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Q. मध्ययुगीन भारत के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को ढालने में भक्ति साहित्य के योगदान को स्पष्ट कीजिए। इसे उचित उदाहरणों सहित सिद्ध कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: भक्ति आंदोलन साहित्य के बारे में संक्षेप में लिखिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • धार्मिक पहलुओं को आकार देने में भक्ति आंदोलन साहित्य का योगदान लिखिए।
    • मध्यकालीन भारत के सामाजिक पहलुओं को आकार देने में भक्ति आंदोलन साहित्य का योगदान लिखिए।
    • सांस्कृतिक पहलुओं को आकार देने में भक्ति आंदोलन साहित्य का योगदान लिखिए।
  • निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

प्रस्तावना

भक्ति आंदोलन एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था जिसका 12वीं और 18वीं शताब्दी के बीच महत्वपूर्ण विकास हुआ और इस अवधि के दौरान रचित भक्ति साहित्य का समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। उदाहरण- कबीर दास जी द्वारा लिखित बीजक

मुख्य विषयवस्तु:

धार्मिक पहलुओं को आकार देने में योगदान:

  • वैयक्तिक भक्ति पर जोर: प्रमुख भक्ति कवयित्री मीराबाई की कविताएँ भगवान कृष्ण के प्रति उनकी गहरी वैयक्तिक भक्ति को दर्शाती हैं।
  • अनुष्ठानों और पुरोहित प्रभुत्व की आलोचना: उदाहरण- महाराष्ट्र के एक प्रमुख भक्ति कवि तुकाराम ने खोखले अनुष्ठानों की आलोचना की और भगवान के साथ सीधे संबंध को बढ़ावा दिया।
  • एकेश्वरवाद: भक्ति साहित्य एकेश्वरवाद या एक ईश्वर की पूजा पर केंद्रित था। उदाहरण- गुरु ग्रंथ साहिब की शुरुआत होती है- “ईश्वर एक है, सर्वोच्च सत्य है…”
  • सत्य पीर का पंथ: यह सद्भाव और आपसी सम्मान पर आधारित था जिसकी पूजा हिंदू और मुस्लिम दोनों करते थे। उदाहरण- कबीर दास।

सामाजिक पहलुओं को आकार देने में योगदान:

  • सामाजिक समानता और समावेशिता: उदाहरण- रामानंद ने कठोर जाति व्यवस्था की आलोचना की और ईश्वर के समक्ष सभी प्राणियों की समानता पर जोर दिया।
  • महिला सशक्तिकरण: महिला भक्तों ने पारिवारिक तनाव, वैवाहिक जीवन की बंदिशों आदि जैसे मुद्दों पर लिखा। उदाहरण- महिला कवयित्री जैसे मुक्ताबाई, अंडाल आदि।
  • हिंदू-मुस्लिम एकता: ये विचार दोनों धर्मों से लिए गए थे और इसका उद्देश्य दोनों धर्मों के बीच की खाई को पाटना था। उदाहरण- नानकजी, दादू दयाल आदि जैसे भक्ति संतों ने सार्वभौमिक भाईचारे का उपदेश दिया।
  • धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा: उदाहरण के लिए, कबीर की रचनाओं ने समाज में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।

सांस्कृतिक पहलुओं को आकार देने में योगदान:

  • स्थानीय भाषा और पहुंच: उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में अलवर के भक्ति गीतों और महाराष्ट्र में वारकरी आंदोलन ने अपने धार्मिक संदेश को फैलाने के लिए स्थानीय भाषा का उपयोग किया।
  • लोक परंपराओं का एकीकरण: उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन विठोबा के मंदिर के आसपास केंद्रित था।
  • क्षेत्रीय संस्कृतियों पर प्रभाव: इसने विभिन्न कला रूपों जैसे भक्ति पेंटिंग, भक्ति संगीत और ओडिसी और भरतनाट्यम जैसे नृत्य रूपों को प्रेरित किया।
  • क्षेत्रीय पंथों का विकास: उदाहरण चैतन्य महाप्रभु के कार्यों से बंगाल में राधा कृष्ण पंथ का विकास।

निष्कर्ष:

इस प्रकार, भक्ति साहित्य ने व्यक्तिगत भक्ति को बढ़ावा देने के साथ, सामाजिक पदानुक्रमों को चुनौती दी, साथ ही धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया व  महिलाओं को सशक्त बनाया और क्षेत्रीय संस्कृतियों को प्रभावित किया। भक्ति कवियों की शिक्षाएँ आज की आधुनिक दुनिया में भी गूंजती रहती हैं।

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