह परियोजना दोनों देशों के बीच संपर्क और संबंधों को गहरा बनाएगी, परंतु इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत और भूटान इन चुनौतियों का सामना निरंतर सहयोग, तकनीकी नवाचार और रणनीतिक दूरदृष्टि के साथ कैसे करते हैं।
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