प्रश्न की मुख्य मांग
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में कोयला गैसीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन करें।
- पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में भारत की पहलों पर चर्चा करें।
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कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो ऑक्सीजन एवं भाप के साथ उच्च तापमान प्रतिक्रियाओं के माध्यम से कोयले को सिनगैस ( हाइड्रोजन , कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण ) में परिवर्तित करती है । इस गैस का दहन कोयले के दहन की तुलना में अधिक स्वच्छ एवं कुशल होता है क्योंकि गैसीकरण चरण में उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाता है। यह तकनीक प्रचुर मात्रा में घरेलू कोयला संसाधनों का उपयोग करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाती है तथा आर्थिक विकास के साथ पर्यावरणीय स्थिरता लक्ष्यों को संतुलित करते हुए पारिस्थितिक उत्तरदायित्व को सम्मिलित करती है।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं पर्यावरणीय स्थिरता पर कोयला गैसीकरण का प्रभाव:
ऊर्जा सुरक्षा:
- ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण : कोयला गैसीकरण पारंपरिक कोयले के उपयोग का एक विकल्प प्रदान करता है, जिससे तेल एवं प्राकृतिक गैस के आयात पर निर्भरता कम होती है , जिससे ऊर्जा विविधता और सुरक्षा में वृद्धि होती है।
उदाहरण के लिए: सरकार ने 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयले के कोयला गैसीकरण तथा तरलीकरण को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन शुरू किया है।
- घरेलू कोयला उपयोग : गैसीकरण के माध्यम से भारत के विशाल कोयला भंडार का उपयोग करने से स्थिर, घरेलू ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होती है,जिससे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजारों में अस्थिरता पर निर्भरता कम होती है।
उदाहरण के लिए: भारत में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार है , जो कोयला गैसीकरण परियोजनाओं के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन आधार प्रदान करता है।
- सिंथेटिक गैस का उत्पादन : कोयला गैसीकरण से प्राप्त सिंथेटिक गैस का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जा सकता है, जो विद्युत् , रसायन, एवं ईंधन उत्पादन के लिए एक बहुमुखी एवं विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है।
उदाहरण के लिए: सिंथेटिक गैस का उपयोग सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) और मेथनॉल के उत्पादन में विलायक के रूप में किया जा सकता है, जिससे चीन से आयात पर निर्भरता कम हो जाती है।
- ईंधन उत्पादन में वृद्धि : कोयला गैसीकरण हाइड्रोजन और मेथनॉल जैसे स्वच्छ ईंधन के उत्पादन की सुविधा प्रदान करता है , जिससे विविध एवं सुरक्षित ऊर्जा पोर्टफोलियो को समर्थन मिलता है ।
उदाहरण के लिए: भारत मेथनॉल, अमोनिया, अमोनियम नाइट्रेट तथा ओलेफिन के लिए कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है , जिन्हें सिंथेटिक गैस के उप-उत्पादों द्वारा आसानी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- ऊर्जा स्वतंत्रता : आयातित ईंधन की आवश्यकता को कम करके , कोयला गैसीकरण राष्ट्रीय ऊर्जा स्वतंत्रता में योगदान देता है, जो भू-राजनीतिक जोखिमों से सुरक्षा करता है ।
उदाहरण के लिए: भारत अपनी प्राकृतिक गैस का लगभग 50% आयात करता है, जो विदेशी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को उजागर करता है , जो राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है।
- ऊर्जा आपूर्ति में विश्वसनीयता : कोयला गैसीकरण संयंत्रों से स्थिर उत्पादन एक सतत ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करता है, जो औद्योगिक एवं आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है ।
उदाहरण के लिए: ओडिशा के अंगुल में जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ( जेएसपीएल) संयंत्र गैसीकरण के लिए स्थानीय कोयला भंडार का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है , जिससे एक स्थिर स्थानीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होती है ।
- आर्थिक विकास : कोयला गैसीकरण के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने से प्रतिस्पर्धी लागतों पर विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करके औद्योगिक वृद्धि एवं आर्थिक विकास को प्रेरित किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए: कोयला गैसीकरण भारत के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण में योगदान दे सकता है तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि कर सकता है ।
पर्यावरणीय स्थिरता:
- उत्सर्जन में कमी : कोयला गैसीकरण पारंपरिक कोयला दहन की तुलना में कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी होती है।
उदाहरण के लिए : कोयला गैसीकरण के तहत पहलें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का समर्थन करती है जिसका लक्ष्य 2024 तक 5 एवं PM10 के स्तर को 20-30% तक कम करना है ।
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) : कोयला गैसीकरण संयंत्रों में एकीकृत सीसीएस जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों के साथ सम्मिलित होकर कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है। उदाहरण के लिए: यह नीति आयोग के सतत भविष्य के दृष्टिकोण का समर्थन करता है जिसमें कोयला गैसीकरण परियोजनाओं में कार्बन कैप्चर, उपयोग, तथा स्टोरेज (सीसीयूएस) तकनीकों का कार्यान्वयन शामिल है।
- संसाधनों का कुशल उपयोग : निम्न-श्रेणी के कोयले एवं अपशिष्ट को मूल्यवान ऊर्जा में परिवर्तित करके , कोयला गैसीकरण संसाधन दक्षता को अधिकतम करता है तथा अपशिष्ट को न्यूनतम करता है ।
उदाहरण के लिए: भारत की अनुमानित विद्युत मांग के कारण 2029-30 तक कोयले की आवश्यकता लगभग एक बिलियन टन से बढ़कर 1.5 बिलियन टन हो जाएगी, कुशल कोयला गैसीकरण इस बढ़ती मांग को पूरा करने एवं संसाधन उपयोग को अनुकूलित करने में मदद कर सकता है।
- स्वच्छ ईंधन उत्पादन : इस प्रक्रिया से हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ ईंधन का उत्पादन होता है , जिससे ऊर्जा खपत का पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है तथा स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा मिलता है ।
उदाहरण के लिए : कोयला गैसीकरण संयंत्र कोई स्क्रबर स्लज(scrubber sludge) उत्पन्न नहीं करते हैं , जिससे पारंपरिक कोयला संयंत्रों से संबंधित अपशिष्ट निपटान का पर्यावरणीय बोझ कम हो जाता है।
- जल प्रबंधन : यद्यपि इसमें जल का अत्यधिक उपयोग होता है, परन्तु जल पुनर्चक्रण तथा प्रबंधन में प्रगति से कोयला गैसीकरण में जल के उपयोग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।।
उदाहरण के लिए: गैसीकरण संयंत्रों से अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण प्रभावी रूप से किया जा सकता है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- भू निम्नीकरण में कमी : कोयला गैसीकरण से पारंपरिक खनन एवं दहन विधियों की तुलना में कम भूमि का उपयोग होता है, जिससे भू निम्नीकरण तथा पारिस्थितिक प्रभाव में कमी आती है।
- नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण के लिए समर्थन : एक स्थिर ऊर्जा स्रोत प्रदान करके, कोयला गैसीकरण अक्षय ऊर्जा स्रोतों का पूरक बन सकता है, जिससे संतुलित एवं सतत ऊर्जा मिश्रण सुनिश्चित होता है ।
उदाहरण के लिए: कोयला गैसीकरण एक विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है जो राष्ट्रीय सौर मिशन का समर्थन करता है , जिससे स्थिर एवं संतुलित ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
कोयला गैसीकरण पर भारत का ध्यान 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के दीर्घकालिक लक्ष्य के अनुरूप है। यह दृष्टिकोण नवीन ऊर्जा समाधानों के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है जो सतत विकास को बढ़ावा देते हैं तथा पर्यावरणीय चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करते हैं।
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