Q. भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि यह भारत के सभ्यतागत लोकाचार और बहुलवादी विरासत का प्रतिबिंब है। संविधान सभा में विचार-विमर्श और विविध प्रतिनिधित्व के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिये कि संविधान सभा में विचार-विमर्श और विविध प्रतिनिधित्व के संदर्भ में भारतीय संविधान किस प्रकार भारत के सभ्यतागत लोकाचार का प्रतिबिंब है।
  • चर्चा कीजिए कि संविधान सभा में विचार-विमर्श और विविध प्रतिनिधित्व के संदर्भ में भारतीय संविधान किस प्रकार भारत की बहुलवादी विरासत का प्रतिबिंब है।

उत्तर

भारतीय संविधान महज कानूनी ढाँचे से कहीं आगे है; यह भारत के सभ्यतागत लोकाचार और बहुलवादी विरासत का प्रतीक है। संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया यह संविधान विविध सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को एकीकृत करता है, जो देश की समृद्ध विविधता के बीच न्याय, समानता और एकता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारतीय संविधान भारत के सभ्यतागत लोकाचार का प्रतिबिंब है

  • धर्म और न्याय का समावेश: संविधान भारत के प्राचीन ग्रंथों से प्रेरणा लेता है, जिसमें न्याय और धार्मिकता पर बल दिया गया है । 
    • उदाहरण के लिए, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत, धर्मशास्त्रों में पाए जाने वाले नैतिक और आचारिक दिशा-निर्देशों को प्रतिबिंबित करते हैं , जिनका उद्देश्य सामाजिक कल्याण और न्याय को बढ़ावा देना है।
  • सामाजिक न्याय पर जोर: ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करते हुए, संविधान हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए सकारात्मक कार्रवाई का आदेश देता है। 
    • उदाहरण: अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है जो जाति-आधारित भेदभाव को मिटाने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • शिक्षा और ज्ञान को बढ़ावा देना: शिक्षा के महत्व को स्वीकार करते हुए, संविधान सभी नागरिकों के लिए शिक्षण तक पहुँच सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण: अनुच्छेद 45 राज्य को 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को बौद्धिक विकास और ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता: संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है, जो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है जो विविध धार्मिक परंपराओं के प्रति भारत के सम्मान को दर्शाता है।
  • रियासतों का एकीकरण: संविधान ने रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने की सुविधा प्रदान की। 
    • उदाहरण के लिए, विलय पत्र के तहत हैदराबाद और जम्मू -कश्मीर जैसी रियासतों को भारत में शामिल होने की अनुमति दी गई, जो देश की एकता के प्रति समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • गांधीवादी सिद्धांतों का प्रभाव: गांधी के आत्मनिर्भर गांवों के सिद्धांतों ने संवैधानिक प्रावधानों को प्रभावित किया। 
    • उदाहरण के लिए, निर्देशक सिद्धांत गांधीवादी आदर्शों के साथ तालमेल बिठाते हुए ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान की वकालत करते हैं।
  • संसदीय प्रणाली को अपनाना: संविधान शासन की संसदीय प्रणाली को अपनाता है, जो सामूहिक निर्णय लेने और समावेशी प्रतिनिधित्व की परंपरा में निहित भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार को प्रतिबिंबित करता है।

भारतीय संविधान भारत की बहुलवादी विरासत का प्रतिबिंब है

  • संविधान सभा में विविध प्रतिनिधित्व: संविधान सभा में विभिन्न समुदायों, क्षेत्रों और पृष्ठभूमियों के सदस्य शामिल थे। 
    • उदाहरण के लिए हंसा मेहता और राजकुमारी अमृत कौर जैसी नेताओं ने महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय की वकालत की, जिससे संवैधानिक ढाँचे में विविध दृष्टिकोण सुनिश्चित हुए।
  • अल्पसंख्यक अधिकारों का संरक्षण: संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है और समावेशिता को बढ़ावा देता है। अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों को उनकी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने की अनुमति देकर उनके हितों की रक्षा करता है।
  • भाषाई विविधता की मान्यता: भारत की भाषाई विविधता को स्वीकार करते हुए संविधान में कई भाषाओं का प्रावधान किया गया है। 
    • उदाहरण के लिए, आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिससे भाषाई प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक संरक्षण सुनिश्चित होता है।
  • सांस्कृतिक अधिकारों की पुष्टि: संविधान सभी नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों को बरकरार रखता है और  विविधता में एकता को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरणार्थ: अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार देता है।
  • सामाजिक समानता को बढ़ावा देना: संविधान का उद्देश्य सामाजिक पदानुक्रम को खत्म करना और समानता को बढ़ावा देना है। अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है तथा सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहन: धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए, संविधान बहुलवादी समाज को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण: अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, जिससे धार्मिक स्वायत्तता और विविधता को बढ़ावा मिलता है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता: संविधान एक लोकतांत्रिक ढाँचा स्थापित करता है, जो राष्ट्र के बहुलवादी लोकाचार को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया में समान भागीदारी सुनिश्चित करता है, समानता के सिद्धांत को कायम रखता है।

भारतीय संविधान देश की सभ्यतागत लोकाचार और बहुलवादी विरासत का प्रमाण है। अपने समावेशी प्रावधानों और न्याय, समानता और एकता के प्रति प्रतिबद्धता के माध्यम से, यह भारत को एक सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील भविष्य की ओर ले जाता है, जो इसकी विविध आबादी की आकांक्षाओं को दर्शाता है।

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