प्रश्न की मुख्य माँग
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और जनजातीय क्षेत्रों में खनन से उत्पन्न होने वाली शासन संबंधी चुनौतियाँ क्या हैं?
- संसाधन प्रबंधन के लिए एक स्थायी और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु अपनाए जा सकने वाले उपाय।
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उत्तर
पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और जनजातीय क्षेत्रों में खनन गंभीर शासन संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है, विशेषकर तब जब सामुदायिक अधिकारों और पर्यावरणीय चिंताओं की अनदेखी की जाती है। मेघालय में डोमियासियात और वाहकाजी में यूरेनियम भंडारों का 1980 के दशक से ही खासी समूहों द्वारा विरोध किया जा रहा है। परमाणु, महत्त्वपूर्ण और सामरिक खनिजों को जनपरामर्श से छूट देने वाला केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का वर्ष 2024 का कार्यालय ज्ञापन (OM) तनावों को और गहरा कर चुका है, जिससे संघवाद, सहमति और सतत् विकास पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं।
जनजातीय एवं पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में यूरेनियम खनन की शासन संबंधी चुनौतियाँ
- सामुदायिक सहमति की अनदेखी: वर्ष 2024 के कार्यालय ज्ञापन ने यूरेनियम खनन को जनपरामर्श से मुक्त कर दिया, जिससे दशकों से विरोध कर रहे खासी समूहों के मुद्दे निरर्थक हो गए।
- प्रक्रियात्मक सुरक्षा का ह्रास: पारदर्शी जनसुनवाई के बजाय कार्यकारी कार्यालय ज्ञापन जारी करना निगरानी को कमजोर करता है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर बनाता है।
- उदाहरण: पर्यावरण मंत्रालय का कार्यालय ज्ञापन (वर्ष 2024) मानक EIA परामर्श तंत्र को दरकिनार कर गया।
- छठी अनुसूची की स्वायत्तता का कमजोर होना: केंद्रीय निर्देशों ने जनजातीय अधिकारों और भूमि की रक्षा हेतु स्वायत्त परिषदों की संवैधानिक शक्तियों को कमजोर किया।
- उदाहरण: खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद को अपनी छठी अनुसूची की शक्तियों का उपयोग करने का आग्रह किया गया।
- झारखंड से ऐतिहासिक अविश्वास: सिंहभूम में असुरक्षित खनन और सामुदायिक मुद्दों की उपेक्षा के अनुभवों ने यूरेनियम परियोजनाओं पर अविश्वास उत्पन्न किया।
- उच्च पारिस्थितिक और स्वास्थ्य जोखिम: यूरेनियम खनन समुदायों को विकिरण खतरों में डालता है और राज्य के संवेदनशील परिदृश्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचाता है।
- लंबे कानूनी संघर्षों का जोखिम: एकतरफा खनन निर्णय कानूनी चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं, जिससे शासन की वैधता कमजोर होती है।
- उदाहरण: समुदाय कार्यालय ज्ञापन को नियमगिरि मामला (वर्ष 2013) और छठी अनुसूची संरक्षण का हवाला देकर चुनौती दे सकते हैं।
सतत् एवं समावेशी संसाधन प्रबंधन हेतु उपाय
- जनपरामर्श की बहाली: अनिवार्य जनपरामर्श को पुनः लागू करना लोगों के बीच विश्वास की बहाली करेगा और सहभागितापूर्ण निर्णय सुनिश्चित करेगा।
- उदाहरण: वर्ष 2024 के कार्यालय ज्ञापन को वापस लेना यूरेनियम खनन में पारदर्शिता बनाएगा।
- छठी अनुसूची संस्थानों को सशक्त बनाना: स्थानीय परिषदों को सशक्त करना संवैधानिक स्वायत्तता और जनजातीय हितों की रक्षा कर सकता है।
- FPIC सिद्धांत अपनाना: स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (Free, Prior and Informed Consent- FPIC) लोकतांत्रिक संसाधन शासन की वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सुमेलित है।
- यूरेनियम के विकल्प तलाशना: इसके पारिस्थितिक और सामाजिक जोखिमों को देखते हुए ऊर्जा सुरक्षा को केवल यूरेनियम पर आधारित नहीं होना चाहिए।
- संस्थागत संवाद मंच: राज्य और जनजातीय नेताओं के बीच संरचित संवाद बल प्रयोग को रोक सकता है और सहमति को प्रोत्साहित कर सकता है।
- विकास और स्थिरता में संतुलन: नीतियों को राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों और अपूरणीय पारिस्थितिक प्रभावों के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए।
निष्कर्ष
एक सतत् खनन ढाँचा पारदर्शिता, सहमति और पारिस्थितिक सुरक्षा पर आधारित होना चाहिए, न कि बल प्रयोग पर। खनिज नीति पर होड़ा समिति (Hoda Committee) ने संसाधन विकास और जनजातीय अधिकारों व पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया था। छठी अनुसूची की स्वायत्तता को बनाए रखना, जनपरामर्श को पुनः स्थापित करना और ऊर्जा रणनीतियों का विविधीकरण भारत के संसाधन शासन को अधिक समावेशी और भविष्य के लिए तैयार बनाएगा।
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