Q. परीक्षण कीजिए कि डिजिटल व्यापार समझौते भारत की स्वदेशी डिजिटल क्षमताओं को विकसित करने की क्षमता को कैसे बाधित कर सकते हैं। दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • डिजिटल व्यापार संबंधी समझौते भारत की स्वदेशी डिजिटल क्षमताओं को कैसे बाधित कर सकते हैं।
  • दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए आवश्यक सुधार।

उत्तर

जैसे-जैसे दुनिया की शक्ति तेल क्षेत्रों से डेटा क्षेत्र की ओर बढ़ रही है, भारत एक रणनीतिक चौराहे पर खड़ा है। वैश्विक तकनीकी दिग्गजों द्वारा बनाए गए डिजिटल व्यापार नियम अल्पकालिक सुविधा का प्रलोभन देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक निर्भरता का जोखिम उत्पन्न करते हैं। वास्तविक चुनौती अपनी संप्रभुता का त्याग किए बिना अपने डिजिटल भविष्य की रक्षा करना है।

डिजिटल व्यापार संबंधी समझौते भारत की स्वदेशी डिजिटल क्षमताओं को कैसे बाधित कर सकते हैं 

  • नियामक स्वायत्तता का क्षरण: विदेशी डिजिटल सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के प्रति प्रतिबद्धताएँ भारत को डेटा स्थानीयकरण और प्लेटफॉर्म विनियमन जैसी नीतियों को लागू करने से रोक सकती हैं।
  • डिजिटल औद्योगिक नीति में बाधाएँ: सोर्स कोड की माँग को अस्वीकार करने वाले खंड शामिल किये गए हैं। 
    • उदाहरण: मलेशिया ने अमेरिकी फर्मों से सोर्स कोड या स्वामित्व ज्ञान की माँग नहीं करने की प्रतिबद्धता जताई है, एक ऐसा प्रावधान जिसका सामना भारत को इसी तरह के मुक्त व्यापार समझौतों में करना पड़ सकता है।
  • डिजिटल सेवाओं से राजस्व हानि: डिजिटल कराधान पर प्रतिबंध, घरेलू स्तर पर काम कर रही वैश्विक तकनीकी कंपनियों से उचित राजस्व एकत्र करने की भारत की क्षमता को कम करते हैं।
  • विदेशी प्रौद्योगिकी स्टैक पर निर्भरता: पारस्परिक नियंत्रण के बिना खुली पहुँच, अमेरिका-आधारित तकनीकी अवसंरचना पर गहरी निर्भरता पैदा करती है, जिससे संप्रभु एआई और सेमीकंडक्टर विकास प्रभावित होता है।
    • उदाहरण: अमेरिका का डेटा और SWIFT जैसे डिजिटल वित्तीय बुनियादी ढाँचे पर  प्रभुत्व, भारत की निर्णय लेने की स्वायत्तता के लिए खतरा है।
  • भविष्य की बातचीत में कमजोर सौदेबाजी: बाध्यकारी व्यापार धाराएँ भारत को खरीद या नियामक प्राथमिकताओं के जरिए घरेलू प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने से रोक सकती हैं।
    • उदाहरण: मौजूदा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ऐसे प्रावधानों को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं, जो भारत को घरेलू डिजिटल उत्पादों को बढ़ावा देने वाले उपायों से दूर रहने की माँग करते हैं।

दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सुधारों की आवश्यकता

  • मजबूत डिजिटल संप्रभुता कानून: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर घरेलू कानूनी सर्वोच्चता सुनिश्चित करें, विशेष रूप से डेटा संरक्षण, एआई शासन और महत्त्वपूर्ण तकनीक के क्षेत्र में।
    • उदाहरण: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियमों की अधिसूचना यह सुनिश्चित करती है कि बाहरी डिजिटल व्यापार दबावों पर घरेलू कानून को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • रणनीतिक डिजिटल औद्योगीकरण: लक्षित निवेश और खरीद नीतियों के माध्यम से स्वदेशी क्लाउड, सेमीकंडक्टर और डीपीआई-आधारित पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: बड़ी तकनीकी कंपनियों के प्रभुत्व के विरुद्ध घरेलू डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (आधार, इंडिया स्टैक) का निर्माण।
  • रेड लाइन्स के साथ संतुलित एफटीए (FTA): बिग टेक के गैर-भेदभावपूर्ण विनियमन पर अंकुश लगाने वाले प्रावधानों को अस्वीकार करें और डेटा-संबंधी कराधान और निर्यात नियंत्रण के अधिकारों को सुरक्षित रखें।
  • कुशल डिजिटल कार्यबल का निर्यात लाभ: सावरेन पॉलिसी स्पेस को छोड़ने के बजाय, भारत की सॉफ्टवेयर डिजाइन विशेषज्ञता को वार्ता के अहम् खंड के रूप में उपयोग करना।
  • साइबर और कंप्यूटिंग प्रणाली को मजबूत करना: भविष्य की डेटा-संचालित अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए संप्रभु कंप्यूट स्टैक और सुरक्षित डिजिटल नेटवर्क बनाना।
    • उदाहरण: चीन का संप्रभु कंप्यूट स्टैक दर्शाता है कि हार्डवेयर-से-क्लाउड चरणों को नियंत्रित करने से 7 ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था कैसे बनती है।

निष्कर्ष

डिजिटल संप्रभुता सुनिश्चित करना केवल एक नीतिगत प्राथमिकता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय अनिवार्यता है। अपने नियामकीय दायरे की रक्षा करके और घरेलू तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा देकर, भारत उच्च-मूल्य वाली नौकरियाँ सुरक्षित कर सकता है, अपनी डेटा संपदा पर नियंत्रण बनाए रख सकता है, और तेजी से बदलती वैश्विक व्यवस्था में एक संप्रभु डिजिटल शक्ति के रूप में उभर सकता है।

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