प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के आव्रजन और शरणार्थी प्रबंधन ढाँचे के संदर्भ में आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025 का महत्त्व लिखिए।
- भारत के आव्रजन और शरणार्थी प्रबंधन ढाँचे के संदर्भ में आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025 की चिंताएँ/नकारात्मक पहलू लिखिए।
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उत्तर
आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025 ने भारत की शरणार्थी प्रबंधन प्रक्रिया को सरल बनाया है। यह आदेश श्रीलंकाई तमिल और तिब्बती शरणार्थियों के साथ-साथ अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को पासपोर्ट तथा वीजा से छूट प्रदान करता है। यह मानवीय आवश्यकताओं को संरचित निगरानी के साथ संतुलित करता है।
भारत की आप्रवासन और शरणार्थी प्रबंधन रूपरेखा में आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025 का महत्त्व
- असुरक्षित समूहों के लिए मानवीय राहत: यह आदेश श्रीलंकाई तमिल, तिब्बती शरणार्थी और उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को पासपोर्ट और वीजा से छूट देता है, जिससे भारत में सुरक्षित निवास सुनिश्चित होता है।
- उदाहरण: तमिलनाडु में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को जबरन वापसी से सुरक्षा मिलती है, जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- सांस्कृतिक और क्षेत्रीय संबंधों को सुदृढ़ करना: नेपाली, भूटानी और श्रीलंकाई तमिलों को मान्यता देकर यह आदेश सांस्कृतिक रूप से जुड़े समूहों के संरक्षक के रूप में भारत की भूमिका को पुनः पुष्ट करता है।
- आप्रवासन नीति में स्पष्टता: यह आदेश छूट को स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध करता है, जिससे शरणार्थी प्रबंधन में कानूनी अस्पष्टता कम होती है और अधिकारियों के लिए एकसमान रूपरेखा उपलब्ध होती है।
- उदाहरण: 9 जनवरी, 2015 से पहले आए और पंजीकृत शरणार्थियों को औपचारिक रूप से इस छूट के अंतर्गत मान्यता दी गई।
- राज्यविहीनता की रोकथाम: यह आदेश दीर्घकालीन शरणार्थियों को कानूनी रूप से रहने की अनुमति देकर उनकी अनिश्चित स्थिति को कम करता है और अनिश्चितकालीन राज्यविहीनता को रोकता है।
- उदाहरण: तमिलनाडु में 30 वर्षों से अधिक समय से रह रहे श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को निर्वासन न होने का आश्वासन दिया गया।
- सुरक्षा और करुणा का संतुलन: यह आदेश राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के साथ मानवीय मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है।
भारत की आप्रवासन और शरणार्थी प्रबंधन रूपरेखा में आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025की चुनौतियाँ
- “अवैध प्रवासी” टैग का बना रहना: छूट के बावजूद शरणार्थियों को अब भी अवैध प्रवासी की श्रेणी में रखा जाता है, जिससे उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग नहीं मिलता।
- उदाहरण: शिविरों में रह रहे श्रीलंकाई तमिल अभी भी नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत प्राकृतिककरण हेतु अयोग्य हैं।
- नागरिकता लाभों से वंचित करना: यह आदेश उत्पीड़ित समूहों जैसे श्रीलंकाई तमिलों को बाहर रखता है, जबकि वर्ष 2019 के CAA ने गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता का त्वरित मार्ग प्रदान किया।
- उदाहरण: भीषण गृहयुद्ध का सामना करने के बावजूद तमिल शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया।
- दीर्घकालिक वीजा (LTV) से वंचित करना: नागरिकता न होने के बावजूद शरणार्थियों को LTV नहीं दिया जाता, जिससे उन्हें संपत्ति, बैंकिंग, रोजगार और शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकारों तक पहुँच नहीं मिलती।
- शरणार्थियों के बीच असमानता उत्पन्न करना: चयनात्मक छूट विभिन्न शरणार्थी समूहों के बीच असमानता उत्पन्न करती है। कुछ को नागरिकता का मार्ग मिलता है, जबकि अन्य अनिश्चितता में रहते हैं।
- उदाहरण: तिब्बती शरणार्थियों को ‘सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी’ मिलता है, जबकि श्रीलंकाई तमिलों को ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दिया जाता।
- दीर्घकालिक शरणार्थी निर्भरता: एकीकरण या पुनर्वास की रूपरेखा के अभाव में शरणार्थी दशकों तक अस्थायी शिविरों में फँसे रहते हैं, जिससे हाशिए पर धकेलने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
निष्कर्ष
आप्रवास और विदेशी विषयक (छूट) आदेश, 2025 भारत के प्रयास को दर्शाता है, जिसमें सुरक्षा और मानवीय राहत के मध्य संतुलन साधा गया है तथा श्रीलंकाई तमिल एवं तिब्बती शरणार्थियों जैसे असुरक्षित समूहों की रक्षा की गई है, किंतु, ‘अवैध प्रवासी’ टैग को बनाए रखना और नागरिकता या LTV से वंचित करना उनकी दयनीय स्थिति को बढावा देता है। गरिमा और एकीकरण सुनिश्चित करने हेतु एक अधिक समावेशी शरणार्थी रूपरेखा आवश्यक है।
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