प्रश्न की मुख्य माँग
- समकालीन भारत में नागरिक उत्तरदायित्व को विकसित करने में प्रमुख सामाजिक और संस्थागत चुनौतियाँ।
- एक श्रेष्ठ सभ्यता के आदर्शों के अनुरूप इन अंतरालों को कम करने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
नागरिक बोध मूलतः सार्वजनिक स्थलों पर उत्तरदायी आचरण को सुनिश्चित करता है। यह आत्म-अनुशासन और दूसरों के प्रति संवेदनशीलता पर आधारित होता है, जो कानूनी कार्रवाई के डर से नहीं, बल्कि साझा सार्वजनिक स्थानों और सामुदायिक कल्याण की सहज समझ से प्रेरित है। भारत में, इसका ह्वास बढ़ती सार्वजनिक अव्यवस्था और असहिष्णुता में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो सामाजिक सामंजस्य और सामूहिक उत्तरदायित्व में गहरे विभाजन को दर्शाता है।
भारत में नागरिक उत्तरदायित्व को विकसित करने में प्रमुख सामाजिक और संस्थागत चुनौतियाँ
सामाजिक चुनौतियाँ
- अनुष्ठानों और व्यवस्था का अनादर: नागरिक बोध का ह्वास सामाजिक समरसता और पवित्र सार्वजनिक आचरण को कमजोर करता है।
- उदाहरण: वर्ष 2025 के महाकुंभ में, अनुष्ठान समाप्ति से पहले ही लोगों ने पूजा सामग्री छीन ली, जिससे साझा धार्मिक स्थलों के प्रति अनादर का प्रदर्शन हुआ।
- अधीरता और आक्रोश: बढ़ती असहिष्णुता छोटी-छोटी असुविधाओं पर सार्वजनिक आक्रोश के रूप में प्रकट होती है।
- सार्वजनिक संपत्ति का अनादर: विनाशक प्रवृत्तियां, सामूहिक स्वामित्व और नागरिक जिम्मेदारी से विमुखता को दर्शाती है।
- उदाहरण: विशाखापत्तनम में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 पर लोगों ने योग मैट के लिए छीना-झपटी की जिसके कारण भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
- नागरिक कर्तव्यों के प्रति प्रतिदिन उदासीनता: सार्वजनिक स्वच्छता और व्यवस्था के प्रति उदासीनता से प्रणालीगत पतन होता है।
संस्थागत चुनौतियाँ
- ऐतिहासिक गौरव को ढाल बनाना: अतीत का अत्यधिक महिमामंडन, वर्तमान नागरिक कमियों पर चिंतन करने से रोकता है।
- उदाहरण: कई लोग वर्तमान कमियों पर ध्यान दिए बिना भारत की “महान सभ्यता” का हवाला देकर नागरिक विफलताओं को नजरअंदाज़ कर देते हैं।
- पराजयवादी दृष्टिकोण: “हम तो ऐसे ही हैं” वाली मानसिकता सुधार को हतोत्साहित करती है, अव्यवस्था को सामान्य बनाती है, तथा सार्वजनिक व्यवहार में सुधार के सामूहिक प्रयासों को रोकती है।
- अधिकार की भावना: क्षेत्रीय और धार्मिक गौरव सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को बढ़ावा देते हैं, जो सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाता है, जिसमें अपराधियों को अक्सर सामूहिक समर्थन प्राप्त होता है।
- सोशल मीडिया का प्रभाव: गुमनामी, दुर्व्यवहार और भ्रामक सूचना को बढ़ावा देती है, जिससे सामाजिक विभाजन बढ़ता है।
- उदाहरण: डीपफेक और ऑनलाइन अभद्र भाषा का बढ़ता चलन देश भर में सामुदायिक तनाव को बढ़ा रहा है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के सभ्यतागत लोकाचार में निहित लक्षित, मूल्य-आधारित सुधारों की आवश्यकता है।
एक अच्छी सभ्यता के अनुरूप नागरिक उत्तरदायित्व में अन्तरालों को कम करने के लिए कदम
- प्रारंभिक आयु से ही नागरिक शिक्षा: स्कूली पाठ्यक्रम और अभियानों के माध्यम से नागरिक मूल्यों का संचार करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए, भारत स्काउट्स और गाइड्स युवाओं में अनुशासन और सामुदायिक सेवा की भावना को बढ़ावा देते हैं।
- समुदाय-आधारित सार्वजनिक आचरण पहल: स्थानीय शासन और स्वच्छता अभियानों में नागरिकों को शामिल करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: स्वच्छ भारत मिशन ने नागरिकों को स्वच्छता और नागरिक गौरव में सुधार के लिए प्रेरित किया।
- जन जागरूकता के साथ कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करना: दंडात्मक उपायों के साथ व्यवहार परिवर्तन हेतु शिक्षा का समन्वय आवश्यक है।
- नैतिक नेतृत्व और आदर्शों को प्रोत्साहित करना: नागरिक सत्यनिष्ठा से युक्त नेता सामाजिक अनुशासन और साझा जिम्मेदारी को प्रेरित करते हैं।
- उदाहरण: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की विरासत युवाओं को अनुशासन और राष्ट्रीय गौरव बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।
- नागरिक सहभागिता के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: नागरिक मुद्दों की रिपोर्ट करने और जागरूकता फैलाने के लिए ऐप्स और सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए।
- उदाहरण: MyGov प्लेटफॉर्म नीति निर्माण और सार्वजनिक सेवा निगरानी में नागरिक भागीदारी को सक्षम बनाता है।
- सांस्कृतिक और नैतिक नींव का पुनरूद्धार करना: साझा जिम्मेदारी और सहानुभूति पर बल देते हुए टैगोर के धर्म-आधारित सभ्यता के आदर्शों को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: मिशन LiFE जैसी पहल पारंपरिक मूल्यों से जुड़े सतत जीवन को प्रोत्साहित करती है।
भारत के सभ्यतागत गौरव और उसके घटते नागरिक अनुशासन के बीच बढ़ता अंतर इसकी सामाजिक एकता के लिए खतरा है। एक राष्ट्र अपने लोगों का प्रतिबिम्ब होता है। भारत के फलने-फूलने और अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए, नागरिकों को साझा जिम्मेदारी और सार्वजनिक स्थलों के प्रति सम्मान के माध्यम से नागरिक भावना को आत्मसात करना होगा, जिससे एक सच्ची सतत सभ्यता सुनिश्चित हो और सभा व सभ्यता के बीच का अंतर कम किया जा सकेगा।
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