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Q. भारत में समावेशी विकास और सतत विकास प्राप्त करने में योजना आयोग की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए। इस यात्रा को प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाने हेतु नीति आयोग की प्रभावशीलता को भी स्पष्ट कीजिए? (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: योजना आयोग के उदय एवं विकास को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।  
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • समावेशी विकास की उपलब्धि में योजना आयोग की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिए।
    • सतत विकास की उपलब्धि में योजना आयोग की प्रभावशीलता का वर्णन कीजिए।
    • योजना आयोग की सीमाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
    • इस यात्रा को आगे बढ़ाने में नीति आयोग की भूमिका की क्षमता पर चर्चा कीजिए।
  • निष्कर्ष: सकारात्मक नोट के साथ आगे की राह लिखिए। 

 

प्रस्तावना:

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन और समावेशी विकास से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए योजना आयोग की स्थापना की गई थी। हालाँकि, भारत की आर्थिक प्रगति की बदलती ज़रूरतों के कारण समसामयिक चुनौतियों से निपटने के लिए एक अधिक अनुकूली संस्था की आवश्यकता हुई, जिसके परिणामस्वरूप 2015 में नीति आयोग का निर्माण हुआ, जो गतिशील तरीके से समावेशी विकास और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।

मुख्य विषयवस्तु: 

निम्नलिखित की उपलब्धि में योजना आयोग की प्रभावशीलता: 

  • समावेशी विकास:
    • गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम: योजना आयोग ने समाज के हाशिए पर रहने वाले और कमजोर वर्गों को लक्षित करने वाले गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को डिजाइन करने और लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे कि मनरेगा, जो ग्रामीण परिवारों के लिए सालाना 100 दिनों का वैतनिक रोजगार सुनिश्चित करता है, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी और बेरोजगारी में कमी आई है।
    • क्षेत्रीय विकास: योजना आयोग ने 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बीआरजीएफ) की शुरुआत करके, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके और क्षेत्रीय असंतुलन को कम करके क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने को प्राथमिकता दी।
    • क्षेत्र-विशिष्ट पहल: योजना आयोग ने ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल में सुधार और शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताओं को पाटने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू की गई एनआरएचएम जैसी क्षेत्र-विशिष्ट पहलों के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा दिया।
  • सतत विकास:
    • जल प्रबंधन: 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, योजना आयोग ने सिंचाई के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने और जल उपयोग दक्षता को अधिकतम करने के लिए त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) [1996-97] शुरू करके महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की।
    • वन संरक्षण: पर्यावरणीय स्थिरता के लिए योजना आयोग का सक्रिय दृष्टिकोण वन संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण था, जिसका उदाहरण वन आवरण बढ़ाने और वनों की कटाई से निपटने के लिए राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (एनएपी) [2002] जैसी योजनाओं द्वारा दिया जा सकता है।
    • पर्यावरण संबंधी विचार: योजना आयोग ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को अपनी नीतियों में शामिल किया। उदाहरण के लिए, 2008 में लॉन्च की गई एनएपीसीसी ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने और विभिन्न क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट रणनीतियों की रूपरेखा तैयार की।

योजना आयोग की सीमाएँ:

  • आर्थिक विकास पर जोर: बांधों और राजमार्गों जैसी बड़े पैमाने की बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं पर योजना आयोग के जोर ने पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त सामाजिक प्रभाव भी देखने को मिले। बांधों और राजमार्गों के कारण समुदायों के विस्थापन जैसे मुद्दे प्रकाश में आए। उदाहरण- 1973 में साइलेंट वैली जलविद्युत परियोजना के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: योजना आयोग की पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी ने प्रगति से जुड़ी ट्रैकिंग और जिम्मेदार शासन में बाधा उत्पन्न की। उदाहरण के लिए, सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) को अपनी अपर्याप्त प्रगति ट्रैकिंग प्रणाली के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा, जिससे सरकारी जवाबदेही में बाधा उत्पन्न हुई।
  • समन्वय के मुद्दे और अक्षमता: योजना आयोग की अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय की कमी के परिणामस्वरूप योजनाओं और कार्यक्रमों का अकुशल कार्यान्वयन हुआ, जैसा कि उच्च प्रशासनिक लागत और अपर्याप्त संरेखण के लिए मनरेगा की आलोचना में देखा गया है।
  • ऊपर से नीचे का दृष्टिकोण: योजना आयोग के ऊपर से नीचे के दृष्टिकोण ने अक्सर स्थानीय समुदायों की जरूरतों की उपेक्षा की। जैसा कि हरित क्रांति से पता चलता है, इसने कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की, जिससे गैर-सीमांत किसानों को अत्यधिक लाभ हुआ।
  • केंद्रीय निधि पर निर्भरता: कभी-कभी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकारों की क्षमता सीमित हो जाती है। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में, कर्नाटक का लक्ष्य ग्रामीण शिक्षा में सुधार करना था लेकिन उसे वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ा। गैर-संरेखित दिशानिर्देशों के साथ केंद्रीय निधि के कारण परियोजना कार्यान्वयन कम प्रभावी हुआ।

यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए नीति आयोग की क्षमता:

  • सहकारी संघवाद: नीति आयोग का दृष्टिकोण राज्यों के साथ सहयोग को बढ़ावा देता है, यह नीतियों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाता है। उदाहरण के लिए, आकांक्षी जिला कार्यक्रम स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर हस्तक्षेप करता है।
  • प्रतिस्पर्धी संघवाद: नीति आयोग प्रतिस्पर्धी शासन को बढ़ावा देता है, जैसा कि समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) जैसी पहलों से पता चलता है।
  • नीचे से ऊपर का दृष्टिकोण: नीति आयोग जमीनी स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहित करते हुए “अटल इनोवेशन मिशन” जैसी पहल के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है।
  • लचीलापन और अनुकूलनशीलता: नीति आयोग की अनुकूली योजना उभरती परिस्थितियों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करती है, जैसा कि COVID-19 संकट प्रबंधन के दौरान देखा गया है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी: नीति आयोग सतत विकास के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाता है, जिसका उदाहरण “एआई के लिए राष्ट्रीय रणनीति” के रूप में दिखाई पड़ती है।
  • सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी): नीति आयोग योजना को एसडीजी के साथ संरेखित करता है, जिसे “एसडीजी इंडिया इंडेक्स” जैसी पहलों द्वारा मापा जाता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: नीति आयोग “अटल इनोवेशन मिशन” के माध्यम से उद्यमिता और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करता है।
  • डेटा-संचालित निर्णय लेना: नीति आयोग क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए “स्वास्थ्य सूचकांक” का उपयोग करते हुए साक्ष्य-आधारित नीतियां सुनिश्चित करता है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: नीति आयोग की निगरानी और मूल्यांकन के लिए “ आउटकम बजट”(Outcome Budget) जैसे मजबूत तंत्र, संसाधन उपयोग और शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाते हैं।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः, समृद्ध, न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य के लिए नीति आयोग का दृष्टिकोण योजना आयोग के उद्देश्यों के साथ मेल खाता है। योजना आयोग की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, नीति आयोग परिवर्तनकारी दृष्टिकोण जारी रखेगा। इस प्रकार यह आने वाली पीढ़ियों को लाभान्वित करेगा और एक समावेशी, टिकाऊ और प्रगतिशील राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त करेगा।

अतिरिक्त जानकारी

नीति आयोग की पूर्ण क्षमता का दोहन करने के लिए कदम:

  • इनोवेशन लैब्स और पॉलिसी हैकथॉन: नीति आयोग उद्यमियों, स्टार्टअप्स और विशेषज्ञों के साथ जुड़ने के लिए इनोवेशन लैब स्थापित कर सकता है और पॉलिसी हैकथॉन आयोजित कर सकता है। ये आयोजन जटिल चुनौतियों के लिए लीक से हटकर विचार और समाधान उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, नीति आयोग की “चैंपियंस ऑफ चेंज” पहल ने नीति निर्माताओं के साथ अपने विचार साझा करने के लिए युवा सीईओ और उद्यमियों को एक साथ मंच पर लाया।
  • डेटा-संचालित निर्णय लेना: नीति आयोग विशाल डेटासेट का विश्लेषण करने और सूचित नीतिगत निर्णयों के लिए अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए अत्याधुनिक डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में निवेश कर सकता है। विभिन्न स्मार्ट शहरों द्वारा यातायात प्रबंधन और शहरी नियोजन में बड़े डेटा के उपयोग को एक प्रेरणा के रूप में लिया जा सकता है।
  • राज्य-दर-राज्य ज्ञान विनिमय: कार्यशालाओं, सम्मेलनों और अध्ययन के माध्यम से राज्यों के बीच संवाद और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की सुविधा प्रदान करना। उदाहरण के लिए, नीति आयोग का “ट्रांसफॉर्मिंग एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स” कार्यक्रम अविकसित जिलों को उच्च प्रदर्शन वाले जिलों से सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • पायलटों के लिए सैंडबॉक्स दृष्टिकोण: राष्ट्रव्यापी कार्य योजना से पहले छोटे पैमाने पर नवीन विचारों का परीक्षण और परिष्कृत करने के लिए सैंडबॉक्स दृष्टिकोण लागू करें। सैंडबॉक्स दृष्टिकोण नियंत्रित दशाओं में नवीन डिजिटल उत्पादों या सेवाओं के परीक्षण  को संदर्भित करता है। नीति आयोग का “राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन” चुनिंदा राज्यों में पायलट डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड और सेवाओं के लिए इस दृष्टिकोण का उपयोग करता है।
  • स्टार्टअप के लिए इन्क्यूबेशन केंद्र: स्टार्टअप को बढ़ावा देने और नवाचारों को बढ़ाने के लिए अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित करें। नीति आयोग का “अटल इनोवेशन मिशन” स्कूलों में टिंकरिंग लैब और स्टार्टअप के लिए अटल इनक्यूबेशन सेंटरों का समर्थन करता है।
  • सतत आजीविका मॉडल: आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ पारंपरिक कौशल को एकीकृत करने वाले स्थायी आजीविका मॉडल के विकास को प्रोत्साहित करें। उदाहरण के लिए, टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और कृषि उपज का मूल्यवर्धन करना।
  • निर्णय लेने में सामुदायिक भागीदारी: नीचे से ऊपर तक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माण में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना। पोर्टो एलेग्रे, ब्राज़ील में सहभागी बजटिंग को अपनाया गया है, इसे भारत में भी सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ अपनाया जा सकता है।
  • हरित और चक्रीय अर्थव्यवस्था: उन उद्योगों को बढ़ावा देना जो चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों का पालन करते हैं, साथ ही अपशिष्ट को कम करते हैं और संसाधन दक्षता को बढ़ाते हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पुनर्चक्रण के भारत के प्रयास इसके उदाहरण हैं।
  • नागरिक प्रतिक्रिया तंत्र: सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की प्रभावशीलता पर नागरिकों से वास्तविक समय पर प्रतिक्रिया जानने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन पोर्टल इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बना सकते हैं।
  • नवाचार के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी): विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और स्वच्छ ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पीपीपी को प्रोत्साहित करना जरूरी है। हरियाणा इनोवेशन मिशन की तरह स्वास्थ्य देखभाल नवाचार में पीपीपी को अपनाया जा सकता है।
  • भविष्य की नौकरियों के लिए कौशल विकास: उभरते नौकरी क्षेत्रों की पहचान करना और भविष्य के नौकरी बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए कार्यबल को कुशल बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। प्रासंगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने के लिए कौशल भारत मिशन का उद्योग के साथ सहयोग एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
  • शहरी नियोजन के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी: शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे के विकास और आपदा प्रबंधन के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए। सिंगापुर और जापान जैसे देशों की सर्वोत्तम प्रथाएँ मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती हैं।

 

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