प्रश्न की मुख्य माँग
- जाँच कीजिए कि न्यायिक व्याख्याओं एवं नौकरशाही कार्यान्वयन ने सूचना के अधिकार अधिनियम के मूल उद्देश्य को कैसे प्रभावित किया है।
- सूचना पारदर्शिता को गोपनीयता संबंधी चिंताओं के साथ संतुलित करने में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- वैध छूटों को संबोधित करते हुए लोकतांत्रिक जवाबदेही को मजबूत करने के लिए सुधार सुझाएँ।
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उत्तर
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005, जिसे सबसे मजबूत पारदर्शिता कानूनों में से एक माना जाता है, नागरिकों को सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार देता है। हालाँकि, न्यायिक फैसलों एवं नौकरशाही प्रतिरोध ने इसकी प्रभावशीलता को कम कर दिया है। वर्ष 2023 तक, सूचना आयोगों के समक्ष 3.2 लाख से अधिक मामले लंबित थे, जो सूचना तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करने के अधिनियम के मूल उद्देश्य को कमजोर करने वाली देरी को उजागर करते हैं।
RTI अधिनियम पर न्यायिक व्याख्याओं एवं नौकरशाही कार्यान्वयन का प्रभाव
- धारा 8 का न्यायिक कमजोरीकरण: CBSE एवं अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय (2011) मामले ने छूट के व्यापक दायरे की वकालत करके धारा 8 की पुनर्व्याख्या की, जिससे पारदर्शिता प्रावधान कमजोर हो गए।
- उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायालय ने “अंधाधुंध” RTI उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी, जिससे अधिकारियों को वैधानिक छूट के बजाय प्रशासनिक बोझ का हवाला देकर खुलासे से इनकार करने की अनुमति मिल गई।
- व्यक्तिगत जानकारी छूट का दुरुपयोग: गिरीश रामचंद्र देशपांडे (2012) के फैसले ने व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा का विस्तार किया, लोक सेवकों के रिकॉर्ड तक पहुँच को प्रतिबंधित किया, जवाबदेही को सीमित किया।
- उदाहरण के लिए: भ्रष्टाचार को उजागर करने में जनहित की चिंताओं के बावजूद, सार्वजनिक अधिकारियों के कदाचार एवं वित्तीय लेन-देन की जानकारी गोपनीयता के आधार पर अस्वीकार कर दी गई।
- अकुशल सूचना आयोग: सेवानिवृत्त नौकरशाह सूचना आयोगों पर हावी हैं, अक्सर पदों को सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरी के रूप में देखते हैं, जिससे देरी होती है एवं प्रवर्तन कमजोर होता है।
- उदाहरण के लिए: जबकि RTI अधिनियम 30 दिनों के भीतर जवाब देने को अनिवार्य बनाता है, कई आयोगों के पास एक वर्ष से अधिक समय से लंबित मामले हैं, जो RTI को इतिहास के अधिकार में बदल देता है।
- दंड लगाने में विफलता: अनुपालन को लागू करने के लिए दंडात्मक प्रावधानों को शायद ही कभी लागू किया जाता है, जिससे गलत इनकार एवं सूचना प्रदान करने में देरी के लिए जवाबदेही कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: लगातार RTI उल्लंघन के बावजूद, धारा 20 के तहत दंड 5% से भी कम मामलों में लगाया जाता है, जिससे नौकरशाही जड़ता को बढ़ावा मिलता है।
- राजनीतिक एवं प्रशासनिक हस्तक्षेप: सरकारों ने सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में देरी की है, जिससे मामले लंबित हो रहे हैं एवं अपीलीय तंत्र की प्रभावशीलता कम हो रही है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, कई राज्य सूचना आयोगों में पद रिक्त थे, जिसके कारण 3 लाख से अधिक मामले लंबित हो गए, जिससे अधिनियम का कार्यान्वयन कमजोर हो गया।
सूचना पारदर्शिता एवं गोपनीयता संबंधी चिंताओं के बीच संतुलन बनाने में चुनौतियाँ
- ‘व्यक्तिगत जानकारी’ को परिभाषित करने में अस्पष्टता: RTI अधिनियम के प्रावधानों में कहा गया है कि संसद को उपलब्ध सूचना नागरिकों को देने से इनकार नहीं की जा सकती, फिर भी अधिकारी अक्सर वैध अनुरोधों को अस्वीकार कर देते हैं।
- उदाहरण के लिए: लोक सेवकों की संपत्ति की घोषणा अक्सर रोक दी जाती है, भले ही वे सेवा नियमों के तहत अनिवार्य प्रकटीकरण हों, जिससे शासन में गैर-पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है।
- गोपनीयता तर्कों का दुरुपयोग: अधिकारी धारा 8(1)(j) का दुरुपयोग अधिकारियों को जांच से बचाने के लिए करते हैं, भले ही सार्वजनिक हित शामिल हो, जिससे भ्रष्टाचार विरोधी प्रयास कमजोर होते हैं।
- उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक पारदर्शिता पर संभावित प्रभाव के बावजूद, गोपनीयता का हवाला देते हुए चुनावी बांड दाताओं की पहचान का खुलासा करने से इनकार कर दिया।
- असंगत न्यायिक व्याख्याएँ: न्यायालयों ने गोपनीयता बनाम सार्वजनिक हित पर अपने फैसलों में भिन्नता दिखाई है, जिससे RTI कार्यान्वयन में अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
- उदाहरण के लिए: RBI बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री (2015) ने फैसला सुनाया कि बैंक डिफॉल्टरों की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए, लेकिन वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के खुलासे पर रोक लगा दी।
- गोपनीयता कानून ढाँचे का अभाव: भारत में एक व्यापक डेटा सुरक्षा कानून का अभाव है, जो यह परिभाषित कर सके कि कब गोपनीयता को पारदर्शिता पर हावी होना चाहिए, जिससे मनमाने ढंग से इनकार किया जाता है।
- उदाहरण के लिए: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 ने RTI अधिनियम में संशोधन किया, जिससे स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बिना सार्वजनिक अधिकारियों के व्यक्तिगत डेटा तक पहुँच प्रतिबंधित हो गई।
- खुलासा करने में नौकरशाही की अनिच्छा: अधिकारियों को जानकारी जारी करने के लिए प्रतिक्रिया का डर है, जिससे आत्म-सेंसरशिप एवं छूट का अधिक उपयोग होता है, जिससे सार्वजनिक हित के खुलासे प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण के लिए: भ्रष्टाचार से संबंधित कई RTI मामलों में, नौकरशाहों ने सार्वजनिक परियोजना अनियमितताओं पर जानकारी रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्तिगत गोपनीयता का हवाला दिया।
वैध छूटों को संबोधित करते हुए लोकतांत्रिक जवाबदेही को मजबूत करने के लिए सुधार
- सख्त समयसीमा लागू करना: सूचना आयोगों के लिए अधिकतम निपटान समयसीमा लागू करना, यह सुनिश्चित करना कि अपील 90 दिनों से आगे न बढ़े।
- उदाहरण के लिए: उत्तराखंड उच्च न्यायालय (2022) ने राज्य आयोग को छह महीने के भीतर RTI अपीलों को निपटाने का निर्देश दिया, जो समयबद्ध पारदर्शिता के लिए एक मिसाल कायम करता है।
- आयुक्तों की पारदर्शी नियुक्ति: पारदर्शिता अधिवक्ताओं, पत्रकारों एवं कानूनी विशेषज्ञों के चयन को अनिवार्य बनाना, सेवानिवृत्त नौकरशाहों के प्रभुत्व को कम करना।
- ‘व्यक्तिगत जानकारी’ छूट को संशोधित करना: व्यक्तिगत डेटा छूट को संकीर्ण रूप से परिभाषित करना, यह सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक अधिकारियों के वित्तीय एवं अनुशासनात्मक रिकॉर्ड सुलभ रहें।
- उदाहरण के लिए: UK एवं USA की अदालतें सार्वजनिक अधिकारियों की संपत्ति तथा कदाचार रिकॉर्ड के प्रकटीकरण की अनुमति देती हैं, जिससे अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- गलत तरीके से इनकार करने पर दंड बढ़ाना: छूट का बार-बार दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों को दंडित करने के लिए धारा 20 के प्रावधानों को मजबूत करें, तुच्छ इनकार को हतोत्साहित करें।
- उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के सूचना आयोग (2021) ने जानबूझकर सूचना छिपाने वाले अधिकारियों पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया, ताकि भविष्य में उल्लंघनों को रोका जा सके।
- जन जागरूकता अभियान: जन जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से नागरिकों एवं पत्रकारों को सशक्त बनाना, पारदर्शिता की अधिक मांग तथा RTI के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करना।
- उदाहरण के लिए: सतर्क नागरिक संगठन जैसे संगठन नागरिकों को RTI अनुरोधों को प्रभावी ढंग से दर्ज करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं, जिससे सहभागी लोकतंत्र में सुधार होता है।
प्रगतिशील न्यायिक व्याख्याओं ने RTI के दायरे का विस्तार किया है, पारदर्शिता एवं जवाबदेही को मजबूत किया है, जबकि नौकरशाही बाधाओं ने अक्सर इसके प्रभाव को कम कर दिया है। प्रकटीकरण तथा गोपनीयता के बीच संतुलन बनाने के लिए स्पष्ट छूट, डिजिटल सुधार एवं सक्रिय प्रकटीकरण की आवश्यकता है। व्हिसलब्लोअर सुरक्षा, शिकायत निवारण तथा संस्थागत स्वायत्तता को मजबूत करने से नागरिक सशक्तीकरण को मजबूती मिलेगी एवं लोकतांत्रिक जवाबदेही कायम रहेगी।
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