Q. उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन एवं बागवानी की ओर भारत की कृषि के विविधीकरण ने नए बाजार के अवसर खोले हैं। इस बदलाव से भारतीय किसानों के समक्ष आने वाले अवसरों एवं चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन एवं बागवानी की ओर भारत की कृषि के विविधीकरण पर प्रकाश डालिए। 
  • मूल्यांकन कीजिये कि उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन एवं बागवानी की ओर भारत की कृषि के विविधीकरण ने बाजार के नए अवसर खोले हैं। 
  • इस बदलाव से भारतीय किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए। 
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

भारत का कृषि क्षेत्र चावल एवं गेंहूँ जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों से लेकर उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन तथा बागवानी तक विविधतापूर्ण रहा है। यह बदलाव किसानों की उच्च आय, बेहतर संसाधन उपयोग एवं बदलती उपभोक्ता माँगों को पूरा करने की आवश्यकता से प्रेरित है। आम, केले एवं पपीते के वैश्विक उत्पादन में भारत पहले स्थान पर है तथा यह बदलाव देश के कृषि मूल्य निर्माण एवं स्थिरता को बढ़ा रहा है।

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उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन एवं बागवानी की ओर भारत की कृषि का विविधीकरण

  • बागवानी पर ध्यान: भारत ने फलों, सब्जियों एवं फूलों के अपने उत्पादन का विस्तार किया है, जिसमें बागवानी ने कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में बागवानी उत्पादन वर्ष 2020-21 में रिकॉर्ड 331 मिलियन टन तक पहुँच गया, जो खाद्यान्न उत्पादन से भी आगे निकल गया, जो विविधीकरण प्रयासों की सफलता को उजागर करता है।
  • पशुधन विस्तार: डेयरी, पोल्ट्री एवं मांस उत्पादन की ओर बदलाव से ग्रामीण आय में वृद्धि हुई है तथा पोषण में सुधार हुआ है।
    • उदाहरण के लिए: डेयरी क्षेत्र कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 28% योगदान देता है, जिसमें भारत विश्व स्तर पर सबसे बड़ा दूध उत्पादक है।
  • उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों को अपनाना: मसालों, औषधीय पौधों एवं फूलों जैसी फसलों की खेती ने किसानों को अधिक आकर्षक विकल्प प्रदान किए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु ने आम, केले एवं मसाले उगाने में विविधता ला दी है, जिससे मुख्य फसलों की तुलना में कृषि मूल्य 39% अधिक हो गया है।
  • कृषि-निर्यात एवं मूल्य श्रृंखला: बागवानी एवं पशुधन में विविधीकरण ने किसानों को वैश्विक बाजारों में प्रवेश करने में सक्षम बनाया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत मसालों एवं समुद्री उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसमें कृषि निर्यात कुल निर्यात का 10% है।
  • फसल सघनता में वृद्धि: विविधीकरण ने किसानों को एक वर्ष में कई फसलें उगाने में सक्षम बनाया है, जिससे फसल गहनता एवं समग्र उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

कृषि विविधीकरण के संदर्भ में बाजार के लिए अवसर

  • जैविक उत्पाद की उच्च माँग: जैविक कृषि की ओर बदलाव ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात के नए अवसर खोले हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के पहले जैविक राज्य के रूप में सिक्किम ने इलायची, अदरक एवं हल्दी जैसी जैविक उपज की उच्च निर्यात माँग का अनुभव किया है।
  • कृषि-निर्यात क्षेत्रों में विस्तार: उच्च मूल्य वाली फसलों एवं पशुधन में विविधीकरण से निर्यात क्षमता में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कृषि-निर्यात जोन (AEZs) की स्थापना से सब्जी निर्यात में आसानी हुई है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
  • डेयरी एवं पोल्ट्री बाजारों का विकास: पशुधन खेती में बदलाव ने घरेलू एवं निर्यात बाजार के अपार अवसर उत्पन्न किए हैं। 
  • मूल्यवर्द्धन एवं कृषि-प्रसंस्करण: विविधीकरण ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में विकास को बढ़ावा दिया है, जिससे जूस, अचार एवं जैम जैसे मूल्यवर्द्धित उत्पाद तैयार हुए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ‘मेगा फूड पार्क’ योजना ने आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कृषि-प्रसंस्करण को बढ़ावा दिया है, जिससे किसानों के लिए रोजगार एवं बाजार संपर्क बढ़ा है।
  • कृषि-पर्यटन एवं प्रत्यक्ष बाजार संपर्क: कृषि-पर्यटन एवं प्रत्यक्ष विपणन (फार्म-टू-कंज्यूमर) में संलग्न किसानों को अतिरिक्त राजस्व सृजन से लाभ हुआ है। 
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र में कृषि-पर्यटन ने किसानों को वैकल्पिक आय प्रदान की है, U-पिक फार्म एवं पर्यटन-संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।

कृषि विविधीकरण से किसानों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ

  • बाजार तक पहुँच का अभाव: किसानों को विविध फसलों के लिए नए बाजारों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे कीमतों में अस्थिरता एवं आय में अनिश्चितता उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिए: छोटे पैमाने पर बागवानी करने वाले किसान अक्सर खराब होने वाली वस्तुओं के लिए विश्वसनीय खरीदार खोजने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे फसल के बाद नुकसान होता है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: जल्द खराब होने वाले उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं एवं प्रसंस्करण इकाइयों की कमी किसानों के लिए बागवानी में विविधता लाने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की केवल 10% खराब होने वाली उपज को कोल्ड स्टोरेज से लाभ होता है, जिसके परिणामस्वरूप फलों एवं सब्जियों को काफी नुकसान होता है।
  • इनपुट की उच्च लागत: उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधता लाने के लिए बीज, उपकरण एवं प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है, जो छोटे किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: जैविक कृषि पद्धतियों में अक्सर अग्रिम लागत अधिक होती है, जिससे संसाधन-विवश किसानों के लिए बदलाव करना मुश्किल हो जाता है।
  • जलवायु संबंधी कमजोरियाँ: फलों एवं सब्जियों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, जिससे फसल के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: अनियमित वर्षा एवं सूखे ने महाराष्ट्र में बागवानी उत्पादन को प्रभावित किया है, जिससे पैदावार तथा किसानों की आय में कमी आई है।
  • नीति एवं समर्थन अंतराल: किसानों को अक्सर गैर-पारंपरिक फसलों के लिए सब्सिडी एवं बीमा के मामले में पर्याप्त सरकारी समर्थन की कमी होती है। 
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु में फूलों की खेती की ओर रुख करने वाले किसानों को पारंपरिक खाद्यान्नों की तुलना में समर्पित सब्सिडी की कमी का सामना करना पड़ता है।

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आगे की राह

  • बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं एवं खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को विकसित करने से फसल के बाद के नुकसान को कम करने तथा उच्च मूल्य वाली फसलों के लिए बाजार पहुँच में सुधार करने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: सरकार की ग्रामीण भंडारण योजना ग्रामीण क्षेत्रों में भंडारण बुनियादी ढाँचा प्रदान करके किसानों का समर्थन करती है।
  • बाजार संपर्क बढ़ाना: प्रत्यक्ष विपणन चैनलों, अनुबंध कृषि एवं सहकारी समितियों के माध्यम से खेत-से-बाजार प्रणाली को मजबूत करना किसानों के लिए बेहतर कीमतें सुनिश्चित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: छोटे किसानों के लिए सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति बनाने के लिए सरकार द्वारा किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • जल-कुशल फसलों को बढ़ावा देना: संसाधन स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जल-कुशल फसलों की खेती एवं सतत सिंचाई विधियों को प्रोत्साहित करना। 
    • उदाहरण के लिए: हरियाणा की ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना किसानों को धान से दलहन एवं तिलहन जैसी जल-कुशल फसलों पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • फसल बीमा का विस्तार: उच्च मूल्य वाली फसलों को शामिल करने के लिए फसल बीमा योजनाओं का दायरा बढ़ाने से विविधीकरण से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) बागवानी एवं दालों सहित विभिन्न फसलों के लिए बीमा कवरेज प्रदान करती है।
  • अनुसंधान एवं विकास: उच्च मूल्य वाली फसलों की जलवायु-लचीली किस्मों के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने से उपज स्थिरता में सुधार हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) फलों एवं सब्जियों की उच्च उपज वाली तथा सूखा प्रतिरोधी किस्मों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

उच्च मूल्य वाली फसलों, पशुधन एवं बागवानी की ओर भारत की कृषि का विविधीकरण किसानों के लिए नए बाजार अवसर प्रस्तुत करता है, लेकिन बुनियादी ढाँचे, इनपुट लागत तथा बाजार पहुँच से संबंधित महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। इस बदलाव को संधारणीय बनाने के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे, बेहतर बाजार संपर्क एवं सहायक नीतियाँ आवश्यक हैं। इन चुनौतियों का समाधान करके, भारत कृषि विविधीकरण की पूरी क्षमता का उपयोग कर सकता है तथा किसानों के लिए बेहतर आजीविका सुनिश्चित कर सकता है।

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