Q. मतदाता सूची से नाम हटाने के हालिया विवादों के मद्देनजर, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) विश्वसनीयता संकट का सामना कर रहा है। चुनाव आयोग के खिलाफ कौन से प्रमुख आरोप लगाए गए हैं और इस संवैधानिक पद की अखंडता को बहाल करने और बनाए रखने के लिए कौन से सुधार आवश्यक हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ECI के विरुद्ध लगाए गए प्रमुख आरोपों का उल्लेख कीजिए।
  • इस संवैधानिक पद की अखंडता को बहाल करने और बनाए रखने के लिए आवश्यक सुधारों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

भारतीय निर्वाचन आयोग, जो संविधान के अनुच्छेद-324 के अंतर्गत स्थापित किया गया है, को चुनावों की देख-रेख, निर्देशन और नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। किंतु वर्तमान समय में इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न उठे हैं क्योंकि लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से मनमाने ढंग से हटाए गए। यह स्थिति सर्वोच्च न्यायालय के PUCL बनाम भारत संघ (2003) के उस निर्णय के विपरीत है, जिसमें कहा गया था कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव, अनुच्छेद-19(1)(a) के अंतर्गत मौलिक अधिकार का एक अंग हैं।

चुनाव आयोग के विरुद्ध प्रमुख आरोप

  • मतदाता सूची में अस्पष्ट विलोपन: बिहार में लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम बिना किसी स्पष्ट खुलासे और उचित कारण बताए मतदाता सूची से हटा दिए गए। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शिता के अभाव को दर्शाती है बल्कि चुनावी निष्पक्षता और अखंडता को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है। 
    • उदाहरण: हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि हटाए गए मतदाताओं के नाम तथा हटाने के कारणों को एक खोज योग्य प्रारूप (Searchable Mode)  में प्रकाशित किया जाए, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
  • चुनाव के बाद मतदाता डेटा साझा न करना: निर्वाचन आयोग ने चुनावों के उपरांत मशीन-रीडेबल मतदाता सूचियों को साझा करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण स्वतंत्र समीक्षा और नागरिक समाज द्वारा जाँच की प्रक्रिया बाधित हुई। इससे आयोग पर पक्षपातपूर्ण आचरण के आरोप और भी बढ़ गए। 
    • उदाहरण: वर्ष 2025 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि महाराष्ट्र और हरियाणा में मतदाता सूची उपलब्ध कराने की माँग पर निर्वाचन आयोग तीन माह के भीतर कार्यवाही करे।
  • राजनीतीकरण के आरोप: निर्वाचन आयोग पर यह आरोप लगाया गया कि उसने सत्तारूढ़ दलों के पक्ष में झुकाव दिखाया। इससे विपक्षी दलों में आयोग की निष्पक्षता को लेकर गहरा अविश्वास उत्पन्न हुआ और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा।
    • उदाहरण: बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग ने सत्तारूढ़ दल को अनुचित संरक्षण प्रदान किया।
  • पहचान दस्तावेजों का स्वच्छंद रूप से बहिष्करण: निर्वाचन आयोग ने आधार सहित कई व्यापक रूप से प्रचलित पहचान-पत्रों को बिना किसी स्पष्ट वैधानिक आधार के स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस निर्णय से बड़ी संख्या में मतदाताओं के समावेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और लोकतांत्रिक भागीदारी संकुचित हुई। 
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान प्रभावित मतदाताओं के लिए आधार को वैध पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया।
  • जवाबदेही तंत्र का अभाव: निर्वाचन आयोग में समयबद्ध शिकायत निवारण व्यवस्था का अभाव रहा, जिसके कारण कई गंभीर अनियमितताएँ बिना किसी ठोस कार्रवाई के जारी रहीं। इससे आयोग की कार्यकुशलता और निष्पक्षता दोनों पर प्रश्न उठे। 
    • उदाहरण: ECI ने राजनीतिक दलों के कई लिखित अभ्यावेदनों पर प्रतिक्रिया देने में देरी की।
  • जिम्मेदारी से बचने का प्रयास: निर्वाचन आयोग ने महत्त्वपूर्ण डेटा को सार्वजनिक न करके राजनीतिक दलों पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने समय रहते मुद्दों को उजागर नहीं किया। यह दृष्टिकोण प्रशासनिक दक्षता की कमी तथा जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
    • उदाहरण: मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ने प्रेस वार्ता में संस्थागत त्रुटियों को स्वीकार करने के बजाय बूथ-स्तरीय एजेंटों की जिम्मेदारियों का हवाला दिया।

अखंडता बहाल करने के लिए आवश्यक सुधार

  • मतदाता सूची प्रकाशन के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी समय सीमा: मतदाता सूचियों में किए गए परिवर्तनों (नाम जोड़ने अथवा हटाने) को समयबद्ध और बाध्यकारी तरीके से प्रकाशित किया जाए। यह प्रकाशन ऐसा हो, जो सार्वजनिक रूप से खोजने योग्य हो तथा प्रत्येक नामांकन/बहिष्करण के कारण स्पष्ट रूप से अंकित हों।  
    • उदाहरण: बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने के मामले में वर्ष 2025 में सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश इस दिशा में एक मिसाल प्रस्तुत करता है।
  • नियुक्तियों में स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना: मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया आवश्यक है। इसके लिए कोलेजियम प्रणाली लागू की जानी चाहिए, जिससे राजनीतिक प्रभाव से बचा जा सके।
    • उदाहरण: अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री, लोक सभा में विपक्ष के नेता तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल कर एक चयन समिति बनाने की सिफारिश की थी।
  • मतदाता डेटा पारदर्शिता में वृद्धि: चुनाव संपन्न होने के बाद मशीन-रीडेबल (machine-readable) मतदाता सूचियों को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि स्वतंत्र विश्लेषण और शोध संभव हो सके तथा धोखाधड़ी की संभावना पर नियंत्रण हो। 
    • उदाहरण: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने भी चुनावी पारदर्शिता के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित तंत्र की सिफारिश की थी।
  • स्वतंत्र निरीक्षण और लेखा परीक्षा तंत्र: मतदाता सूचियों का बाहरी स्वतंत्र ऑडिट तथा समय-समय पर सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में समीक्षा होनी चाहिए। इससे चुनाव आयोग की जवाबदेही बढ़ेगी और किसी भी अनियमितता को तुरंत रोका जा सकेगा। 
    • उदाहरण: यह व्यवस्था उसी प्रकार हो सकती है, जैसे वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा ऑडिट किया जाता है।
  • शिकायत निवारण सुधार: राज्य और जिला स्तर पर समयबद्ध शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए और यदि निर्धारित समय में समाधान न मिले तो कानूनी दंडात्मक प्रावधान होने चाहिए। इससे मतदाताओं एवं राजनीतिक दलों का विश्वास चुनाव प्रक्रिया में बना रहेगा।। 
    • उदाहरण: यह व्यवस्था मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के राइट-टू-सर्विसेस एक्ट की तरह हो सकती है।
  • डिजिटल एकीकरण एवं गोपनीयता संरक्षण: मतदाता पहचान के लिए आधार-आधारित सत्यापन की अनुमति दी जा सकती है, परंतु इसके साथ-साथ गोपनीयता सुनिश्चित करने हेतु गुमनाम (anonymised) प्रमाणीकरण भी आवश्यक होगा। 
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में आधार को सब्सिडी प्रदान करने के संदर्भ में मान्यता दी थी, परंतु गोपनीयता सुरक्षा उपायों के साथ।
  • ECI के निर्णयों की संसदीय निगरानी: निर्वाचन आयोग की वार्षिक जवाबदेही रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत होनी चाहिए, ताकि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों मिलकर दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर निगरानी सुनिश्चित कर सकें। 
    • उदाहरण: विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट ने भी चुनाव सुधारों हेतु ऐसी सिफारिश की थी।

निष्कर्ष

भारतीय निर्वाचन आयोग की साख बहाल करने के लिए आवश्यक है कि चुनाव प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता, संस्थागत स्वतंत्रता और राजनीतिक हस्तक्षेप पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया जाए। इससे आयोग की विश्वसनीयता और जनविश्वास दोनों सुदृढ़ होंगे। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की अनुशंसाओं के अनुरूप, निर्वाचन आयोग को मज़बूत वैधानिक समर्थन प्रदान करना तथा उसे वित्तीय और कार्यात्मक स्वतंत्रता देना अत्यावश्यक है। ऐसा करने से यह संस्था एक सशक्त, निष्पक्ष और प्रभावी संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित होगी, जो भारत की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम होगी।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.