Q. प्लास्टिक प्रदूषण पर एक संधि बनाने के वैश्विक प्रयासों को, विशेष रूप से स्रोत पर उत्पादन कम करने को लेकर, प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर और भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाने की रणनीतियाँ सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वैश्विक स्तर पर और भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से संबंधित समस्याओं का समाधान करने में आने वाली  प्रमुख चुनौतियाँ।
  • पर्यावरणीय संधारणीयता के साथ विकास को संतुलित करने की रणनीतियाँ।

उत्तर

प्लास्टिक प्रदूषण पर संधि बनाने के वैश्विक प्रयासों को कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, विशेषकर स्रोत स्तर पर उत्पादन को कम करने के मुद्दे पर। वर्ष 2022 से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के लगातार प्रयास यह दर्शाते हैं कि पर्यावरणीय लक्ष्यों और आर्थिक हितों, औद्योगिक वृद्धि तथा व्यापारिक चिंताओं के बीच संतुलन बनाने को लेकर राष्ट्रों में असहमति है।

प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान करने में प्रमुख चुनौतियाँ

वैश्विक चुनौतियाँ

  • बड़े पैमाने पर प्लास्टिक उत्पादन: UNEP के अनुसार, विश्व में प्रतिवर्ष 430 मिलियन टन (MT) से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से दो-तिहाई अल्पकालिक उत्पाद होते हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में कमी: चिंताजनक बात यह है कि 46% प्लास्टिक अपशिष्ट लैंडफिल में चला जाता है, और 22% का उचित प्रबंधन नहीं हो पाता है, जो कचरा (Litter) बन जाता है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: जीवाश्म कच्चे तेल से प्राप्त प्लास्टिक ने 2019 में 1.8 बिलियन मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न किया जो वैश्विक कुल का लगभग 3.4% है
  • द्वीपीय राष्ट्रों पर प्रभाव: द्वीपीय राष्ट्र और क्षेत्र अपने तटों पर प्लास्टिक अपशिष्ट के ढेर से घिरे हुए हैं।
  • माइक्रोप्लास्टिक संदूषण: प्लास्टिक के कण समुद्री और खाद्य श्रृंखलाओं में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मानव और वन्य जीवन प्रभावित होते हैं।
  • उत्पादन में कटौती का विरोध: राष्ट्रों को प्लास्टिक उत्पादन में कटौती से आर्थिक और व्यापारिक नुकसान का डर है।

भारत की चुनौतियाँ

  • उच्च प्लास्टिक उत्पादन: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3.4 मिलियन टन (MT) प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • कम पुनर्चक्रण दर: इस प्लास्टिक अपशिष्ट का केवल लगभग 30% ही पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि शेष अपशिष्ट लैंडफिल और जलाशयों में जमा हो जाता है।
  • बढ़ती खपत: प्लास्टिक उपयोग 9.7% की CAGR से तेजी से बढ़ रहा है, जो 2016–17 में 14 MT से बढ़कर 2019–20 में 20 MT से अधिक हो गया है, इसका प्रमुख कारण पैकेजिंग और उपभोक्ता वस्तुओं की माँग है।
  • प्रतिबंधों का सीमित प्रभाव: कप, स्ट्रॉ और चम्मच जैसी लगभग 20 सिंगलयूज प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध के बावजूद प्रवर्तन संबंधी कमियां उनकी प्रभावशीलता को सीमित करती हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियाँ: अधिकांश रणनीतियाँ संग्रहण और पुनर्चक्रण पर केंद्रित हैं, तथा स्रोत स्तर पर प्लास्टिक को कम करने पर न्यूनतम ध्यान दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय दबाव लगातार बना रहता है।

पर्यावरणीय संधारणीयता के साथ विकास को संतुलित करने की रणनीतियाँ

वैश्विक रणनीतियाँ

  • सर्कुलर अर्थव्यवस्था मॉडल: अपशिष्ट और संसाधन निष्कर्षण को न्यूनतम करने के लिए
    पुन: उपयोग, रिपेयरिंग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना चाहिए। 

    • उदाहरण: स्वीडन अपने घरेलू अपशिष्ट का 99% से अधिक पुनर्चक्रित करता है, तथा अपशिष्ट-से-ऊर्जा (Waste-to-Energy) संयंत्रों के माध्यम से उसमें से अधिकांश को ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
  • इको-डिजाइन विनियम: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए बायोडिग्रेडेबल या पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
  • वैश्विक संधियाँ और सहयोग: उत्पादन कम करने और सामूहिक रूप से प्रदूषण प्रबंधन के लिए बहुपक्षीय समझौतों को प्रोत्साहित करना चाहिए। 
    • उदाहरण: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने वैश्विक सहयोग के माध्यम से ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों को सफलतापूर्वक चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया।
  • निजी क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन: संधारणीय प्रथाओं को अपनाने वाले व्यवसायों को
    सब्सिडी, कर छूट या अनुदान प्रदान करना चाहिए।

    • उदाहरण: जर्मनी के नवीकरणीय ऊर्जा प्रोत्साहन, कम्पनियों को सौर और पवन ऊर्जा में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे हरित विकास को बढ़ावा मिलता है।

भारत की रणनीतियाँ

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों को अपने प्लास्टिक उत्पादों के संग्रहण और पुनर्चक्रण की जिम्मेदारी लेने हेतु बाध्य किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अंतर्गत उत्पादकों को पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग सामग्री अपनाने और EPR दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।
  • नगर निगम अपशिष्ट अवसंरचना: पर्यावरण में प्लास्टिक लीकेज को रोकने के लिए शहरी स्तर पर पृथक्करण, संग्रहण और प्रसंस्करण प्रणालियों को सुदृढ़ करना चाहिए।
    • उदाहरण: इंदौर ने घर-घर जाकर कचरा संग्रहण और केंद्रीकृत सुविधाओं के माध्यम से 100% स्रोत पृथक्करण का लक्ष्य हासिल किया।
  • व्यावहारिक परिवर्तन अभियान: नागरिकों के बीच
    सिंगलयूज वाले प्लास्टिक के उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उसे कम करना चाहिए।

    • उदाहरण के लिए: आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) का ‘प्लास्टिक आउट, फैब्रिक इन’ अभियान शिक्षा और जनसंपर्क के माध्यम से नागरिकों को प्लास्टिक उपयोग कम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकी में निवेश: विविध प्रकार के प्लास्टिक अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से संसाधित करने के लिए यांत्रिक और रासायनिक पुनर्चक्रण क्षमता का विस्तार करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: Azilyx इंडिया जैसी स्टार्टअप कंपनियाँ मिश्रित प्लास्टिक के रासायनिक पुनर्चक्रण का उपयोग करके ईंधन और कच्चा माल बनाने की दिशा में काम कर रही हैं।
  • नीति-उद्योग सहयोग: स्रोत स्तर पर प्लास्टिक उत्पादन को कम करने और संधारणीय विकल्पों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन और नियमन का सह-निर्माण करना होगा। 
    • उदाहरण: सरकार-उद्योग की संयुक्त पहलें बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग को अपनाने को बढ़ावा देती हैं और निर्माताओं को कर लाभ भी प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष

प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा है और सतत विकास लक्ष्य 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) को प्राप्त करने में बाधा डाल रहा है। इसका प्रभावी समाधान करने के लिए  समन्वित नीतियाँ, उन्नत पुनर्चक्रण तकनीकें, व्यवहार में परिवर्तन, सार्वजनिक-निजी सहयोग, सर्कुलर अर्थव्यवस्था मॉडल तथा विकास और संधारणीयता के बीच संतुलन बनाने हेतु वैश्विक सहयोग, ये सभी अति आवश्यक है।

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