Q. न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व लैंगिक न्यायोचित निर्णय देने के लिए महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान स्थिति और आगे की राह पर टिप्पणी कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि लैंगिक न्यायोचित निर्णय देने के लिए न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व क्यों महत्त्वपूर्ण है।
  • न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिये।
  • न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

एक संतुलित, समावेशी कानूनी प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व आवश्यक है, जो लैंगिक न्यायोचित निर्णय दे सके। वर्ष 2023 के आंकड़े के अनुसार उच्च न्यायालय में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत 13.4% और उच्चतम न्यायालय में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत 9.4% था।  हालाँकि अधीनस्थ न्यायालयों में 36.3% न्यायाधीश महिलाएँ हैं, परंतु उच्च न्यायिक स्तरों पर लैंगिक असमानता बनी हुई है, जो लैंगिक-संवेदनशील निर्णयों को प्रभावित करती है और महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विविध दृष्टिकोणों को सीमित करती है।

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न्यायपालिका में लैंगिक न्यायोचित निर्णयों के लिए समान प्रतिनिधित्व महत्त्वपूर्ण है

  • निर्णय लेने में विविध दृष्टिकोण: एक संतुलित न्यायपालिका मामलों में विविध दृष्टिकोण लाती है, जिससे कानून की लिंग-संवेदनशील व्याख्याओं को बढ़ावा मिलता है तथा निष्पक्ष परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों के अनुसार, लिंग-आधारित हिंसा के मामलों में, महिला न्यायाधीशों द्वारा दिए गए निर्णय अक्सर महिलाओं के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सामाजिक मुद्दों को उजागर करते हैं।
  • न्यायिक प्रणालियों में विश्वास में वृद्धि: प्रतिनिधित्व में बढ़ोत्तरी से जनता का विश्वास मजबूत होता है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि न्यायपालिका सामाजिक विविधता को दर्शाती है, जिससे समावेशिता की भावना को बढ़ावा मिलता है । 
    • उदाहरण के लिए: संतुलित लिंग प्रतिनिधित्व वाले देशों में, कानूनी प्रणाली की निष्पक्षता में जनता का विश्वास अधिक होता है ।
  • लिंग-विशिष्ट मुद्दों पर ध्यान देना: महिला न्यायाधीश घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और प्रजनन अधिकार जैसे मुद्दों पर अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि इन मामलों को व्यापक दृष्टिकोण से समझा जाए।
  • कानूनी व्याख्याओं में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: समान प्रतिनिधित्व यह सुनिश्चित करता है कि कानूनों की व्याख्या ,लैंगिक समानता की समझ के साथ की जाए, जिससे पूर्वाग्रहों में कमी आए जो अक्सर महिलाओं के लिए न्यायिक परिणामों को प्रभावित करते हैं।
  • युवा महिलाओं को कानून का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना: न्यायिक पदों पर महिलाओं का स्पष्ट प्रतिनिधित्व युवा महिलाओं को कानूनी व्यवसाय अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे भविष्य में न्यायपालिका को संतुलित बनाने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चला है, कि महिला न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि से कानून की पढ़ाई करने वाली महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है ।

न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति

  • उच्चतम न्यायलय में प्रतिनिधित्व: प्रगति के बावजूद, उच्चतम न्यायालय की केवल 9.4% न्यायाधीश महिलाएँ हैं, जो उच्चतम स्तर पर संतुलित न्यायपालिका के लिए आवश्यक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 तक, उच्चतम न्यायलय में 32 में से केवल तीन महिला न्यायाधीश हैं, जो एक स्पष्ट लिंग अंतर को दर्शाता है।
  • उच्च न्यायालयों में लैंगिक असमानता: उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या में महिलाओं की संख्या मात्र 13.4% है। कई राज्यों में न्यायिक प्रणाली में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए: बिहार जैसे राज्यों के उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं है, जिससे महिलाओं के मुद्दों से संबंधित क्षेत्रीय निर्णयों पर असर पड़ता है।
  • संख्या की दृष्टि से अग्रणी अधीनस्थ न्यायालय: अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या में लगभग 36.3% महिलाएँ हैं , जो उच्च न्यायालयों की तुलना में एक महत्त्वपूर्ण सुधार है।
  • प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय असमानताएँ: प्रतिनिधित्व में व्यापक रूप से भिन्नता है, कुछ राज्यों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है जबकि अन्य में लगभग शून्य है। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा तथा दिल्ली उच्च न्यायालय, महिला प्रतिनिधित्व के मामले में  अग्रणी हैं जबकि उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में महिलाओं का न्यूनतम प्रतिनिधित्व है।
  • वृद्धिशील प्रगति: पिछले दशक में, महिला प्रतिनिधित्व के आंकड़ों में थोड़ा सुधार हुआ है, परंतु यह सभी मामलों में संतुलित न्यायिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 और वर्ष 2023 के बीच, उच्च न्यायालयों में महिला प्रतिनिधित्व 10% से बढ़कर 13.4% हो गया, जो क्रमिक परंतु धीमी प्रगति को दर्शाता है।

न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ

  • कानूनी व्यवसायों में पितृसत्तात्मक मानदंड: समाज की गहराइयों में व्याप्त पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह, महिलाओं को न्यायपालिका क्षेत्र में आगे बढ़ने से हतोत्साहित करते हैं, जिससे उच्च स्तरों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व सीमित हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: पारिवारिक भूमिकाओं के संबंध में की जाने वाली सामाजिक अपेक्षाएँ अक्सर महिलाओं को न्यायपालिका क्षेत्र में करियर बनाने से रोकती हैं ,विशेष रूप से वरिष्ठ पदों पर।
  • अपारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी के कारण अक्सर लैंगिक पक्षपात होता है, जिससे महिलाओं की नियुक्तियाँ कम होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: स्पष्ट मानदंडों के बिना कॉलेजियम प्रणाली पुरुष उम्मीदवारों को तरजीह देती है, जिससे योग्य महिला उम्मीदवारों के लिए अवसर कम हो जाते हैं।
  • कार्यस्थल पर उत्पीड़न और पक्षपात: न्यायपालिका में कई महिलाओं को लैंगिक भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिससे ऐसी कार्यदशा निर्मित हो जाती है जो उनके करियर की उन्नति को प्रभावित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: सर्वेक्षणों के अनुसार,  महिला न्यायाधीशों को सहकर्मियों द्वारा भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका पेशेवर विकास प्रभावित होता है।
  • अपर्याप्त सहायता सुविधाएं: बच्चों की देखभाल और लचीले कामकाजी विकल्पों का अभाव महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे वे उच्च न्यायिक भूमिकाओं को अपनाने से कतराती हैं।
  • न्यायपालिका में कम रोल मॉडल: न्यायपालिका क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व एक चक्र का रुप ले लेता है, क्योंकि वरिष्ठ न्यायिक भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या कम होने से  महत्त्वाकांक्षी महिला वकीलों को पर्याप्त मार्गदर्शन और प्रेरणा नहीं मिल पाती है जिसके परिणाम स्वरुप अंततः न्यायपालिका क्षेत्र में महिलाओं की संख्या कम ही रह जाती है। 

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आगे की राह 

  • न्यायपालिका में लैंगिक कोटा निर्धारित करना: विशेष रूप से उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की नियुक्तियों में महिलाओं के लिए कोटा लागू करने से, महिलाओं का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सकता है और इस तरह से लैंगिक असंतुलन को दूर किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: कई देशों ने लैंगिक कोटा अपनाया है, जिससे उनकी न्यायिक प्रणालियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
  • पारदर्शी चयन प्रक्रिया: न्यायिक चयन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने से पक्षपात कम करने और नियुक्तियों में विविधता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: कॉलेजियम प्रणाली में न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए स्पष्ट मानदंड स्थापित करने से निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
  • सहायक बुनियादी ढाँचे की स्थापना: बाल देखभाल और कामकाज की अवधि को लचीला बनाने जैसी सुविधाएँ प्रदान करने से महिलाओं को पेशेवर और व्यक्तिगत दोनों प्रकार की जिम्मेदारियों के प्रबंधन में सहायता मिल सकती है।
  • लिंग संवेदनशीलता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: लिंग संवेदनशीलता पर न्यायिक कर्मचारियों के लिए आयोजित किये जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम, अधिक समावेशी वातावरण को बढ़ावा दे सकते हैं और महिलाओं को अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  • मेंटरशिप और नेटवर्क को मजबूत करना: न्यायपालिका क्षेत्र में मेंटरशिप कार्यक्रम आयोजित करने से युवा महिलाओं को सहायता मिल सकती है, जिससे उनके पेशेवर विकास और क्षेत्र में बने रहने में मदद मिलेगी।

एक न्यायपूर्ण और समावेशी कानूनी प्रणाली के लिए न्यायपालिका में समान प्रतिनिधित्व प्राप्त करना अति आवश्यक है। पारदर्शिता की कमी और पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों जैसी वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने के लिए संरचित सुधारों और सक्रिय सहायता तंत्रों की आवश्यकता है। समान प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने से जनता का विश्वास बढ़ेगा और लिंग-संवेदनशील न्यायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा जिससे निष्पक्ष, संतुलित न्यायपालिका के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को बढ़ावा मिलेगा।

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