Q. वर्ष 1956 में स्वेज संकट के लिए कौन सी घटनाएँ जिम्मेदार थीं? इसने विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की छवि को किस तरह से नुकसान पहुँचाया? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • स्वेज नहर संकट के बारे में संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • वर्ष 1956 में स्वेज संकट के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार इसने विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की छवि को नुकसान पहुंचाया।

उत्तर

स्वेज नहर संकट, वैश्विक भू-राजनीति और औपनिवेशिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण था। आज, वैश्विक व्यापार का लगभग 12%, दुनिया का 7% कच्चा तेल इस नहर से होकर गुजरता है जो आधुनिक विश्व में इसके आर्थिक और सामरिक महत्त्व को उजागर करता है।

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स्वेज नहर संकट का कारण बनने वाली घटनाएँ

  • वर्ष 1858 : फ्रांसीसी राजनयिक फर्डिनेंड डी लेसेप्स ने मिस्र के सईद पाशा के सहयोग से यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी का गठन किया, जिसे 99 वर्षों तक नहर का निर्माण और संचालन करने का कार्य सौंपा गया ।
  • 17 नवंबर, 1869: स्वेज नहर आधिकारिक रूप से प्रारंभ की गई, जिससे एशिया और यूरोप के बीच का समुद्री मार्ग 7,000 किमी तक कम हो गया।
  • वर्ष 1936: एक संधि के तहत ब्रिटेन को अपने औपनिवेशिक हितों की रक्षा के लिए स्वेज नहर क्षेत्र में सेना तैनात करने की अनुमति दी गई ।
  • 26 जुलाई, 1956 : मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर ने आस्वान बांध परियोजना के वित्तपोषण के लिए स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया, जिससे पश्चिमी शक्तियों के साथ तनाव बढ़ गया।
  • अक्टूबर 1956 : स्वेज संकट की शुरुआत तब हुई जब ब्रिटेन, फ्रांस और इजरायल ने इस पर नियंत्रण पाने के लिए मिस्र पर समन्वित सैन्य हमला किया । हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा । (ऑपरेशन मस्कटियर)
  • वर्ष 1957: संयुक्त राष्ट्र ने  मिस्र और इजरायल के बीच शांति बनाए रखने के लिए पहली बार नहर के आसपास  शांति सेना तैनात की ।
  • वर्ष 1967 : नासिर ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को सिनाई से बाहर जाने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया। जवाब में, मिस्र ने आठ साल के लिए नहर बंद कर दी ।
  • वर्ष 1975: लगभग एक दशक तक बंद रहने के बाद स्वेज नहर अरब-इजरायल संघर्ष के कारण पुनः खुली ।

स्वेज नहर ने विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की छवि को किस प्रकार क्षति पहुँचाई:

  • वैश्विक शक्ति गतिशीलता में परिवर्तन: युद्ध विराम के लिए वार्ता करने हेतु ब्रिटेन की अमेरिका और USSE पर निर्भरता ने उसके घटते वैश्विक प्रभाव को उजागर किया, जो इन महाशक्तियों की ओर शक्ति के परिवर्तन का संकेत था। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिकी हस्तक्षेप ने ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया, जिससे उनकी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की कम होती क्षमता उजागर हुई।
  • अमेरिकी प्रभाव का उदय: संकट में मध्यस्थता करके अमेरिका एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा, जिससे अंतरराष्ट्रीय मामलों में ब्रिटेन का अधिकार कम हो गया। 
    • उदाहरण के लिए: आक्रमण की निंदा करने वाले आइजनहावर ने शीत युद्ध की भू-राजनीति में अमेरिका की प्रमुख भूमिका को दर्शाया।
  • सैन्य सीमाओं का खुलासा: अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के बिना अपने सैन्य अभियान को जारी रखने में ब्रिटेन की असमर्थता ने इसकी घटती सैन्य क्षमताओं को दर्शाया। 
    • उदाहरण के लिए: ऑपरेशन मस्कटियर के दौरान पुरानी रणनीति पर ब्रिटिश सेना की निर्भरता ने उसकी कमजोरियों को उजागर किया, जिससे ब्रिटेन को अपनी रक्षा नीतियों की जाँच करनी पड़ी।
  • आर्थिक तनाव और घरेलू असंतोष: इस संकट ने ब्रिटेन पर बहुत ज़्यादा आर्थिक दबाव डाला, जिससे उसकी विदेश नीतियों के खिलाफ सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई। 
    • उदाहरण के लिए: संकट के परिणामस्वरूप ब्रिटिश पाउंड में गिरावट हुई, जिससे देश की वित्तीय स्थिति कमज़ोर हो गई।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभुत्व का अंत: स्वेज संकट ने ब्रिटेन की सुभेद्यता को उजागर किया, जिससे पूर्व के उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलनों की की और प्रेरित किया। 
    • उदाहरण के लिए: घाना जैसे देशों ने ब्रिटेन के कमजोर औपनिवेशिक नियंत्रण को देखते हुए जल्द ही स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।

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वर्ष 1956 के स्वेज नहर संकट ने वैश्विक महाशक्ति के रूप में ब्रिटेन के युग का अंत कर दिया। इस संकट ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद की कमियों को उजागर किया, उपनिवेशवाद को समाप्त करने में तेजी लाई और वैश्विक शक्ति संरचना को नया आकार दिया। इस निर्णायक क्षण ने एक नई वैश्विक व्यवस्था के उद्भव को रेखांकित किया, जिसने भू-राजनीति में एक प्रमुख शक्ति के रूप में ब्रिटेन की भूमिका को समाप्त कर दिया।

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