Q. भारत के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों की जाँच कीजिये और देश के सकल घरेलू उत्पाद एवं रोजगार सृजन में इसके योगदान को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • देश के सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार सृजन में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, कृषि और उद्योग के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो आर्थिक विकास और रोजगार में महत्वपूर्ण योगदान देता है। फलों, सब्जियों और दूध का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद , इस उत्पाद का केवल 2% ही प्रसंस्कृत किया जाता है। इस क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने, खाद्य अपव्यय को कम करने और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं।

भारत के आर्थिक विकास में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का महत्व

  • रोजगार सृजन: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रोजगार अवसर प्रदान करता है, जो गरीबी उन्मूलन में योगदान देता है । 
    • उदाहरण के लिए: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) का अनुमान है, कि यह क्षेत्र 1.93 मिलियन लोगों को सीधे तौर पर रोजगार देता है , जिसमें लघु-स्तरीय खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के माध्यम से ग्रामीण कार्यबल में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है।
  • खाद्य अपव्यय को कम करना: कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण से खाद्य अपव्यय को कम करने में मदद मिलती है क्योंकि इससे उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: ICAR के अनुसार , भारत में कटाई के बाद फलों और सब्जियों का नुकसान प्रतिवर्ष 2 लाख करोड़ से अधिक है, लेकिन बेहतर खाद्य प्रसंस्करण से इसे बहुत कम किया जा सकता है।
  • किसानों की आय में वृद्धि: खाद्य प्रसंस्करण में मूल्य संवर्धन, सीधे किसानों की आय में वृद्धि करता है, क्योंकि इससे उनके उत्पादों का बाजार मूल्य बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) ने किसानों को खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से अधिक लाभ कमाने में सक्षम बनाया है।
  • कृषि निर्यात को बढ़ावा देना: प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद, कृषि निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिससे वैश्विक बाजारों में भारत की स्थिति मजबूत होती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के पास कृषि-खाद्य निर्यात में प्रसंस्कृत-खाद्य निर्यात का 25.6% हिस्सा है, जिसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना और प्रधानमंत्री खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के  औपचारिकरण जैसी सरकारी पहलों का समर्थन प्राप्त है ।
  • ग्रामीण-शहरी प्रवास में कमी: स्थानीय रोजगार उपलब्ध कराकर, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ग्रामीण-शहरी प्रवास में कमी लाता है जिससे संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: मेगा फूड पार्क जैसी पहलों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित किए हैं, शहरी केंद्रों की ओर पलायन को रोका है और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान दिया है।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • आपूर्ति श्रृंखला की अक्षमताएँ: विखंडित कृषि जोत और खराब आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन इस क्षेत्र के विकास को सीमित करते हैं, जिससे खाद्यान्न की बर्बादी होती है और लागत बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में, एकीकृत कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी का अर्थ है, कि केवल 10% खराब होने वाले उत्पादों को कुशलतापूर्वक संग्रहीत किया जाता है, जिससे खाद्य गुणवत्ता और बाजार की उपलब्धता प्रभावित होती है।
  • मूल्य संवर्धन का निम्न स्तर: यह क्षेत्र निम्न मूल्य संवर्धन से ग्रस्त है, विशेष रूप से फलों और सब्जियों में, जहां उत्पादन का केवल 2% ही प्रसंस्कृत किया जाता है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: इस उद्योग में उन्नत मशीनरी को संचालित करने और वैश्विक सुरक्षा मानकों का पालन करने के लिए पर्याप्त रूप से कुशल कर्मियों की कमी है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के अनुसार, माँग को पूरा करने के लिए वर्ष 2025 तक 17.8 मिलियन श्रमिकों को खाद्य प्रसंस्करण में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • जटिल विनियामक वातावरण: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कई कानून और विनियमन, प्रशासनिक देरी और जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: FSSAI, APEDA की ओर से होने वाली विनियामक बाधाएँ और विभिन्न मंत्रालयों के अधिकार क्षेत्र का एक दूसरे से ओवरलैप होना, व्यापार अनुमोदन और बुनियादी ढाँचे के विकास को धीमा कर देता है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खराब बुनियादी ढाँचा, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के कुशल विकास में बाधा डालता है। 
    • उदाहरण के लिए: अपर्याप्त सड़क संपर्क और प्रसंस्करण इकाइयों के असमान वितरण के परिणामस्वरूप प्रसंस्करण क्षमता और बाजारों तक पहुँच में क्षेत्रीय असमानताएँ होती हैं।

सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार सृजन में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान बढ़ाने के उपाय

  • कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार: खाद्य अपव्यय को कम करने और जल्दी खराब होने वाले सामानों का
    समय पर परिवहन सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड चेन और लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना आवश्यक है।

    • उदाहरण के लिए: एकीकृत कोल्ड चेन योजना के तहत, सरकार ने 376 कोल्ड चेन परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिससे फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी आएगी और प्रसंस्करण क्षमता में वृद्धि होगी।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को मजबूत करना: प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करने से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: मेगा फूड पार्क योजना निजी निवेश को प्रोत्साहित करती है, और सरकार की योजना वर्ष 2025 तक कुल 40 मेगा फूड पार्क स्थापित करने की है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश बढ़ाने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है
  • कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कार्यबल की कमी को दूर किया जा सकता है।
  • विनियामक ढांचे को सरल बनाना: विनियामक वातावरण को सरल बनाने से व्यवसायों के लिए खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रवेश करना और परिचालन को बढ़ाना आसान हो जाएगा। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य व्यवसायों के लिए अनुमोदन समय को कम करने और सिंगल -विंडो मंजूरी बनाने के लिए कदम उठाए हैं।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देने, किसानों की आय बढ़ाने और रोजगार उत्पन्न करने की अपार संभावनाएं हैं। बुनियादी ढांचे में निवेश करके, आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार करके और नियामक चुनौतियों का समाधान करके, भारत अपने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की पूरी क्षमता का दोहन कर सकता है। एक संधारणीय और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, देश की GDP और ग्रामीण समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देगा।

 

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