प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में श्रम अधिकारों एवं रोजगार सुरक्षा पर गिग इकोनॉमी वृद्धि के निहितार्थ।
- आगे की राह लिखिए।
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उत्तर
भारत की गिग इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है, वर्ष 2020-21 में 7.7 मिलियन श्रमिकों से, वर्ष 2030 तक यह संख्या बढ़कर 23 मिलियन हो जाने का अनुमान है, जो गैर-कृषि कार्यबल का 7% है। फिर भी, श्रम के प्लेटफाॅर्मीकरण ने श्रमिकों का एक नया वर्ग बनाया है, जो लचीलेपन एवं कार्य तक पहुँच के बावजूद, आय की असुरक्षा, कानूनी सुरक्षा की कमी तथा सामाजिक लाभों की अनुपस्थिति जैसी पुरानी कमजोरियों का सामना करना जारी रखते हैं।
भारत में गिग इकोनॉमी ग्रोथ का श्रम अधिकारों एवं रोजगार सुरक्षा पर प्रभाव
श्रम अधिकारों पर प्रभाव
- कोई न्यूनतम वेतन सुरक्षा नहीं: गिग कर्मचारी न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के अंतर्गत नहीं आते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आय में अस्थिरता एवं वेतन संबंधी चुनैतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण: फेयर वर्क इंडिया 2023 के एक अध्ययन में पाया गया कि गिग कर्मचारी प्रति माह ₹15,000 से ₹20,000 के बीच कमाते हैं, जो वैधानिक न्यूनतम वेतन से कम है।
- कोई सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार नहीं: गिग कर्मचारी यूनियन नहीं बना सकते या वेतन पर बातचीत नहीं कर सकते हैं, जिससे वे मनमाने वेतन संशोधन के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2020 में गठित अखिल भारतीय गिग कर्मचारी संघ (AIGWU) को प्लेटफाॅर्म कंपनियों से काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
- विस्तारित कार्य घंटे: कार्य-घंटे विनियमन की कमी कई लोगों को लंबे, कार्य के थकाऊ घंटे के लिए मजबूर करती है।
- उदाहरण: ‘प्रिजनर्स ऑन व्हील्स’ अध्ययन से पता चला है कि 83% गिग कर्मचारी प्रतिदिन 10 घंटे से ज्यादा कार्य करते हैं।
- उच्च व्यावसायिक जोखिम: कर्मचारियों को सड़क दुर्घटनाओं, खराब मौसम एवं स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें प्लेटफाॅर्म द्वारा कोई सुरक्षा ढाँचा नहीं दिया जाता है।
- उदाहरण: जोमैटो एवं स्विगी के डिलीवरी कर्मचारी अक्सर दुर्घटना बीमा या स्वास्थ्य लाभ के बिना अत्यधिक गर्मी में डिलीवरी करते हैं।
रोजगार सुरक्षा पर प्रभाव
- कर्मचारियों के रूप में कोई कानूनी मान्यता नहीं: गिग श्रमिकों को स्व-नियोजित के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिससे उन्हें फैक्टरी अधिनियम एवं औद्योगिक विवाद अधिनियम जैसे प्रमुख श्रम कानूनों से बाहर रखा जाता है।
- उदाहरण: उबर एवं ओला जैसे प्लेटफाॅर्म ड्राइवरों को ‘भागीदार’ कहकर नियोक्ता की जिम्मेदारियों से बचते हैं।
- सामाजिक सुरक्षा तक कोई पहुँच नहीं: गिग श्रमिकों को EPF, ESI या पेंशन योजनाओं के तहत कवर नहीं किया जाता है, जिससे संकट के दौरान उनकी कमजोरी बढ़ जाती है।
- उदाहरण: वर्ष 2024 की वी. वी. गिरी नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट (VVGNLI) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 90% गिग श्रमिकों के पास कोई बचत या सेवानिवृत्ति के लिए कोई विकल्प नहीं है।
- निगरानी के बिना एल्गोरिदम प्रबंधन: श्रमिकों को शिकायत निवारण के बिना AI-आधारित प्रणालियों द्वारा अस्पष्ट कार्य आवंटन एवं निष्क्रियता का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में, अर्बन कंपनी के श्रमिकों ने मानवीय समीक्षा या अपील तंत्र की कमी का हवाला देते हुए 4.7/5 से कम रेटिंग के लिए ID ब्लॉकिंग का विरोध किया।
भारत की बढ़ती गिग अर्थव्यवस्था में बढ़ती अनिश्चितता एवं बहिष्कार को दूर करने के लिए, श्रमिकों के कल्याण, सम्मान तथा दीर्घकालिक सुरक्षा की रक्षा के लिए अधिकार आधारित, समावेशी एवं लागू करने योग्य ढाँचा आवश्यक है।
आगे की राह
- केंद्रीय कानून लागू करना: गिग वर्क को परिभाषित करने एवं उचित वेतन, कार्य के घंटे एवं बर्खास्तगी से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित कानून का निर्माण आवश्यक है।
- उदाहरण: स्पेन के वर्ष 2021 राइडर कानून ने डिलीवरी कर्मचारियों को पूर्ण अधिकारों वाले कर्मचारियों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 को पूरी तरह से लागू करना, दुर्घटना बीमा एवं पेंशन जैसे लाभ सुनिश्चित करना।
- उदाहरण: राजस्थान प्लेटफाॅर्म आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण एवं कल्याण) अधिनियम, 2023 के तहत नियोक्ताओं तथा एग्रीगेटर्स को गिग वर्कर्स के लिए मासिक कल्याण उपकर जमा करने की आवश्यकता होती है।
- एल्गोरिथमिक जवाबदेही लागू करना: प्लेटफाॅर्म को निष्क्रियता के लिए अपील के साथ यह बताना अनिवार्य करना कि कार्य एवं वेतन कैसे निर्धारित किए जाते हैं।
- उदाहरण: यूरोपीय संघ का वर्ष 2023 प्लेटफाॅर्म निर्देश प्लेटफाॅर्म को यह सिद्ध करने के लिए बाध्य करता है कि कोई कर्मचारी स्व-नियोजित है एवं AI पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
- सामूहिक सौदेबाजी की सुविधा प्रदान करना: कर्मचारियों को बेहतर शर्तों पर बातचीत करने के लिए कानूनी रूप से यूनियन गठन एवं संवाद मंचों को सक्षम करना।
- उदाहरण: डेनमार्क के त्रिपक्षीय बोर्ड प्लेटफाॅर्म, श्रमिकों एवं राज्य के बीच संतुलित बातचीत सुनिश्चित करते हैं।
- कौशल एवं गतिशीलता को बढ़ावा देना: कॅरियर में उन्नति एवं उच्च-कुशल भूमिकाओं के लिए प्लेटफाॅर्म के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करना।
- उदाहरण: अर्बन कंपनी ने डिजिटल एवं सुरक्षा प्रशिक्षण के लिए दिल्ली NCR (2023) में कौशल केंद्र खोले है।
- सहकारिता को बढ़ावा देना: कार्यकर्ता स्वायत्तता एवं आय बढ़ाने के लिए मंच सहकारी समितियों के गठन का समर्थन करना।
- उदाहरण: गुजरात की सहकार टैक्सी सहकारी संस्था गिग श्रमिकों को लाभ-साझाकरण एवं सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करती है।
- एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करना: गिग श्रमिकों को नीति नियोजन एवं कल्याण पहुँच में एकीकृत करने के लिए ई-श्रम जैसे प्लेटफाॅर्म का उपयोग करना।
- उदाहरण: वर्ष 2025 तक, गिग श्रमिकों सहित 30.58 करोड़ से अधिक श्रमिक ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हैं।
गिग अर्थव्यवस्था ने भारत के कार्यबल को नया रूप दिया है, लेकिन सुरक्षा उपायों के बिना, यह अनौपचारिकता एवं असमानता को गहरा करने का जोखिम उठाता है। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास कार्यकर्ता अधिकारों की कीमत पर न हो। डिजिटल युग में समावेशी, लचीला एवं सतत् विकास के निर्माण के लिए एक निष्पक्ष, सुरक्षित तथा अधिकार आधारित गिग अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण होगी।
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