Q. डूरंड रेखा मुद्दा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच संबंधों को कैसे जटिल बनाता है? इस सीमा विवाद के ऐतिहासिक और वर्तमान महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिये कि डूरंड रेखा मुद्दा अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं भारत के बीच संबंधों को कैसे जटिल बनाता है। 
  • इस सीमा विवाद के ऐतिहासिक महत्व का मूल्यांकन कीजिये। 
  • इस सीमा विवाद के वर्तमान महत्त्व का मूल्यांकन कीजिये।

उत्तर

ब्रिटिश भारत एवं अफगानिस्तान के बीच वर्ष 1893 में स्थापित डूरंड रेखा, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच एक विवादास्पद सीमा मुद्दा बनी हुई है, जो क्षेत्रीय स्थिरता एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर रही है। अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान दोनों के साथ अपने जटिल संबंधों को देखते हुए, इस सीमा पर तनाव एवं संघर्षों की हालिया खबरों ने चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जिसका असर भारत पर पड़ रहा है। यह विवाद दक्षिण एशियाई भू-राजनीति को आकार देता रहता है।

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डूरंड रेखा का मुद्दा संबंधों को कैसे जटिल बनाता है

  • अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध: डूरंड रेखा पश्तून आबादी को विभाजित करती है, जिससे इसे वैध सीमा के रूप में मान्यता देने में अफगानिस्तान का विरोध होता है, जिससे तनाव बढ़ता है।
  • पश्तून राष्ट्रवाद: पश्तूनों के विभाजन ने राष्ट्रवादी भावनाओं को तेज कर दिया है, जिससे अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान दोनों प्रभावित हो रहे हैं, जिससे द्विपक्षीय संबंध जटिल हो गए हैं।
    • उदाहरण के लिए: पाकिस्तान में पश्तून तहफुज आंदोलन (PTM) पश्तून क्षेत्रों पर इस्लामाबाद के नियंत्रण को चुनौती देते हुए अधिक स्वायत्तता की वकालत करता है।
  • भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव: अफगानिस्तान द्वारा डूरंड रेखा को अस्वीकार करने का भारत पर प्रभाव पड़ता है, जो पाकिस्तान के प्रभाव का विरोध करते हुए क्षेत्र में स्थिरता चाहता है।
    • उदाहरण के लिए: डूरंड रेखा तनाव से जुड़ी अस्थिरता के कारण अफगानिस्तान में भारत की विकास परियोजनाएँ अक्सर बाधित होती हैं।
  • तालिबान की स्थिति: तालिबान, जो अब अफगानिस्तान में सत्ता में है, ने आधिकारिक तौर पर डूरंड रेखा को स्वीकार नहीं किया है, जिससे अपने अफगानिस्तान पर प्रभाव बनाए रखने में पाकिस्तान की रणनीति जटिल हो गई है।
    • उदाहरण के लिए: सीमा पर तालिबानी सेना और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच कई टकराव हुए हैं, जो पाकिस्तान के क्षेत्रीय दावों के प्रतिरोध का संकेत है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: डूरंड रेखा की छिद्रित प्रकृति के कारण सीमा पार आतंकवाद एवं उग्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गई हैं, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभावित हो रही है।
  • भारत के लिए रणनीतिक अवसर: भारत डुरंड रेखा पर अस्थिरता को अफगान संप्रभुता का समर्थन करके अफगानिस्तान में पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करने के अवसर के रूप में देखता है। 
    • उदाहरण के लिए: अफगान नेताओं के साथ भारत की कूटनीतिक वार्ता अक्सर अफगान क्षेत्रीय अखंडता के महत्त्व पर जोर देती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की स्थिति को चुनौती देती है।

डूरंड रेखा विवाद का ऐतिहासिक महत्व

  • औपनिवेशिक विरासत: डूरंड रेखा स्थानीय आबादी से परामर्श किए बिना खींची गई थी, जिससे विभाजन एवं टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई।
    • उदाहरण के लिए: ब्रिटिश भारत एवं अफगानिस्तान के बीच वर्ष 1893 के समझौते में नृजातीय विभाजन को नजरअंदाज किया गया, जिससे दीर्घकालिक विवाद उत्पन्न  हुआ।
  • सोवियत-अफगान युद्ध: सोवियत आक्रमण के दौरान, डूरंड रेखा मुजाहिदीन लड़ाकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण मार्ग बन गई, जिससे इसका रणनीतिक महत्त्व बढ़ गया।
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान ने अफगान लड़ाकों को सहायता पहुँचाने के लिए सीमा का इस्तेमाल किया, जिससे शीत युद्ध की भू-राजनीति में इस सीमा रेखा का महत्त्व बढ़ गया था।
  • भारत का विभाजन: वर्ष 1947 के भारत विभाजन ने डूरंड रेखा मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया, क्योंकि नवगठित पाकिस्तान को विवादास्पद सीमा विरासत में मिली।
    • उदाहरण के लिए: अफगानिस्तान एकमात्र देश था जिसने सीमा विवादों का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रवेश का विरोध किया था।
  • वर्ष 1961 का राजनयिक स्थिरता: विवाद की गहराई को दर्शाते हुए अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान ने डूरंड रेखा को लेकर राजनयिक संबंध तोड़ दिए।
    • उदाहरण के लिए: इस अवधि के दौरान वाणिज्य दूतावासों एवं व्यापार मार्गों के बंद होने से द्विपक्षीय संबंधों पर काफी असर पड़ा।
  • पश्तून पहचान एवं राजनीति: डूरंड रेखा हमेशा पश्तून पहचान का केंद्र बिंदु रही है, जो दोनों देशों में राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित करती है।
    • उदाहरण के लिए: खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे नेताओं ने सीमा पार पश्तून एकता की वकालत करते हुए विभाजन का विरोध किया।

डूरंड रेखा विवाद का वर्तमान महत्त्व

  • तालिबान-पाकिस्तान तनाव: डूरंड रेखा को मान्यता देने में तालिबान की अनिच्छा पाकिस्तान की रणनीतिक गहनता नीति को कमजोर करती है।
    • उदाहरण के लिए: तालिबान एवं पाकिस्तानी सेनाओं के बीच हालिया झड़पें तालिबान की थोपी गई सीमाओं को स्वीकार करने की अनिच्छा का संकेत देती हैं।
  • सीमा पार उग्रवाद: छिद्रपूर्ण सीमा उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा देती है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता एवं आतंकवाद विरोधी प्रयास प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: TTP द्वारा अफगान पनाहगाहों का उपयोग पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण खतरा है।
  • आर्थिक निहितार्थ: सीमा अस्थिरता व्यापार एवं पारगमन मार्गों को बाधित करती है, जिससे अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान की आर्थिक संभावनाएँ प्रभावित होती हैं।|
  • भारत के रणनीतिक हित: यह विवाद अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के लिए उसके पश्चिमी मोर्चे पर दबाव बढाकर पूर्वी सीमा पर पकिस्तान की क्षमता सीमित करता है जिससे भारत को सामरिक बढ़त मिलती है।
  • क्षेत्रीय भू-राजनीति: डूरंड रेखा दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण कारक बनी हुई है, जो चीन एवं अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियों की नीतियों को प्रभावित करती है।

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डूरंड रेखा विवाद दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ी बाधा बना हुआ है, जिससे अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं भारत के बीच रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। हालाँकि इसकी ऐतिहासिक जड़ें औपनिवेशिक नीतिगत कदमों में निहित हैं, इसका वर्तमान प्रभाव सीमा पार उग्रवाद एवं भू-राजनीतिक निर्णयों में स्पष्ट है। इस मुद्दे को हल करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो नृजातीय पहचान का सम्मान करे तथा क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे।

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