उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: मुगल साम्राज्य के पतन के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- उन कारकों के बारे में लिखिए जिनके कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ
- 18वीं सदी के भारत में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के बारे में लिखिए।
- निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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प्रस्तावना:
मुगल साम्राज्य का पतन विभिन्न कारकों के संयोजन से हुआ, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिससे राजनीतिक विखंडन के साथ क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ।
मुख्य विषयवस्तु:
मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण कई कारक हो सकते हैं:
- आर्थिक सूखा: भारी कराधान और मुगल दरबार की अत्यधिक राजस्व मांगों के कारण किसानों व व्यापारियों की आर्थिक स्थिति में गिरावट हुई साथ ही कृषि उत्पादकता में कमी आई।
- सैन्य शक्ति में गिरावट: मुगल सेना की शक्ति और प्रभावशीलता में गिरावट ने इसे बाह्य खतरों और आंतरिक विद्रोहों के प्रति संवेदनशील बना दिया। बाह्य आक्रमण, जैसे 1739 में नादिर शाह का आक्रमण, के परिणामस्वरूप दिल्ली को लूटने के साथ मुगल साम्राज्य की संपत्ति भी लूटी गई।
- कमजोर उत्तराधिकार: औरंगजेब के बाद साम्राज्य में कमजोर और अप्रभावी शासकों की एक श्रृंखला देखी गई जो साम्राज्य की स्थिरता और एकता को बनाए रखने में असमर्थ थे। उदाहरण के लिए, औरंगजेब के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार संघर्ष, जिसके परिणामस्वरूप उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। परिणाम स्वरूप साम्राज्य की केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया।
- धार्मिक तनाव: औरंगजेब, जिसने सख्त इस्लामी रूढ़िवाद लागू किया और अन्य धर्मों का दमन किया, ने धार्मिक तनाव पैदा किया और गैर-मुस्लिम आबादी को अलग-थलग कर दिया। जजिया कर लगाने और हिंदू मंदिरों के विनाश ने सामाजिक और धार्मिक विभाजन को और बढ़ावा दिया।
- यूरोपीय लोगों का आगमन: यूरोपीय लोगों ने देशी राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार और युद्धों के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रभाव प्राप्त किया और अंततः इसे भारत के बड़े हिस्से पर राजनीतिक नियंत्रण में बदल दिया। उदाहरण-बक्सर और प्लासी का युद्ध।
- क्षेत्रीय आकांक्षाओं का उदय: क्षेत्रीय राज्यपालों और कुलीनों ने अधिक स्वायत्तता का दावा करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे अपने स्वयं के स्वतंत्र राज्य स्थापित किए। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण पश्चिमी भारत में मराठा साम्राज्य का उदय है, अन्य उदाहरण जाट, सिख आदि के उदय हैं।
- जमींदारों की बदलती निष्ठा और मुगल साम्राज्य में जागीरदारी संकट
- विशाल साम्राज्य को केंद्रीकृत सत्ता द्वारा शासित करना कठिन हो गया।
मुगल साम्राज्य के पतन के साथ क्षेत्रीय शक्तियों का उदय:
- हैदराबाद के निज़ाम: आसफ जाह प्रथम ने 18वीं शताब्दी की शुरुआत में आसफ जाही राजवंश की स्थापना की।
- बंगाल: बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खान ने 1717 में बंगाल को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया।
- सिख परिसंघ: महाराजा रणजीत सिंह जैसी करिश्माई शख्सियतों के नेतृत्व में सिख समुदाय ने कमजोर होते मुगल शासन का फायदा उठाया।
- मराठा साम्राज्य: शिवाजी और बाद में पेशवाओं के नेतृत्व में, उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करके पूरे पश्चिमी और मध्य भारत में अपना प्रभाव बढ़ाया।
- राजपूत राज्य: जयपुर, जोधपुर और उदयपुर जैसे राजपूत राज्यों ने अपनी स्वायत्तता का दावा करने के लिए शक्ति शून्यता का फायदा उठाया और अपने क्षेत्रों का विस्तार किया।
- त्रावणकोर: वर्तमान केरल के क्षेत्र पर शासन करते हुए, त्रावणकोर के शासकों ने अपने क्षेत्र का विस्तार किया और एक सुप्रशासित और समृद्ध राज्य की स्थापना की।
- मैसूर साम्राज्य: हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान जैसे शासकों ने मैसूर के क्षेत्रों का विस्तार किया और दक्षिणी भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व को चुनौती दी।
निष्कर्ष:
मुग़ल साम्राज्य का पतन एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया थी जो कई दशकों तक चली। इससे 18वीं शताब्दी के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने वाली क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के साथ, भारत की शक्ति गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया।
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