Q. गरीबी-निवारक टीके के रूप में सूक्ष्म-वित्त का उद्देश्य भारत में ग्रामीण गरीबों के लिए परिसंपत्ति सृजन और आय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ इन दोहरे उद्देश्यों की प्राप्ति में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ परिसंपत्ति निर्माण में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका लिखिए।
  • ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ आय सुरक्षा प्राप्त करने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका लिखिए।
  • ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में स्वयं सहायता समूहों के लिए चुनौतियाँ लिखिए।

उत्तर

भारत में सूक्ष्म वित्त आंदोलन, वर्ष 1974 में सेवा बैंक से प्रारंभ होकर, स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने में सहायक रहा है। बचत को बढ़ावा देकर तथा बिना संपार्श्विक के ऋण प्राप्त कर, SHGs ने परिसंपत्ति निर्माण, आय सुरक्षा और उद्यमिता को प्रोत्साहित किया। SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम और मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के सहयोग से ये समावेशी विकास और महिला सशक्तीकरण को आगे बढ़ा रहे हैं।

ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ परिसंपत्ति निर्माण में SHGs की भूमिका

  • उत्पादक परिसंपत्तियों के लिए ऋण तक पहुँच: SHGs गरीब महिलाओं को बिना किसी संपार्श्विक के औपचारिक ऋण तक पहुँच प्रदान करती हैं, जिसे वे उपकरणों, पशुधन या मशीनरी में निवेश करती हैं।
    • उदाहरण: सेवा बैंक की महिलाओं ने बचत को मिलाकर सिलाई मशीनें खरीदीं, जिससे स्थायी घरेलू परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ।
  • सस्ते आवास का सहयोग: प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY-Urban) और SHG-बैंक लिंकेज जैसी सरकारी योजनाओं से जुड़कर, महिलाएँ घरों के निर्माण या उन्नयन हेतु ऋण सुरक्षित करती हैं।
  • संसाधनों का सामूहिक स्वामित्व: SHGs भूमि, उपकरण या सामुदायिक परिसंपत्तियों के सामूहिक स्वामित्व को बढ़ावा देती हैं, जिससे व्यक्तिगत असुरक्षा कम होती है।
    • उदाहरण: केरल की कुदुंबश्री SHGs सामूहिक रूप से धान मिलों का स्वामित्व एवं संचालन करती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और स्थानीय रोजगार सुनिश्चित होता है।
  • बचत का संकलन: नियमित समूह बचत महत्त्वपूर्ण निधियों में परिवर्तित हो जाती है, जिन्हें दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए उत्पादक परिसंपत्तियों में पुनर्निवेशित किया जाता है।
    • उदाहरण: नाबार्ड के SHG-बैंक लिंकेज ने बचत को संगठित कर महिलाओं को परिसंपत्ति निर्माण हेतु सक्षम बनाया।
  • सामाजिक पूँजी को सुदृढ़ करना: परिसंपत्ति निर्माण केवल भौतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक भी है, क्योंकि SHGs ऐसे नेटवर्क बनाती हैं, जो सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाते हैं और साहूकारों पर निर्भरता घटाते हैं।

ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ आय सुरक्षा में SHGs की भूमिका

  • उद्यमिता को बढ़ावा: SHGs सिलाई, हस्तशिल्प और खाद्य प्रसंस्करण जैसे सूक्ष्म उद्यमों हेतु कार्यशील पूँजी उपलब्ध कराती हैं, जिससे स्थायी आय के स्रोत निर्मित होते हैं।
    • उदाहरण: NABARD की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 99% माइक्रो फाइनेंस क्रेडिट निम्न-आय वर्ग की महिलाओं को प्रदान किए जाते हैं।
  • कौशल विकास एवं प्रशिक्षण: DAY-NULM (हुनर से रोजगार) जैसी योजनाओं के अंतर्गत SHGs महिलाओं के कौशल को स्थायी आजीविका हेतु सुदृढ़ करती हैं।
  • आय के विविध अवसर: SHGs महिलाओं को मुर्गीपालन, दुग्ध उत्पादन या बुनाई जैसी अनेक गतिविधियों में निवेश हेतु प्रोत्साहित करती हैं, जिससे एकमात्र स्रोत पर निर्भरता घटती है।
  • असुरक्षा में कमी: SHGs सूक्ष्म बीमा और आपातकालीन ऋण तक पहुँच प्रदान करती हैं, जिससे आर्थिक संकट की स्थिति में स्थिरता बनी रहती है।
    • उदाहरण: उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक की ‘छोटे कदम’ पहल ने SHG परिवारों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्रदान कर आय व्यवधान को कम किया।

ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में SHGs की चुनौतियाँ

  • अतिरिक्त ऋणभार: महिलाएँ प्रायः विभिन्न MFIs और SHGs से अनेक ऋण लेती हैं, जिससे ऋण अदायगी का दबाव और ऋण चक्र उत्पन्न होता है।
  • कम वित्तीय साक्षरता: अनेक SHG सदस्य ब्याज दरों, ऋण अदायगी समय-सारणी और बचत प्रबंधन की जानकारी से वंचित रहती हैं।
  • क्षेत्रीय विषमताएँ: SHGs दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु) में सफल हैं, किंतु उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में कमजोर बनी हुई हैं।
  • ऋण का सीमित विविधीकरण: ऋण मुख्यतः छोटे व्यापार और लघु उद्यमों तक सीमित रहता है, जबकि कृषि या आवास जैसे क्षेत्रों की उपेक्षा होती है।
  • कमजोर संस्थागत सहयोग: बैंक लिंकेज में विलंब, खराब निगरानी और डिजिटल पहुँच की कमी, SHGs की कार्यक्षमता को बाधित करती है।
    • उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान, अनेक प्रवासी SHG महिलाओं के पास डिजिटल अभिलेख न होने से वे आपातकालीन PDS या ऋण तक नहीं पहुँच सकीं।

निष्कर्ष

अधिक वित्तीय साक्षरता, डिजिटल पहुँच, तथा आवास, कृषि और उद्यमों में विविध ऋण सहयोग के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को सुदृढ़ करना उनके प्रभाव को बढ़ा सकता है। संस्थागत सहयोग, NABARD पुनर्वित्त और मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के सहारे, SHGs समावेशी विकास, गरीबी उन्मूलन तथा ग्रामीण भारत में महिला सशक्तीकरण के सतत् प्रेरक तत्त्व के रूप में विकसित हो सकती हैं।

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