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Q. भारत में जीडीपी अनुमान से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा की गई पहलों का उल्लेख करें। भविष्य में जीडीपी माप की विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण सुझायें। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न को हल कैसे करें

  • परिचय
    • भारत में जीडीपी अनुमान के बारे में संक्षेप में लिखिये
  • मुख्य विषय-वस्तु
    • भारत में जीडीपी अनुमान से जुड़ी विभिन्न चिंताओं के बारे में लिखिये
    • इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा की गई पहलों को लिखिये
    • भविष्य में जीडीपी माप की विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण लिखिये
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष लिखिये

 

परिचय           

जीडीपी अनुमान के लिए सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ( MoSPI ) जिम्मेदार है। जीडीपी को आउटपुट विधि (प्रत्येक उत्पादक द्वारा जोड़ा गया सभी मूल्य), आय विधि (उत्पन्न सभी आय) और व्यय विधि (सभी व्यय) के माध्यम से मापा जाता है । हाल ही में, वित्त मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 7.8% की वृद्धि के बाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों की विश्वसनीयता के बारे में चिंताओं को संबोधित किया है।

मुख्य विषय-वस्तु

भारत में जीडीपी आकलन से जुड़ी विभिन्न चिंताएँ

  • व्यय घटक असमानता: जबकि जीडीपी आंकड़े वृद्धि दर्शाते हैं, निजी खपत और सरकारी खर्च जैसे प्रमुख व्यय घटकों में गिरावट एक विसंगति का संकेत देती है। उदाहरण के लिए: आर्थिक मंदी के दौरान, रिपोर्ट की गई जीडीपी वृद्धि कभी-कभी उपभोक्ता और सरकारी खर्च के रुझान के साथ असंगत लगती है।
  • परस्पर विरोधी गणना पद्धतियाँ: भारत जीडीपी की गणना के लिए कारक लागत और बाजार मूल्य दोनों विधियों का उपयोग करता है। पहला तरीका उद्योग के प्रदर्शन को देखता है जबकि दूसरा तरीका व्यापार और उपभोग जैसे व्यय का आकलन करता है। इस दोहरे दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप भिन्नताएँ हो सकती हैं, जिससे वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • भ्रामक आर्थिक चित्रण: इस बात की चिंता है कि जीडीपी के उत्साहजनक आंकड़े नागरिकों के समक्ष आने वाली वास्तविक आर्थिक चुनौतियों पर हावी हो सकते हैं, जैसे कि विमुद्रीकरण अभियान के दौरान, जब जीडीपी के आंकड़े छोटे व्यवसायों और अनौपचारिक मजदूरों के प्रत्यक्ष वित्तीय संकट से मेल नहीं खाते थे।
  • जनगणना में देरी: जनगणना के स्थगन से नए जनसांख्यिकीय डेटा को आर्थिक मीट्रिक में एकीकृत करने में बाधा आती है, जो सटीक जीडीपी अनुमान के लिए महत्वपूर्ण है। अद्यतित जनसंख्या जानकारी के बिना, आर्थिक संकेतक लक्ष्य से काफी दूर हो सकते हैं।
  • कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्र: अनौपचारिक क्षेत्र जो भारत की अर्थव्यवस्था में 92.4% नौकरियों के लिए जिम्मेदार है , जीडीपी आंकड़ों में इसका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है। इस बहिष्करण से आर्थिक गतिविधि और कार्यबल की भागीदारी को कम करके आंका जा सकता है।
  • राजनीतिक प्रभाव के आरोप: सांख्यिकीय प्रक्रियाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में चिंताएं और आरोप लगाए गए हैं, जो आर्थिक प्रगति का डाटा देने वाले पक्षपाती जीडीपी अनुमानों को बता सकते हैं ।
  • आर्थिक जटिलता की अनदेखी: भारत की जीडीपी मेट्रिक्स आर्थिक परिदृश्य की जटिलताओं को पूरी तरह से समाहित नहीं कर सकती है, खासकर डिजिटल सेवाओं, कॉमर्स और गिग अर्थव्यवस्था जैसे उभरते क्षेत्रों के साथ।

इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा की गई पहल

  • आधार वर्ष संशोधन: भारत समय-समय पर जीडीपी गणना के लिए आधार वर्ष को संशोधित करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डेटा नवीनतम आर्थिक संरचना को दर्शाता है। हाल ही में 2004-05 से 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में बदलना अर्थव्यवस्था में समकालीन परिवर्तनों को जानने की दिशा में एक कदम है, जिससे डेटा की प्रासंगिकता और सटीकता में सुधार होता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों को अपनाना: सरकार ने अपनी जीडीपी आकलन प्रक्रिया को राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (एसएनए) 2008 के साथ जोड़ दिया है, जिसकी संस्तुति संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई है। यह अंतर्राष्ट्रीय तुलना की अनुमति देता है और यह सुनिश्चित करता है कि जीडीपी आकलन प्रक्रिया में वैश्विक सर्वोत्तम क्रियाकलापों को शामिल किया जाए।
  • नए सर्वेक्षण और संकेतक: रोजगार आँकड़ों को परिष्कृत करने के प्रयासों के कारण MCA-21 डेटाबेस से प्रशासनिक आँकड़ों को शामिल किया गया है । साथ ही आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) जैसे नए सर्वेक्षणों की शुरूआत, रोजगार की गतिशीलता का अधिक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • गुणवत्ता आश्वासन फ्रेमवर्क: राष्ट्रीय सांख्यिकीय गुणवत्ता आश्वासन फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएएफ) की स्थापना का उद्देश्य विभिन्न एजेंसियों द्वारा उत्पादित सांख्यिकीय डेटा की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को बढ़ाना, सांख्यिकीय प्रक्रियाओं और आउटपुट के लिए मानक स्थापित करना है।
  • आंकड़ों का संशोधन और अंतिम रूप देना: समयबद्धता की कमी के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए, वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जीडीपी आंकड़ों को समय के साथ परिष्कृत किया जाता है, और अंतिम संस्करण प्रारंभिक अनुमानों के तीन साल बाद जारी किया जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था का अधिक सटीक और व्यापक प्रतिनिधित्व हो सके।
  • व्यापकआधारित आर्थिक विश्लेषण: सरकार आर्थिक प्रदर्शन के विश्लेषण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की वकालत करती है, तथा सुझाव देती है कि क्रय प्रबंधक सूचकांक, बैंक ऋण वृद्धि और उपभोग पैटर्न जैसे संकेतकों पर जीडीपी आंकड़ों के साथ विचार किया जाना चाहिए।
  • औद्योगिक उत्पादन समीक्षा: सरकार ने औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में विसंगतियों को स्वीकार किया है तथा इनमें सुधार लाने की दिशा में काम कर रही है, विशेष रूप से जहां विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि की कम रिपोर्टिंग की पहचान की गई है।
  • जीडीपी अपस्फीतिकारक स्पष्टीकरण: वित्त मंत्रालय ने जीडीपी अपस्फीतिकारक (डिफ्लेटर) पर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के प्रभाव को समझाते हुए नाममात्र और वास्तविक जीडीपी विकास दरों के बीच अंतर के बारे में भ्रम को दूर किया है। उम्मीद है कि जैसे-जैसे मूल्य स्तर स्थिर होंगे, डिफ्लेटर आर्थिक विकास की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करेगा।
  • आय दृष्टिकोण की सुसंगतता: सकल घरेलू उत्पाद की गणना में आय दृष्टिकोण का दृढ़ उपयोग, सुसंगतता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पद्धतिगत परिवर्तन से आर्थिक प्रवृत्तियों की समझ विकृत न हो।

भविष्य में जीडीपी माप की विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण

  • रियलटाइम डेटा ट्रैकिंग: विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों से रियल-टाइम आर्थिक डेटा ट्रैकिंग के लिए एक डिजिटल डैशबोर्ड विकसित करना। यह उन प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जो बड़े डेटा एनालिटिक्स में विशेषज्ञता रखती हैं, जिससे जीडीपी इनपुट की तात्कालिकता और सटीकता में सुधार होता है।
  • व्यापक उपग्रह लेखांकन: उपग्रह लेखांकन प्रणालियों को लागू करना जो कि अधिक व्यापक सकल घरेलू उत्पाद अनुमान प्रदान करने के लिए गिग अर्थव्यवस्था, डिजिटल सेवाओं और पर्यावरण संसाधन की कमी जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों के योगदान को बेहतर ढंग से माप सकते हैं।
  • सार्वजनिक डेटा भंडार: एक ओपन-एक्सेस डेटा रिपॉजिटरी स्थापित करना जहां जीडीपी गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी कच्चे डेटा और मेटाडेटा सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध हों, पारदर्शिता को बढ़ावा देना और स्वतंत्र सत्यापन की अनुमति देना।
  • उन्नत सर्वेक्षण विधियाँ: अधिक बार और सटीक रूप से डेटा एकत्र करने के लिए मोबाइल और इंटरनेटआधारित सर्वेक्षणों का उपयोग करना । इससे डेटा संग्रह में लगने वाला समय कम हो सकता है और जीडीपी का अधिक अद्यतित अनुमान लगाना संभव हो सकता है।
  • वैकल्पिक संकेतकों के साथ क्रॉससत्यापन: पारंपरिक जीडीपी माप विधियों को क्रॉससत्यापन और पूरक करने के लिए बिजली की खपत, परिवहन गतिविधि और उपग्रह इमेजरी जैसे वैकल्पिक आर्थिक संकेतकों को एकीकृत करना ।
  • उन्नत सांख्यिकीय मॉडल: उन्नत अर्थमितीय और सांख्यिकीय मॉडल अपनाना जो भारत की अर्थव्यवस्था की जटिलता को संभाल सकें। मशीन लर्निंग मॉडल उन पैटर्न और सहसंबंधों की पहचान कर सकते हैं जो पारंपरिक तरीकों से छूट सकते हैं।
  • नियमित स्वतंत्र ऑडिट: वैश्विक मानकों का पालन सुनिश्चित करने और विश्वसनीयता बनाने के लिए तीसरे पक्ष के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा जीडीपी अनुमान प्रक्रिया का नियमित स्वतंत्र ऑडिट आयोजित करना ।
  • नीतिगत फीडबैक तंत्र: एक फीडबैक तंत्र स्थापित करना जहां नीति निर्माता जमीनी आर्थिक स्थिति में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकें, जिसका उपयोग जीडीपी माप को परिष्कृत और मान्य करने के लिए किया जा सकता है।

निष्कर्ष

इन रणनीतिक दृष्टिकोणों को लागू करके, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद माप की विश्वसनीयता और पारदर्शिता में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह देश के आर्थिक प्रदर्शऔर गतिशीलता को सटीक रूप से दर्शाता है। इससे न केवल अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास मजबूत होगा बल्कि आर्थिक योजना और नीति निर्माण के लिए एक ठोस आधार भी मिलेगा।

 

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