Q. ‘मृतक की गरिमा सुनिश्चित करना जीवित लोगों की गोपनीयता की सुरक्षा के समान ही आवश्यक है।’ इस कथन के आलोक में, भारत में सार्वजनिक हित के साथ गोपनीयता अधिकारों को संतुलित करने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों एवं न्यायिक निगरानी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • व्याख्या कीजिए कि मृतक की गरिमा सुनिश्चित करना जीवित व्यक्ति की गोपनीयता की सुरक्षा के समान ही आवश्यक क्यों है।
  • भारत में गोपनीयता अधिकारों और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  • भारत में गोपनीयता अधिकारों और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने में न्यायिक निगरानी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।

उत्तर

मृतक की गरिमा, मानव अधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो समाज के नैतिक मानकों को दर्शाता है। हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने आधार कार्ड के माध्यम से लावारिस शवों की पहचान की की अनुमति दी है जिससे निजता की रक्षा करते हुए मृतकों की उनके परिवार द्वारा पहचान की आवश्यकता पर जोर दिया जा सकता है। यह निर्णय कानून प्रवर्तन और न्यायपालिका द्वारा जनहित और निजता के बीच संतुलन बनाए रखने पर प्रकाश डालता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि मृतकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाए और निजता के अधिकार सुरक्षित रहें।

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मृतक की गरिमा सुनिश्चित करना और जीवित लोगों की गोपनीयता की रक्षा करना

  • मृत्यु के बाद भी सम्मान का अधिकार: मृतक के प्रति सम्मान आवश्यक है, यह सुनिश्चित करते हुए कि मानवीय व्यवहार गरिमा के संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हो। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय न्यायालयों ने मृत्यु के बाद शवों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने का आदेश दिया है, जो मृत्यु हो जाने पर सम्मान को मौलिक अधिकार के रूप में रेखांकित करता है।
  • मृतक व्यक्तियों की पहचान: मृतकों की पहचान से उचित रूप से अंतिम संस्कार सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है, जो पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करने के लिए आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए: प्रवासी श्रमिकों के शवों की पहचान से समय पर प्रत्यावर्तन संभव होता है, जिससे परिवारों को सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण संस्कार करने का मौका मिलता है।
  • बायोमेट्रिक डेटा में गोपनीयता: पहचान करने के लिए आवश्यक होने के बावजूद, दुरुपयोग को रोकने के लिए बायोमेट्रिक डेटा का चयनात्मक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: आधार अधिनियम, डेटा तक पहुँच के लिए न्यायालय की अनुमति को अनिवार्य बनाता है, जो जाँच संबंधी आवश्यकताओं के साथ गोपनीयता को संतुलित करने पर बल देता है।
  • सुभेद्य आबादी के लिए सहायता: कई अज्ञात शव, सुभेद्य समुदायों से संबंधित होते हैं, जिनका प्रतिनिधित्व सीमित है। ऐसे मामलों में मृतकों की गरिमा सुनिश्चित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: बेघर व्यक्तियों और दैनिक मजदूरी करने वालों की अक्सर पहचान नहीं हो पाती।
  • अधिकारों का संतुलन: मृत व्यक्तियों की पहचान की आवश्यकता वाले मामलों में व्यक्तियों के गोपनीयता अधिकारों को सार्वजनिक हित के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: कानून प्रवर्तन के लिए न्यायालय की निगरानी में सीमित  बायोमेट्रिक्स तक पहुँच, गोपनीयता का उल्लंघन किए बिना गरिमा को बनाए रखने में योगदान दे सकती है।

गोपनीयता और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका

  • अज्ञात शवों की पहचान: कानून प्रवर्तन एजेंसियों को गोपनीयता मानदंडों का सम्मान करते हुए शवों की पहचान करने के लिए कुशल उपकरणों की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: मृतक की पहचान के लिए आधार बायोमेट्रिक्स तक पहुँच से जाँच प्रक्रिया में तेजी आ सकती है और परिवारों को सहायता मिल सकती है।
  • डेटा एक्सेस में गोपनीयता: एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डेटा एक्सेस नियंत्रित हो और उसका उपयोग केवल आवश्यक जाँच के लिए ही किया जाए। 
    • उदाहरण के लिए: आधार अधिनियम की धारा 33, गोपनीयता और सार्वजनिक आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखते हुए, कोर बायोमेट्रिक्स  के लिए न्यायिक आदेशों को अनिवार्य बनाती है।
  • संवेदनशील हैंडलिंग के लिए प्रशिक्षण: मृतक व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने और डेटा के दुरुपयोग को कम करने के लिए उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: विशेष पुलिस कर्मियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम में अज्ञात शवों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार के महत्व पर बल दिया जाता है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: एजेंसियों को डेटा एक्सेस और उपयोग के संबंध में पारदर्शी होना चाहिए, ताकि जनता का भरोसा बना रहे। 
    • उदाहरण के लिए: आधार डेटा के लिए एक्सेस प्रोटोकॉल का सार्वजनिक खुलासा, जांच उद्देश्यों के लिए डेटा का उपयोग करने में जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
  • पहचान में त्वरित कार्रवाई: मृतक की पहचान करने में बायोमेट्रिक्स के प्रभावी उपयोग से परिवारों को समय पर समाधान मिल जाता है और गोपनीयता के अधिकारों का सम्मान होता है। 
    • उदाहरण के लिए: अज्ञात शवों की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करना, विशेष रूप से दुर्घटना के मामलों में, परिवारों के लिए परेशानी को कम करता है ।

गोपनीयता और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने में न्यायिक निगरानी की भूमिका

  • डेटा एक्सेस के मामले में न्यायिक सुरक्षा: गोपनीयता और जाँच संबंधी आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाते हुए, बायोमेट्रिक डेटा तक सीमित पहुँच प्रदान करने में न्यायालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: केवल उच्च न्यायालय के आदेश ही आधार अधिनियम की धारा 33 के तहत आधार बायोमेट्रिक डेटा एक्सेस की अनुमति देते हैं।
  • केस-दर-केस मूल्यांकन: न्यायिक निगरानी, केस मेरिट के आधार पर चुनिंदा एक्सेस को सक्षम बनाती है, जिससे व्यापक डेटा एक्सेस को रोका जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: गोपनीयता निहितार्थों पर विचार करते हुए, अज्ञात शवों के लिए बायोमेट्रिक डेटा एक्सेस के संबंध में न्यायालय द्वारा निर्णय लिये जा  सकते हैं।
  • दुरुपयोग के विरुद्ध संरक्षण: न्यायिक समीक्षा बायोमेट्रिक डेटा के दुरुपयोग को रोकती है, तथा व्यक्तिगत गोपनीयता की अखंडता को बनाए रखती है। 
    • उदाहरण के लिए: डेटा एक्सेस निर्णयों में मजिस्ट्रेट की भागीदारी अनधिकृत डेटा एक्सेस की संभावनाओं को कम कर देती है और डेटा के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देती है।
  • मौलिक अधिकारों की रक्षा: न्यायिक मध्यक्षेप यह सुनिश्चित करते हैं कि संवेदनशील मामलों में निजता और सम्मान के मौलिक अधिकारों को बरकरार रखा जाए। 
    • उदाहरण के लिए: प्रवासी मजदूरों से जुड़े मामलों में, न्यायालयों ने मृतक व्यक्तियों के साथ मानवीय व्यवहार और सम्मानजनक व्यवहार की वकालत की है।
  • कानूनी अस्पष्टताओं को स्पष्ट करना: न्यायालय अस्पष्ट कानूनी प्रावधानों की व्याख्या करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि गोपनीयता और गरिमा दोनों सुरक्षित रहें। 
    • उदाहरण के लिए: आधार अधिनियम की न्यायिक व्याख्या ने गोपनीयता को सशक्त किया है, जबकि विशिष्ट मामलों में आवश्यक डेटा तक पहुँच की अनुमति दी है।

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सार्वजनिक हित के साथ निजता के अधिकारों को संतुलित करने के लिए एक ऐसे ढाँचे की आवश्यकता है जो मृतक की गरिमा और जीवित लोगों की निजता की रक्षा करे। मृतक की पहचान के लिए बायोमेट्रिक्स तक सीमित, न्यायिक निगरानी वाली पहुँच मृतक के प्रति सम्मान सुनिश्चित करती है और निजता का उल्लंघन किए बिना शोक संतप्त परिवारों की सहायता करती है। यह दृष्टिकोण संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप है जो एक गरिमापूर्ण समाज को बढ़ावा देता है  जो जीवन और मृत्यु दोनों के मामले में मानवीय गरिमा को महत्व देता हो।

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