प्रश्न की मुख्य माँग
- UNFCCC प्रक्रिया की प्रभावशीलता को कम करने वाली चुनौतियाँ।
- अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता को मजबूत करने के लिए सुधार और यह सुनिश्चित करना कि COP30 वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सार्थक प्रगति करे।
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उत्तर
वर्ष 1992 में अपनाया गया संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ढाँचा सम्मेलन (UNFCCC), वैश्विक जलवायु शासन की आधारशिला है। अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, वार्ता में सीमित प्रगति के कारण UNFCCC विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के वैश्विक प्रयास कमजोर पड़ रहे हैं।
UNFCCC प्रक्रिया की प्रभावशीलता में कमी लाने वाली चुनौतियाँ
- सर्वसम्मति-आधारित निर्णय: सर्वसम्मत समझौतों की आवश्यकता अक्सर प्रतिबद्धताओं को कमजोर कर देती है, जिससे सार्थक प्रगति में बाधा आती है।
- उदाहरण: पेरिस समझौते में स्वैच्छिक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) पर निर्भरता के कारण उत्सर्जन में अपर्याप्त कमी ही संभव हो पाई है।
- जीवाश्म ईंधन से संबंधित हितों का प्रभाव: COP कार्यक्रमों में जीवाश्म ईंधन लॉबिस्टों की उपस्थिति हित संघर्षों से संबंधित चिंता को जन्म देती है तथा वार्ता की अखंडता से समझौता करती है।
- जवाबदेही तंत्र का अभाव: जलवायु प्रतिबद्धताओं का पालन न करने पर प्रवर्तनीय दंडों का अभाव, UNFCCC प्रक्रिया की प्रभावशीलता को कमजोर करता है।
- उदाहरण के लिए: COP29 में अपनाया गया जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य, 2035 तक कम-से कम 300 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष जुटाने का लक्ष्य रखता है लेकिन यह अभी भी गैर-बाध्यकारी है।
- भू-राजनीतिक तनाव: चल रहे भू-राजनीतिक संघर्ष और व्यापार विवाद राष्ट्रों के बीच विश्वास को कमजोर करते हैं, जिससे सहयोगात्मक जलवायु कार्रवाई जटिल हो जाती है।
- खंडित वार्ताएँ: स्पष्ट संबंधों के बिना समानांतर जलवायु पहलों के कारण प्रयास खंडित हो जाते हैं और कार्यान्वयन में जड़ता आ जाती है।
- उदाहरण के लिए: अनुकूलन संकेतकों पर ग्लासगो-शर्म-अल-शेख वर्क प्रोग्राम (Glasgow–Sharm-el-Sheikh Work Program) और UAE-बेलेम वर्क प्रोग्राम (UAE-Belem Work Program) अलग-अलग ढंग से संचालित हुए हैं।
- हाशिए पर स्थित लोगों के हितों का बहिष्कार: UNFCCC प्रक्रिया की आलोचना इस बात के लिए की गई है कि इसमें स्वदेशी समुदायों और हाशिए पर पड़े समूहों को निर्णय लेने से बाहर रखा गया है।
ये चुनौतियाँ UNFCCC प्रक्रिया की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बहाल करने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता को मजबूत करने के लिए सुधार
- बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं को लागू करना: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उत्सर्जन में कमी और जलवायु वित्त के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धताएं स्थापित करनी चाहिए।
- पारदर्शिता बढ़ाना: COP प्रतिभागियों के लिए एक केंद्रीकृत रजिस्ट्री बनानी चाहिए ताकि वे अपनी संबद्धताएँ सार्वजनिक रूप से घोषित कर सकें, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
- उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ पारदर्शिता रजिस्टर लॉबिस्ट संबद्धता और वित्तपोषण स्रोतों का खुलासा अनिवार्य करता है, जो COP-स्तरीय पारदर्शिता सुधारों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
- जीवाश्म ईंधन लॉबिस्टों को बाहर करना: अनुचित प्रभाव को रोकने के लिए जीवाश्म ईंधन और उच्च प्रदूषणकारी उद्योग लॉबिस्टों को COP कार्यक्रमों में भाग लेने से प्रतिबंधित करना चाहिए।
- उदाहरण: 250 से अधिक नागरिक समाज संगठनों ने COP30 से जलवायु वार्ताओं से जीवाश्म ईंधन हितों को हटाने का आग्रह किया है।
- बहुमत-आधारित निर्णय-प्रक्रिया अपनाना: जब आम सहमति विफल हो जाए तो गतिरोध को रोकने के लिए बहुमत-आधारित निर्णय-प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
- गैर-राज्य अभिकर्ताओं को शामिल करना: प्रतिबद्धताओं को व्यापक बनाने के लिए जलवायु वार्ता में कंपनियों, शहरों और राज्यों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना: ठोस परिणाम प्राप्त करने के लिए, केवल वार्ताओं से हटकर मौजूदा समझौतों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: COP30 की ब्राजील की अध्यक्षता में कार्यान्वयन और बहुपक्षवाद को प्रमुख उद्देश्यों के रूप में महत्त्व दिया गया है।
निष्कर्ष
समावेशी निर्णय लेने, मजबूत जवाबदेही तंत्र और प्रबलित बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता को मजबूत करने से COP30 के परिणाम व्यापक सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ संरेखित होंगे, जिससे एक न्यायसंगत और संधारणीय वैश्विक प्रतिक्रिया सुनिश्चित होगी।
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