Q. हाल ही में दिल्ली में आए भूकंप, बढ़ती विवर्तनिक गतिविधियों के बीच शहरी भारत की भूकंपीय संवेदनशीलता को रेखांकित करते हैं। शहरों में भूकंपरोधी क्षमता के कारणों और प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। भूकंपीय जोखिमों को कम करने के लिए नीतिगत और अवसंरचनात्मक उपाय सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भूकंपीय संवेदनशीलता के कारणों का परीक्षण कीजिए।
  • शहरों में भूकंप के प्रति प्रत्यास्थता की प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • भूकंपीय जोखिमों को कम करने के लिए नीतिगत और अवसंरचनात्मक उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत, भारतीय और यूरेशियन प्लेटों की टक्कर सीमा पर स्थित है, दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र IV में और पूर्वोत्तर क्षेत्र जोन V में है। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के अनुसार, 10 जुलाई, 2025 को दिल्ली में आए भूकंप (4.4 तीव्रता) से पता चला है कि दिल्ली में 80% से अधिक इमारतें भूकंपीय कोड का पालन नहीं कर रही हैं, जिससे तत्परता में तत्काल कमियों पर प्रकाश पड़ता है।

भूकंपीय भेद्यता के कारण

  • टेक्टोनिक सेटिंग और प्लेट टकराव: भारत का 4-5 cm/वर्ष की दर से उत्तर की ओर विस्थापन, हिमालय बेल्ट के साथ उच्च भूकंपीय तनाव का कारण बनता है।
  • उच्च प्रभाव क्षमता वाले उथले भूकंप: उथले गहराई पर मध्यम तीव्रता के भूकंप सतह को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
    • उदाहरण: जुलाई 2025 में दिल्ली में आए भूकंप (4.4 तीव्रता, 5 किमी गहराई) ने बुनियादी ढाँचे की कमजोरी को उजागर कर दिया।
  • ऐतिहासिक भूकंपीय गतिविधि: पिछले बड़े भूकंपों से भारतीय उपमहाद्वीप में आवर्ती जोखिम का पता चलता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2001 भुज (7.7 तीव्रता, 20,000+ मौतें), वर्ष 2015 नेपाल (7.8 तीव्रता), हाल ही में मार्च 2025 में मांडले भूकंप (7.7)।
  • भूकंपीय क्षेत्र विशाल आबादी वाले क्षेत्रों को कवर करते हैं: क्षेत्र II-V अपर्याप्त रेट्रोफिटिंग के साथ सघन आबादी वाले क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
    • उदाहरण: मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्य भूकंपीय क्षेत्र V (PGA > 0.36g) में स्थित हैं।
  • नरम मिट्टी और द्रवीकरण-प्रवण क्षेत्र: कई शहरी क्षेत्रों में मिट्टी कंपन को बढ़ाती है, जिससे संरचनात्मक संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • वैश्विक भूकंपीय अशांति बढ़ते जोखिम को दर्शाती है: वैश्विक स्तर पर भूकंप की बढ़ती घटनायें, गतिशील टेक्टोनिक स्थितियों का संकेत देती हैं।
    • उदाहरण: ग्रीस (6.2 तीव्रता, मई 2025), इंडोनेशिया, चिली और इक्वाडोर में आए भूकंप टेक्टोनिक अस्थिरता का संकेत देते हैं।

शहरी भारत में भूकंप प्रतिरोध की चुनौतियाँ

  • भवन निर्माण संहिता का अनुपालन न करना: अधिकांश भवनों में भूकंपरोधी विशेषताओं का अभाव होता है।
    • उदाहरण: दिल्ली की 80% से अधिक इमारतें, विशेषकर वर्ष 2000 से पहले की, IS भूकंपीय कोड का पालन नहीं करती हैं।
  • तीव्र एवं अनियमित शहरीकरण: विस्तार, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में, नियोजन की गति से आगे निकल जाता है।
  • प्रवर्तन और जागरूकता में अंतराल: भूकंप संबंधी कानून मौजूद हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं किया जाता।
    • उदाहरण: वर्ष 2007 के बाद बैंकॉक के अद्यतन कोडों के विपरीत, भारत में इसका प्रवर्तन अभी भी अपूर्ण है।
  • रियलटाइम तत्परता का अभाव: पूर्व चेतावनी प्रणालियों का कम उपयोग किया जाता है और इस संदर्भ में सार्वजनिक शिक्षा भी पर्याप्त नहीं है।
    • उदाहरण: NCS का इंडियाक्वेक ऐप मौजूद है, लेकिन इससे संबंधित सार्वजनिक और संस्थागत जागरूकता कम है।
  • सुभेद्य विरासत अवसंरचना: पुरानी इमारतें संरचनात्मक रूप से कमजोर और अविकसित रहती हैं।
    • उदाहरण: भुज और गुवाहाटी की इमारतों में लचीलापन की कमी है और वे अस्थिर मिट्टी पर बनी हैं।
  • सामुदायिक स्तर पर आपदा नियोजन का अभाव: सीमित प्रशिक्षण और प्रतिक्रिया दल के कारण आपदा शमन में देरी होती है।

नीतिगत और अवसंरचनात्मक उपाय

  • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अनिवार्य रेट्रोफिटिंग: विशाल भवनों में स्टील जैकेटिंग, शियर वॉल और बेस आइसोलेशन को लागू करना चाहिये।
    •  उदाहरण: दिल्ली विकास प्राधिकरण को वर्ष 2000 से पहले की संरचनाओं का पुनर्निर्माण करना होगा।
  • IS 1893:2016 का सख्त प्रवर्तन: सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी भूकंपीय क्षेत्रों में भवन डिजाइन नवीनतम मानकों के अनुरूप हों।
    • उदाहरण: जोन V में गुवाहाटी को बाढ़ के मैदानों में निर्माण से बचना चाहिए और इमारतों में “डीप पाइल” नींव संरचना को अपनाना चाहिए।
  • प्रारंभिक चेतावनी और निगरानी प्रणालियों को मजबूत करना: इंडियाक्वेक कवरेज का विस्तार करना चाहिए और इसे नगरपालिका चेतावनी प्रणालियों के साथ एकीकृत करना चाहिए।
  • जन जागरूकता अभियान और सुरक्षा अभ्यास: लोगों को आपातकालीन किट, सुरक्षित निकास और निकासी योजनाओं के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
  • भूकंपरोधी निर्माण को प्रोत्साहित करना: निजी भवनों में भूकंपरोधी निर्माण के लिए सब्सिडी या कर छूट‌ प्रदान करनी चाहिए।
    • उदाहरण: विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, रेट्रोफिटिंग के लिए सालाना ₹50,000 करोड़ के निवेश की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय भूकंपीय प्रतिरोध मिशन: भूकंपीय सुरक्षा के लिए राज्य और शहरी निकायों को एकीकृत करते हुए एक केंद्रीकृत मिशन शुरू करना चाहिये।

निष्कर्ष

वर्ष 2025 के भूकंप भारत के शहरों के में आने वाले भूकंपीय जोखिमों की एक गंभीर याद दिलाते हैं। प्रत्यास्थता निर्माण के लिए नियमों को लागू करना, पुराने बुनियादी ढाँचे को नया रूप देना, जागरूकता बढ़ाना और भूकंपीय अनुसंधान में निवेश करना आवश्यक है। भुज, नेपाल और म्यांमार से मिले सबक से सीख लेकर भारत में अगली आपदा आने से पहले सक्रिय योजना बनानी होगी, यह “अगर” का सवाल नहीं है, बल्कि “कब” का सवाल है।

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