Q. भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को बढ़ते ई-अपशिष्ट, विशेष रूप से लिथियम-आयन बैटरी कचरे से बढ़ते जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में बढ़ते ई-अपशिष्ट की प्रमुख चुनौतियों और मूल कारणों का परीक्षण कीजिए। ब्लैक मास (ई-अपशिष्ट) को चक्रीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने वाली रणनीतिक हरित परिसंपत्ति में परिवर्तित करने के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में बढ़ते ई-अपशिष्ट के मूल कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • भारत में बढ़ते ई-अपशिष्ट की प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • “ब्लैक मास” को एक रणनीतिक हरित परिसंपत्ति में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक उपाय सुझाइए, जो चक्रीय अर्थव्यवस्था में सहायता करते हों।

उत्तर

भारत का लीथियम-आयन बैटरी बाजार वर्ष 2030 तक 132 GEh तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय भंडारण की माँग बढ़ेगी, लेकिन इसके साथ ई-अपशिष्ट, विशेषकर ब्लैक मास, जो बैटरी रीसाइक्लिंग का एक खतरनाक उपोत्पाद है, में भी तीव्र वृद्धि होगी। हालाँकि भारत ने हाल ही में महत्त्वपूर्ण खनिज आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए ब्लैक मास के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी घरेलू रीसाइक्लिंग परिवेश अविकसित और विखंडित बना हुआ है।

भारत में बढ़ते ई-अपशिष्ट के मूल कारण

  • तकनीकी का तीव्र गति से अप्रचलन: उत्पाद का लघु जीवनकाल और तीव्र गति से तकनीक उन्नयन, निपटान दरों को बढ़ा देता है।
  • उपभोक्ता जागरूकता में कमी: उचित निपटान और “टेक बैक” कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण अनौपचारिक रूप से इलेक्ट्रॉनिक सामान को फेंक दिया जाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का प्रसार: डिजिटल अर्थव्यवस्था में वृद्धि और जीवनशैली में परिवर्तन के कारण प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण: भारत में वर्तमान में 1.2 बिलियन से अधिक मोबाइल कनेक्शन हैं, जिनमें कुछ ही समय में कई अपशिष्ट बन जाएँगे।
  • अप्रभावी उत्पादक उत्तरदायित्व अनुपालन: ई-अपशिष्ट नियम (2022) के तहत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility) का कार्यान्वयन निर्माताओं और आयातकों के बीच कमजोर बना हुआ है।
  • बैटरी घटकों के आयात पर निर्भरता: स्थानीय स्तर पर कच्चे माल का  निष्कर्षण न हो पाने से दोषपूर्ण भंडारण में वृद्धि होती है।

लीथियम-आयन बैटरी अपशिष्ट से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • विषाक्तता और पर्यावरणीय संकट: कोबाल्ट, निकल और लीथियम के अनुचित प्रबंधन से वायु, मृदा और भूजल प्रदूषण होता है।
    • उदाहरण: अध्ययनों से पता चलता है कि लीथियम का रिसाव पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान और भूजल प्रदूषण का कारण बनता है।
  • पुनर्चक्रण अवसंरचना का अभाव: भारत में जटिल बैटरी रसायन को प्रबंधित करने के लिए पर्याप्त लाइसेंस प्राप्त सुविधाओं का अभाव है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: लगभग 90% कार्य अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है, जो लागत दक्षता तो प्रदान करता है, लेकिन एसिड लीचिंग जैसी असुरक्षित, अवैज्ञानिक प्रथाओं से ग्रस्त है।
    • उदाहरण: अनुमानतः दस लाख अपशिष्ट कर्मचारी विनियामक ढाँचे के बाहर कार्य करते हैं, लेकिन वे संग्रहण प्रणालियों का महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
  • ब्लैक मास रिकवरी इकोसिस्टम का अभाव: ब्लैक मास- बैटरियों को प्रबंधित करने के बाद बचा हुआ उच्च मूल्य का पाउडर – औपचारिक संग्रहण और प्रसंस्करण तंत्र की कमी के कारण कम उपयोग में आता है।

“ब्लैक मास” को रणनीतिक हरित परिसंपत्ति में बदलने के उपाय

  • उन्नत पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना: दक्षता और सुरक्षा में सुधार के लिए हाइड्रोमेटलर्जी और AI-आधारित छंटाई के लिए सहायता महत्त्वपूर्ण है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिकीकरण और एकीकरण: अपशिष्ट श्रमिकों को कौशल प्रदान करने और प्रमाणित करने से सुरक्षित संग्रहण तथा औपचारिक आपूर्ति शृंखला संपर्क में सुधार हो सकता है।
    •  उदाहरण: 1 मिलियन अनौपचारिक श्रमिकों को एकीकृत करने से दक्षता में वृद्धि हो सकती है और प्रदूषण बढ़ाने वाली प्रथाओं में कमी आ सकती है।
  • बैटरी अपशिष्ट नियमों के प्रवर्तन को मजबूत करना: पुनर्चक्रणकर्ताओं, ब्लैक मास उत्पादकों और निर्यातकों की कड़ी निगरानी आवश्यक है।
    • उदाहरण के लिए: ब्लैक मास निर्यात प्रतिबंध को लागू करना और गलत वर्गीकरण पर दंड लगाना घरेलू स्तर पर रणनीतिक महत्त्व बनाए रखेगा।
  • नीतिगत समर्थन के माध्यम से घरेलू पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करना: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) और PLI ढाँचे के तहत लक्षित योजनाएँ शुरू करनी चाहिए।
  • रणनीतिक अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना: महत्त्वपूर्ण खनिज पुनर्प्राप्ति के लिए स्वदेशी क्षमता निर्माण हेतु घरेलू अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित होना: कच्चे माल के निर्यात और सर्कुलर अर्थव्यवस्था ढाँचे पर यूरोपीय संघ-शैली के प्रतिबंधों को अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत द्वारा “ब्लैक मास” के निर्यात पर प्रतिबंध, खनिज स्वतंत्रता और चक्रीय अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों की ओर एक बदलाव का संकेत देता है, लेकिन तकनीक, विनियमन और कार्यबल के औपचारिकीकरण में निवेश के बिना, यह एक खोखला कदम सिद्ध हो सकता है। प्रभावी प्रवर्तन, रणनीतिक प्रोत्साहन और नवाचार के साथ भारत अपनी बैटरी अपशिष्ट चुनौती को एक हरित अवसर में बदल सकता है जो स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य को सशक्त बना सकता है ।

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