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Q. भारत में स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता बढ़ाने में प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) अतिरिक्त

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: शहरी स्थानीय निकायों(ULBs) और स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस की भूमिका के बारे में संक्षेप में लिखिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • पंचायती राज संस्थाओं(PRI’s) की कार्यक्षमता को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
    • विकेंद्रीकरण की पूर्ण क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियों के बारे में लिखिए।
  • निष्कर्ष: सकारात्मक निष्कर्ष निकालिए।

 

प्रस्तावना:

विकेंद्रीकरण का तात्पर्य सरकार के उच्च स्तर से निचले स्तर तक सत्ता के हस्तांतरण से है। भारत में, 73वें और 74वें संशोधन अधिनियम ने अनुसूची 11 और 12 प्रस्तुत की, जिसने क्रमशः पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को सशक्त बनाया।

स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता बढ़ाने में प्रौद्योगिकी का उपयोग अब अपरिहार्य हो गया है, और वर्तमान में यह विवेकपूर्ण भी है क्योंकि यह विकास संबंधी कार्यक्रम को बिना देरी के कार्यवान्वित करने में मदद करता है, जिससे इन संस्थानों  की उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।

मुख्य विषयवस्तु:

स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस की भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं;

  • बेहतर सेवा वितरण: प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस ने जन्म पंजीकरण, संपत्ति कर भुगतान और प्रमाणपत्र जारी करने जैसी प्रक्रियाओं को सरल बना दिया है, जिससे स्थानीय संस्थानों की दक्षता में बढ़ोतरी हुई है और नौकरशाही से जुड़ी बाधाओं को कम किया है।
  • पारदर्शी और जवाबदेही शासन व्यवस्था: वित्तीय प्रबंधन, खरीद और शिकायत निवारण के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म भ्रष्टाचार को कम करते हैं और स्थानीय संस्थानों में पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं।
  • नागरिक जुड़ाव और भागीदारी: ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और मोबाइल ऐप नागरिक प्रतिक्रिया, मुद्दों की रिपोर्टिंग और निर्णय लेने में सक्रिय भागीदारी को सक्षम करते हैं, जिसका उदाहरण “माईगॉव”(“MyGov”) और “ईग्राम-स्वराज”( eGram-Swaraj) जैसी पहल हैं।
  • कुशल सूचना प्रबंधन: प्रौद्योगिकी बेहतर डेटा संग्रह, भंडारण और विश्लेषण को सक्षम बनाती है, जिससे जीआईएस जैसे उपकरणों का उपयोग करके साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और लक्षित हस्तक्षेप की सुविधा मिलती है।
  • वित्तीय समावेशन को सुदृढ़ करना: डिजिटल भुगतान प्रणाली और मोबाइल वॉलेट वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं, विशेषकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बीच।
    • डीबीटी सब्सिडी और कल्याणकारी लाभों को डिजिटल रूप से स्थानांतरित करता है, इसके अतिरिक्त बिचौलियों और रिसाव को कम करता है, और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच का विस्तार करता है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाटना: प्रौद्योगिकी कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) जैसी पहलों के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस जैसी सेवाएं प्रदान करती है, जिससे सरकारी योजनाओं, स्वास्थ्य देखभाल और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों तक पहुंच सुनिश्चित होती है।
  • कुशल संसाधन प्रबंधन: स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा प्रबंधन प्रणालियाँ और जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियाँ संसाधन उपयोग को अनुकूलित करती हैं, शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता और जल संरक्षण को बढ़ाती हैं।
  • वित्तीय प्रबंधन और जवाबदेही: विकेंद्रीकरण ने जमीनी स्तर पर वित्तीय प्रबंधन में सुधार किया है, जिससे स्थानीय निकाय अपने प्राप्त धन के लिए अधिक जवाबदेह बन गए हैं। अनिवार्य रूप से किए जाने वाले सामाजिक ऑडिट शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाते हैं।

हालाँकि, विकेंद्रीकरण की पूरी क्षमता को साकार करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

  • डिजिटल विभाजन: प्रौद्योगिकी और इंटरनेट कनेक्टिविटी तक असमान पहुंच डिजिटल विभाजन पैदा करती है, जिससे ई-गवर्नेंस पहल की पहुंच और प्रभाव सीमित हो जाता है, विशेषकर ग्रामीण और सीमांत क्षेत्रों में।
  • सीमित डिजिटल साक्षरता: नागरिकों के बीच डिजिटल साक्षरता का निम्न स्तर ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में चुनौतियां पैदा करता है, जिससे उनकी भागीदारी और डिजिटल सेवाओं से लाभ में बाधा आती है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम: प्रौद्योगिकी और डिजिटल प्लेटफार्मों पर बढ़ती निर्भरता डेटा उल्लंघनों और संवेदनशील जानकारी के साथ साइबर सुरक्षा से जुड़े खतरों को प्रकाश में लाती है, जिसके लिए ठोस सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
  • बुनियादी ढांचे में खामियाँ: अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, जैसे विश्वसनीय विद्युत और इंटरनेट कनेक्टिविटी, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी-संचालित पहलों के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: ई-गवर्नेंस में व्यक्तिगत डेटा का संग्रह और उपयोग गोपनीयता संबंधी चिंताओं को बढ़ाता है, जिससे कड़े डेटा सुरक्षा उपायों और नीतियों के कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है।
  • क्षमता निर्माण: सरकारी अधिकारियों और हितधारकों के लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पहल प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करने और इसकी क्षमता का पूरी तरह से लाभ उठाने की उनकी कार्य क्षमता को सीमित कर सकती है।
  • कनेक्टिविटी और तकनीकी मुद्दे: तकनीकी विसंगति, नेटवर्क व्यवधान और सिस्टम विफलताएं ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों के कामकाज को बाधित कर सकती हैं, जिससे देरी और अक्षमताएं हो सकती हैं।

निष्कर्ष:

प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस ने भारत में स्थानीय संस्थानों को कई लाभ पहुंचाए हैं। डिजिटल विभाजन, सीमित बुनियादी ढाँचा और डिजिटल में रूपान्तरण के प्रतिरोध जैसी चुनौतियों पर अभी भी ध्यान देने की आवश्यकता है। डिजिटल बुनियादी ढांचे, क्षमता निर्माण और जागरूकता कार्यक्रमों में निरंतर निवेश से स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता में और वृद्धि होगी और समावेशी और प्रभावी शासन में योगदान मिलेगा।

 

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