Q. संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ ऐसे समय में आयोजित की जा रही है जब भू-राजनीतिक विखंडन बढ़ रहा है और बहुपक्षवाद में विश्वास कम हो रहा है। 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में संयुक्त राष्ट्र कैसे प्रासंगिक बना रह सकता है, इसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता।
  • संयुक्त राष्ट्र के लिए प्रासंगिक बने रहने की चुनौतियाँ।
  • आगे की राह।

उत्तर

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) अपनी 80वीं वर्षगाँठ मना रहा है, उसे बदलती वैश्विक परिस्थितियों में अपनी भूमिका का पुनर्परिभाषण करना आवश्यक हो गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व शांति बनाए रखने के उद्देश्य से गठित यह संगठन आज विखंडित भू-राजनीति, कमजोर बहुपक्षवाद, और जलवायु परिवर्तन तथा साइबर युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसकी प्रासंगिकता अब इस बात पर निर्भर करती है कि क्या यह सुधारों और नए वैश्विक संकल्प के साथ आगे बढ़ पाता है या नहीं।

21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता

  • शांति स्थापना और संघर्ष समाधान: संयुक्त राष्ट्र अब भी संवेदनशील एवं अस्थिर राज्यों में स्थिरता बनाए रखने के लिए एक स्थायी शक्ति के रूप में कार्य कर रहा है। यह राजनयिक संवाद और शांति मिशनों के माध्यम से संघर्षों को नियंत्रित करता है।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र ने पूर्वी तिमोर और नामीबिया में स्थायी राजनीतिक संक्रमण सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • मानवीय सहायता और राहत अभियान: संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियाँ युद्ध, अकाल और विस्थापन से प्रभावित जनसमुदायों को राहत देने में निरंतर कार्यरत हैं।
    • उदाहरण: UNHCR, WFP और यूनिसेफ (UNICEF) ने विश्वभर में संघर्ष और आपदा-ग्रस्त क्षेत्रों में आवश्यक सहायता प्रदान की है।
  • मानक निर्धारण और वैश्विक शासन: संयुक्त राष्ट्र का योगदान मानवाधिकार, सतत् विकास, और वैश्विक मानदंडों के निर्माण में अद्वितीय रहा है।
    • उदाहरण: वर्ष 2015 के सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) इसकी समावेशी वैश्विक विकास में नेतृत्व भूमिका को दर्शाते हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य और संकट समन्वय: संयुक्त राष्ट्र और इसकी विशेषीकृत एजेंसियाँ सदस्य देशों के बीच वैश्विक संकटों के दौरान समन्वय स्थापित करती हैं।
    • उदाहरण: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र ने महामारी नियंत्रण और टीका सहयोग को प्रोत्साहित किया।
  • वैश्विक संवाद का मंच: संयुक्त राष्ट्र अब भी असमान शक्तियों के बीच कूटनीतिक वार्ता और संवाद का सार्वभौमिक मंच बना हुआ है।
    • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय तनावों के बावजूद यह छोटे देशों को भी बड़े देशों के साथ समान भागीदारी का अवसर प्रदान करता है।

संयुक्त राष्ट्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • सुरक्षा परिषद की पुरानी संरचना:  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अब भी वर्ष 1945 की शक्ति संरचना को दर्शाती है, जिसमें भारत, जर्मनी, जापान, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते देशों को स्थायी सदस्यता से वंचित रखा गया है।
  • बहुपक्षवाद का क्षरण: राष्ट्रवाद और अविश्वास की बढ़ती प्रवृत्ति ने सामूहिक समाधान और सहयोग की भावना को कमजोर किया है।
  • वीटो शक्ति की निष्क्रियता:  वीटो प्रणाली मानवीय और सुरक्षा संकटों में निर्णायक कार्रवाई को बाधित करती है।
    • उदाहरण: शक्तिशाली देश अपने सहयोगियों की रक्षा के लिए वीटो का प्रयोग करते हैं, जिससे सुरक्षा परिषद में गतिरोध उत्पन्न होता है।
  • वित्तीय सीमाएँ और राजनीतीकरण: राजनीतिक कारणों या विलंबित निधियों के चलते संयुक्त राष्ट्र के संचालन और कर्मचारी क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • उदाहरण: अमेरिका जैसे प्रमुख योगदानकर्ता देशों द्वारा भुगतान में देरी के कारण सचिवालय को कर्मचारी कटौती और कार्यक्रम स्थगन करना पड़ा।
  • नौकरशाही अक्षमता: धीमी निर्णय प्रक्रिया और संस्थागत लचीलेपन की कमी के कारण संयुक्त राष्ट्र नई चुनौतियों का तेजी से सामना करने में असमर्थ रहता है।

आगे की राह 

  • सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार:  स्थायी एवं अस्थायी सदस्यता का विस्तार और वीटो शक्ति के दुरुपयोग पर नियंत्रण संयुक्त राष्ट्र को अधिक विश्वसनीय बना सकता है।
    • उदाहरण: भारत की UNSC सुधार की माँग वर्ष 2025 की वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप प्रतिनिधित्व की आवश्यकता को दर्शाती है।
  • त्वरितता और प्रतिक्रियात्मकता में वृद्धि: निर्णय लेने की प्रक्रिया को सरल बनाकर और डिजिटल उपकरणों का उपयोग बढ़ाकर संकट प्रतिक्रिया को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
  • वित्तीय स्वतंत्रता और जवाबदेही: एक पूर्वानुमेय वित्तीय मॉडल संयुक्त राष्ट्र को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त और संचालन स्थिरता प्रदान करेगा।
    • उदाहरण: सतत् वित्तपोषण तंत्र सदस्य देशों की देरी से होने वाली वित्तीय रुकावटों को रोकने में सहायक होगा।
  • समावेशी और बहुध्रुवीय बहुपक्षवाद को प्रोत्साहन: वैश्विक दक्षिण और उभरती शक्तियों की बढ़ी हुई भागीदारी से संयुक्त राष्ट्र की वैधता और प्रतिनिधित्व दोनों में सुधार होगा।
    • उदाहरण: भारत की गरिमा और संप्रभुता पर आधारित सहयोग की दृष्टि एक अधिक समावेशी संयुक्त राष्ट्र ढाँचे के अनुरूप है।
  • नैतिक एवं वैचारिक नेतृत्व की पुनर्स्थापना: संयुक्त राष्ट्र को सत्य, न्याय और सार्वभौमिक मूल्यों के प्रति अपने समर्पण को पुनर्स्थापित कर जन-विश्वास को पुनः अर्जित करना चाहिए।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र अब भी मानवता के लिए वैश्विक सहयोग का सबसे स्थायी मंच है, किंतु यह विश्वसनीयता में गिरावट और संस्थागत जड़ता से जूझ रहा है। 21वीं सदी की जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए उसे सुधार, नैतिक नेतृत्व का पुनर्निर्माण, और समावेशिता को अपनाना आवश्यक है। तभी संयुक्त राष्ट्र अपनी मौलिक भूमिका — विश्व शांति और वैश्विक न्याय के संरक्षण — को प्रभावी ढंग से निभा सकेगा।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.