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Q. भारत की पिछली परमाणु नीति की विशिष्ट सीमाओं पर चर्चा कीजिए जो परमाणु प्रौद्योगिकी की पूर्ण रणनीतिक और आर्थिक क्षमता को साकार करने से रोकती हैं। सुझाव दीजिए कि एआई के परिवर्तनकारी उत्थान का दोहन करने हेतु भारत को विशिष्ट नीतिगत उपाय अपनाने चाहिए। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण के बाद से भारत की परमाणु नीति के ऐतिहासिक संदर्भ पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए।  
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • परमाणु हथियार का पहले प्रयोग न करने की नीति से भारत की रक्षात्मक मुद्रा पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
    • 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद परमाणु क्षमताओं के धीमे संचालन और उसके निहितार्थों की जांच कीजिए।
    • एनएसजी में भारत की सदस्यता का न होना और वैश्विक परमाणु प्रौद्योगिकी तक इसकी पहुंच पर एनपीटी की गैर-हस्ताक्षरकर्ता स्थिति के प्रभावों का पता लगाएं।
    • न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध पर ध्यान केंद्रित करने के कारण तकनीकी प्रगति में आने वाली सीमाओं का विश्लेषण कीजिए।
    • एआई(Artificial intelligence) का लाभ उठाने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएं।
  •  निष्कर्ष: भारत की परमाणु नीति के रणनीतिक और तकनीकी पुनरोद्धार की आवश्यकता पर बल देते हुए निष्कर्ष निकालिए।

 

प्रस्तावना:

भारत की परमाणु नीति, 1974 में पहले सफल परमाणु परीक्षण के साथ अपनी शुरुआत के बाद से, महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक महत्व का विषय रही है। हालाँकि इसने देश की रक्षा मुद्रा और भू-राजनीतिक कद को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन कुछ अंतर्निहित सीमाओं ने इसे अपनी पूरी क्षमता का दोहन करने से रोक दिया है।

मुख्य विषयवस्तु:

भारत की परमाणु नीति की सीमाएँ

  • रणनीतिक संयम
    • परमाणु हथियार का पहले प्रयोग न करने की नीति: एनएफयू(No-First-Use Policy) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता उसके परमाणु सिद्धांत की आधारशिला रही है, जो सक्रिय निरोध के बजाय रक्षात्मक रुख पर जोर देती है।
    • धीमा परिचालन: 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद, परिचालन क्षमताओं को विकसित करने में धीमी गति ने सैन्य उपयोगिता से अधिक प्रतीकात्मक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया।
  • आर्थिक एवं तकनीकी बाधाएँ
    • एनएसजी से बहिष्करण: एनपीटी की गैर-हस्ताक्षरकर्ता स्थिति और एनएसजी से बहिष्करण के कारण वैश्विक परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्रियों तक पहुंच सीमित हो गई है, जिससे आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
    • सीमित तकनीकी उन्नति: न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध पर ध्यान उभरते तकनीकी खतरों और गतिशील रणनीतिक वातावरण को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर सकता है।

एआई का लाभ उठाने के लिए नीतिगत उपाय

  • नीति का पुनर्मूल्यांकन
    • परमाणु हथियार का पहले प्रयोग न करने की नीति पर दोबारा गौर करना: बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में निवारक क्षमताओं को बढ़ाने हेतु एनएफयू नीति के रणनीतिक पुनर्गणना पर विचार करना जरूरी है।
    • परमाणु रणनीति में एआई का एकीकरण: बेहतर निर्णय लेने, निगरानी और प्रतिक्रिया तंत्र के लिए C3I सिस्टम में एआई(Artificial intelligence) का उपयोग करना।
  • तकनीकी एवं आर्थिक विकास
    • परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों का विस्तार: परमाणु रिएक्टर संचालन और सुरक्षा प्रोटोकॉल को अनुकूलित करने के लिए एआई का लाभ उठाना।
    • एनएसजी की सदस्यता के लिए राजनयिक प्रयास: वैश्विक परमाणु बाजारों और प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त करने के लिए एनएसजी की सदस्यता के लिए राजनयिक गतिविधियों को तेज करना।
  • सहयोगात्मक अनुसंधान एवं विकास
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार, शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र के बीच एआई और परमाणु प्रौद्योगिकी अनुसंधान में सहयोग को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

भारत की परमाणु नीति, क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायक होने के बावजूद, समकालीन चुनौतियों का सामना करने और अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिए रणनीतिक और तकनीकी पुनरोद्धार की आवश्यकता है। इस परिवर्तन में एआई को एक प्रमुख तत्व के रूप में अपनाने से भारत को रक्षा और आर्थिक दोनों क्षेत्रों में रणनीतिक बढ़त मिल सकती है। तकनीकी नवाचार के साथ एक सूक्ष्म नीतिगत बदलाव, न केवल भारत की परमाणु स्थिति को सशक्त करेगा बल्कि इसे एआई और परमाणु प्रौद्योगिकी के उभरते गठजोड़ में एक अग्रणी देश के रूप में भी स्थापित करेगा।

 

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