Q. नीतिगत-स्तरीय प्रयोजन और निपुण भारत जैसे बड़े पैमाने के प्रयासों के बावजूद, भारत में बुनियादी शिक्षण परिणामों को प्रणालीगत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सार्वभौमिक बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) प्राप्त करने में नीतिगत डिजाइन और कक्षा कार्यान्वयन के बीच अंतर की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि नीति-स्तरीय मंशा और NIPUN भारत जैसे बड़े पैमाने के प्रयासों के बावजूद भारत में आधारभूत शिक्षण परिणामों को प्रणालीगत चुनौतियों का सामना क्यों करना पड़ रहा है।
  • सार्वभौमिक आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) प्राप्त करने में नीति डिजाइन और कक्षा कार्यान्वयन के बीच अंतर का परीक्षण कीजिए।
  • अब तक प्राप्त सफलता का परीक्षण कीजिए।
  • आगे की राह।

उत्तर

आधारभूत शिक्षा का तात्पर्य प्रारंभिक शिक्षा में अर्जित बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल से है, जो आजीवन शिक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और NCERT द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन के अनुसार लगभग 37% कक्षा 3 में नामांकित छात्रों में से 10 प्रतिशत के पास संख्याओं की पहचान करने जैसे बुनियादी संख्यात्मक कौशल “सीमित” हैं। जबकि NIPUN भारत जैसी पहल का उद्देश्य इन अंतरों को कम करना है परंतु शिक्षण, मूल्यांकन और बुनियादी ढाँचे में आने वाली निरंतर समस्याएँ प्रगति में बाधा डालती हैं।

नीतिगत प्रयासों के बावजूद प्रणालीगत चुनौतियाँ

  • शिक्षक प्रशिक्षण अंतराल: कई शिक्षकों को केवल एक बार प्रशिक्षण प्राप्त होता है  तथा विविध क्लासरूम संदर्भों के लिए FLN रणनीतियों को अनुकूलित करने हेतु उन्हें प्रशिक्षण सहायता नहीं मिलती।
  • अवसंरचनात्मक बाधाएँ: कक्षाओं में छात्रों की अधिक संख्या और शिक्षण-अधिगम सामग्री (TLM) के भंडारण की कमी के कारण इंटरैक्टिव शिक्षण में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे गतिविधि-आधारित शिक्षण दृष्टिकोण को लागू करना कठिन हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: मल्टी-ग्रेड क्लासरुम वाले ग्रामीण स्कूलों में, स्थान कम होने के कारण FLN रणनीतियों को लागू करना कठिन होता है, जिससे शिक्षकों को रटने वाली शिक्षा पर निर्भर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • पाठ्यक्रम पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना: शिक्षक संकल्पनात्मक समझ की तुलना में पाठ्यक्रम पूरा करने को प्राथमिकता देते हैं जिससे FLN हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: ASER 2024 के अनुसार यद्यपि मासिक FLN मूल्यांकन आयोजित किए जाते हैं, लेकिन उनके परिणामों का उपयोग शिक्षण परिणामों को बेहतर बनाने के लिए शिक्षण विधियों को संशोधित करने के लिए शायद ही कभी किया जाता है।
  • सामुदायिक सहभागिता का अभाव: प्रारंभिक साक्षरता और अंकगणित में अभिभावकों की जागरूकता और सहभागिता सीमित रहती है, जिससे स्कूल के बाहर शिक्षण के सुदृढ़ीकरण में कमी आती है।
  • असंगत निगरानी तंत्र: राज्य, FLN कार्यान्वयन पर नजर रखने के तरीकों में भिन्न होते हैं और उनके द्वारा अक्सर कक्षा शिक्षण में सुधार के बजाय डेटा संग्रह अनुपालन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: कुछ राज्यों में, अधिकारी मॉनिटरिंग विजिट करते हैं, लेकिन प्रभावी FLN पद्धतियों पर शिक्षकों को मार्गदर्शन देने के बजाय रिपोर्ट फाइलिंग पर बल दिया जाता है।

नीति डिजाइन और कक्षा कार्यान्वयन के बीच अंतर

  • टॉपडाउन कार्यान्वयन दृष्टिकोण: नीतियाँ केन्द्रीय स्तर पर तैयार की जाती हैं, लेकिन शिक्षकों को उन्हें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में बहुत कम स्वायत्तता प्राप्त होती है।
    • उदाहरण के लिए: जनजातीय क्षेत्रों में, जहाँ घरेलू भाषाएँ पाठ्यपुस्तकों से भिन्न होती हैं , FLN शिक्षण अप्रभावी रहता है क्योंकि शिक्षण पद्धतियाँ  भाषाई विविधता के अनुकूल नहीं होती हैं।
  • TLM  का सीमित व्यावहारिक उपयोग: जबकि FLN नीति इंटरैक्टिव शिक्षण पर बल देती है, शिक्षण-अधिगम सामग्री का उपयोग अक्सर छात्रों को शामिल करने के बजाय प्रदर्शन मोड में किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: ASER ने पाया कि एक मामले को छोड़कर शेष सभी मामलों में, TLM का उपयोग केवल शिक्षकों द्वारा किया गया था जिससे विद्यार्थियों की भागीदारी का अवसर समाप्त हो गया।
  • प्रशिक्षण के बाद शिक्षकों को अपर्याप्त सहायता: शिक्षकों को प्रायः रियलटाइम क्लासरुम चुनौतियों से जूझना पड़ता है तथा प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद उन्हें बहुत कम मार्गदर्शन मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: कुछ राज्य परामर्श-आधारित सहायता प्रदान करते हैं, परंतु कई शिक्षक निरंतर मार्गदर्शन या पुनश्चर्या प्रशिक्षण से अनभिज्ञ हैं या उस तक पहुंचने में असमर्थ हैं।
  • FLN और पारंपरिक मूल्यांकन के बीच बेमेल: FLN की सफलता संकल्पनात्मक समझ पर निर्भर करती है परंतु मूल्यांकन कलम-और-कागज़ आधारित रहता है  जिससे रटने की शिक्षा को बल मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: यद्यपि मासिक FLN परीक्षाएँ होती हैं, अधिकांश राज्य क्लासरुम प्रैक्टिस में संशोधन करते समय परिणामों को एकीकृत नहीं करते हैं , जिससे उनका प्रभाव कम हो जाता है।
  • ग्रामीण विद्यालयों में तार्किक बाधाएँ: ग्रामीण और मल्टी-ग्रेड कक्षाओं को अनुकूलित रणनीतियों की आवश्यकता होती है परंतु नीतियां सभी के लिए एक ही तरह की पद्धति अपनाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: मिश्रित ग्रेड के छात्रों वाली आउटडोर कक्षाओं में संरचित FLN वितरण का अभाव होता है, जिसके लिए मानक पाठ्यक्रम के बजाय अनुकूली संदर्भ-विशिष्ट समाधान की आवश्यकता होती है।

अब तक प्राप्त सफलता

  • शिक्षकों में नीति जागरूकता में वृद्धि: शिक्षक FLN के महत्त्व को समझते हैं  जिससे क्लासरुम प्राथमिकताओं में बदलाव दिखता है।
    • उदाहरण के लिए: सर्वेक्षण किए गए आठ राज्यों में, शिक्षकों ने FLN  के प्रति अपनी स्वीकृति व्यक्त की , तथा प्रारंभिक साक्षरता लक्ष्यों को अपनाने में मनोवृत्तिगत परिवर्तन को प्रदर्शित किया।
  • उच्चतर FLN निर्देश कार्यान्वयन: 80% से अधिक ग्रामीण स्कूलों में सरकार द्वारा अनिवार्य FLN गतिविधियां होती हैं, जो जमीनी स्तर पर नीति के कार्यान्वयन को दर्शाती हैं।
    • उदाहरण के लिए: ASER 2024 में पाया गया कि सरकारी स्कूल पूरे भारत में FLN सुधारों के प्राथमिक चालक रहे हैं।
  • आधारभूत स्तर पर सकारात्मक शिक्षण परिणाम: ASER सर्वेक्षणों के 20 वर्षों में पहली बार देश भर में आधारभूत शिक्षण स्तर में सुधार हुआ है।
    • उदाहरण के लिए: ASER रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकारी स्कूलों के छात्र FLN कौशल में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं  जो पिछली स्थिरता की प्रवृत्ति को उलट रहा है।
  • FLN संसाधनों की बेहतर उपलब्धता: कई राज्य शिक्षकों को अनुकूलित TLM बनाने के लिए धन उपलब्ध कराते हैं, जिससे स्थानीय शिक्षण नवाचारों को बढ़ावा मिलता है।
  • क्लासरूम पद्धति में क्रमिक बदलाव: चुनौतियों के बावजूद, अधिकांश शिक्षक परंपरागत रटने वाली शिक्षा से आगे बढ़कर इंटरैक्टिव तरीकों का प्रयास कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: कुछ शिक्षक अब अपनी कक्षाओं में कहानी सुनाने और एक्टिविटीज को शामिल करते हैं, जिससे छात्रों की सहभागिता बढ़ती है।

आगे की राह 

  • प्रशिक्षण के बाद सहायता को सुदृढ़ बनाना: मार्गदर्शन नेटवर्क स्थापित करना चाहिए जहां शिक्षक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें और FLN कार्यान्वयन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकें।
    • उदाहरण के लिए: जिला स्तर पर FLN सलाहकारों की स्थापना, जो नियमित रूप से स्कूलों का दौरा करते हैं, शिक्षकों को FLN पद्धतियों को अनुकूलित और परिष्कृत करने में मदद कर सकते हैं।
  • संदर्भ-विशिष्ट अनुकूलन को बढ़ावा देना: स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर FLN दृष्टिकोण को संशोधित करना चाहिए, विशेष रूप से मल्टी-ग्रेड और भाषाई रूप से विविध कक्षाओं के लिए।
    • उदाहरण के लिए: जनजातीय क्षेत्रों में समझ बढ़ाने के लिए स्थानीय और मुख्यधारा की भाषाओं का उपयोग करते हुए द्विभाषी शिक्षण विधियों को एकीकृत किया जा सकता है।
  • मूल्यांकन पद्धति में सुधार: पाठ्यक्रम-आधारित परीक्षाओं के स्थान पर योग्यता-आधारित मूल्यांकन की पद्धति अपनाई जानी चाहिए, जो वास्तविक शिक्षण प्रगति पर नज़र रखे।
    • उदाहरण के लिए: राज्य, अनुकूली शिक्षण मूल्यांकन को अपना सकते हैं।
  • व्यावहारिक TLM प्रयोग को बढ़ाना: स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ रेडीमेड FLN  किट उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि केवल शिक्षकों के बजाय विद्यार्थी सक्रिय रूप से शिक्षण सहायक सामग्री का प्रयोग करें।
    • उदाहरण के लिए: सरकारी पहल से स्कूलों में TLM रिपॉजेटरी बनाए जा सकते हैं जिससे शिक्षकों पर कंटेंट तैयार करने का बोझ डाले बिना संरचित संसाधन उपलब्ध कराए जा सकें।
  • FLN में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना: बुनियादी शिक्षा में माता-पिता को शामिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाना चाहिए ताकि, घर पर साक्षरता प्रदान करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली के “रीडिंग मेला” जैसे समुदाय-संचालित रीडिंग कार्यक्रमों ने प्रारंभिक शिक्षण गतिविधियों में अभिभावकों की सहभागिता बढ़ाने में मदद की है ।

शिक्षित मन एक मुक्त मन होता है लेकिन सच्ची मुक्ति मजबूत आधारभूत शिक्षा से शुरू होती है। नीति-कक्षा के अंतर को कम करने के लिए एक तालमेलपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें कठोर शिक्षक प्रशिक्षण, स्थानीय पाठ्यक्रम डिजाइन, मजबूत मूल्यांकन तंत्र और सामुदायिक जुड़ाव पर ध्यान दिया जाये। प्रयोजन को क्रियान्वयन के साथ जोड़कर, भारत एक ऐसा भविष्य बना सकता है जहाँ हर बच्चा पढ़े, समझे और आगे बढ़े।

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