Q. संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच उभरती भू-आर्थिक प्रतिद्वंद्विता वैश्विक व्यापार, प्रौद्योगिकी और वित्तीय प्रणाली को नया रूप दे रही है। चर्चा कीजिए कि यह प्रतिद्वंद्विता विकसित होती विश्व व्यवस्था में भारत के रणनीतिक और आर्थिक विकल्पों को कैसे प्रभावित करती है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच उभरती भू-आर्थिक प्रतिद्वंद्विता का भारत के रणनीतिक विकल्पों पर प्रभाव। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच उभरती भू-आर्थिक प्रतिद्वंद्विता का भारत के आर्थिक विकल्पों पर प्रभाव। 

उत्तर

अमेरिका–चीन की प्रतिस्पर्द्धा अब शुल्कों से आगे बढ़कर प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण, सप्लाई-चेन पुनर्गठन, मानक निर्धारण, और वित्तीय प्रणालियों तक पहुँच चुकी है। भारत के लिए यह स्थिति एक ओर बाज़ार और तकनीकी प्रतिबंधों का जोखिम उत्पन्न करती है, तो दूसरी ओर मित्र-देशों के निवेश और आपूर्ति शृंखला के अवसर भी प्रदान करती है। इससे भारत को संतुलित और विवेकपूर्ण रणनीतिक निर्णयों की आवश्यकता पड़ती है।

भारत के रणनीतिक विकल्पों पर प्रभाव

  • गैर-संधिबद्ध अमेरिकी सहयोग: भारत अमेरिका के साथ तकनीकी और रक्षा सहयोग को मजबूत कर रहा है, किंतु अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए हुए है।
    • उदाहरण: LEMOA, COMCASA, BECA समझौते लागू, मालाबार नौसैनिक अभ्यास, iCET (वर्ष 2023) के अंतर्गत महत्वपूर्ण तकनीकी सह-विकास।
  • चीन के प्रति सख्त रुख: LAC संकट ने भारत के जोखिम आकलन को बदल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप निरोधक क्षमता और सीमावर्ती ढाँचा तेजी से विकसित किया जा रहा है।
    • उदाहरण: BRO द्वारा तीव्र गति से सड़क/पुल निर्माण, 5G नेटवर्क में Huawei/ZTE को अप्रत्यक्ष रूप से बाहर रखना।
  • हिन्द–प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय भूमिका और लघु गठबंधन: भारत QUAD जैसे गठबंधनों के माध्यम से चीन के प्रभाव को संतुलित कर क्षेत्रीय नियमों को आकार देने का प्रयास कर रहा है।
    • उदाहरण: QUAD के कार्य-समूह (HADR, क्रिटिकल टेक, समुद्री डोमेन अवेयरनेस); IMEC कॉरिडोर (G20–2023) को BRI के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया।
  • मानक निर्धारण और दूरसंचार विकल्प: भारत चीनी तकनीकी निर्भरता से बचते हुए ओपन आर्किटेक्चर को प्रोत्साहित कर रहा है।
    • उदाहरण: Open RAN को बढ़ावा, भारत 6G विज़न, सरकारी नेटवर्कों के लिए “विश्वसनीय स्रोत” सूची।
  • महत्वपूर्ण खनिज कूटनीति: भारत बैटरी, ईवी, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिए गैर-चीनी स्रोतों से खनिज आपूर्ति सुनिश्चित कर रहा है।
    • उदाहरण: भारत–ऑस्ट्रेलिया MoU, अर्जेंटीना में KABIL की लीथियम साझेदारी, कनाडा के साथ Li/Co/Ni पर वार्ता।
  • बहु-दिशात्मक  नीति: भारत किसी एक समूह का प्रतिभागी न बनकर पश्चिम और ग्लोबल साउथ दोनों से संबंध बनाए रख रहा है।
    • उदाहरण: G20/QUAD/IMEC में सक्रियता; BRICS/SCO में सहभागिता, रूस से S-400 खरीद और अमेरिका के साथ GE-F414 इंजन का सह-उत्पादन।
  • आपूर्ति शृंखला सुरक्षा और समुद्री संपर्क: भारत SAGAR दृष्टि के तहत समुद्री मार्गों और लॉजिस्टिक्स को सुदृढ़ बना रहा है।
    • उदाहरण: फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक समझौते, चाबहार और डुक्म बंदरगाहों से संपर्क।

भारत के आर्थिक विकल्पों पर प्रभाव

  • चयनात्मक व्यापार रणनीति: भारत उन क्षेत्रों से अलग हो रहा है, जहाँ जोखिम अधिक है और लाभकारी FTA समझौतों पर ध्यान दे रहा है।
    • उदाहरण: RCEP (वर्ष 2019) से अलगाव, भारत–EFTA TEPA (वर्ष 2024) के अंतर्गत US$100 अरब निवेश, UK/EU FTA वार्ता प्रगति पर।
  • चाइना-प्लस-वन” निर्माण रणनीति: भारत ने टैरिफ और PLI योजनाओं के माध्यम से उत्पादन शृंखलाओं को आकर्षित किया है।
    • उदाहरण: PLI–इलेक्ट्रॉनिक्स से iPhone असेंबली में वृद्धि, स्मार्टफोन निर्यात में तेज उछाल, लैपटॉप आयात लाइसेंस (वर्ष 2023) से स्थानीय असेंबली को बढ़ावा।
  • सेमीकंडक्टर में अमेरिकी गठबंधन का लाभ: अमेरिका की चीन पर तकनीकी पाबंदियाँ भारत के लिए अवसर बन रही हैं।
    • उदाहरण: गुजरात में Micron ATMP, धोलेरा में टाटा–पॉवरचिप फैब (वर्ष 2024), डिजाइन स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहन।
  • हरित प्रौद्योगिकी (Green Tech) में संतुलन: भारत सौर उपकरणों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के साथ आयात निर्भरता घटा रहा है।
    • उदाहरण: सोलर PLI, ALMM में चरणबद्ध छूट ताकि परियोजनाएँ विलंबित न हों।
  • महत्वपूर्ण खनिज एवं ऊर्जा सुरक्षा: भारत बैटरियों और ग्रिड्स के लिए दीर्घकालिक आपूर्ति अनुबंध कर रहा है।
    • उदाहरण: लैटिन अमेरिका में KABIL की साझेदारी, LNG स्रोतों का विविधीकरण, ऑस्ट्रेलिया और नामीबिया के साथ खनिज सहयोग।
  • वित्तीय प्रणाली और भुगतान सुरक्षा: भारत डॉलर जोखिमों से सुरक्षा रखते हुए विकल्पी भुगतान नेटवर्क विकसित कर रहा है।
    • उदाहरण: रुपया व्यापार व्यवस्था (UAE); UPI लिंक सिंगापुर/UAE से; CBDC पायलट प्रोजेक्ट्स।

निष्कर्ष

अमेरिका–चीन की भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा भारत के लिए नीति-निर्धारण की सीमा को संकुचित करती है, किंतु रणनीतिक अवसरों को विस्तारित भी करती है। भारत यदि बहु-संरेखण, चीन पर निर्भरता में कमी, और स्वदेशी क्षमता व विश्वसनीय तकनीकी साझेदारी में निवेश करता है, तो यह वैश्विक शक्ति-संतुलन में स्थिरता और नियम-निर्माण की भूमिका निभाने वाला प्रमुख देश बन सकता है।

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