Q. लघु खनिज भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी उनके प्रशासन के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ हैं। इस संदर्भ में, भारत के विकास में लघु खनिजों के महत्त्व का परीक्षण कीजिए। उनके अन्वेषण से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? साथ ही सतत लघु खनिज प्रशासन के लिए एक सुदृढ़ ढाँचा सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के विकास में गौण खनिजों के महत्त्व का परीक्षण कीजिए।
  • उनके अन्वेषण से जुड़ी चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • संधारणीय गौण खनिज प्रशासन के लिए एक मजबूत ढांचे का सुझाव दीजिए।

उत्तर

खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत राज्यों द्वारा विनियमित रेत, मिट्टी, बजरी और इमारती पत्थर जैसे गौण खनिज, बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। खदान मालिक संघ बनाम बिहार राज्य (वर्ष 2000) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उनका वर्गीकरण अंतिम उपयोग और स्थानीय महत्त्व पर निर्भर करता है। उनके महत्त्व के बावजूद, कमजोर विनियमन के कारण पारिस्थितिकी क्षति और राजस्व हानि हुई है।

भारत के विकास में गौण खनिजों का महत्त्व

  • बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए मुख्य इनपुट: रेत और बजरी जैसे गौण खनिज कंक्रीट, गारा और डामर बनाने में आवश्यक हैं। 
    • उदाहरण: सड़कों, पुलों, इमारतों और आवास निर्माण के लिए रेत महत्त्वपूर्ण है।
  • विनिर्माण उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण: कई लघु खनिजों का उपयोग सिरेमिक, काँच, इलेक्ट्रॉनिक्स और पेंट में किया जाता है।
    • उदाहरण: फेल्डस्पार, अभ्रक और काओलिन जैसे खनिज सिरेमिक और रबर उद्योगों को सहायता प्रदान करते हैं व सिलिका युक्त खनिज काँच निर्माण में आवश्यक होते हैं।
  • स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार को समर्थन: निष्कर्षण से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में हजारों लोगों को आजीविका प्राप्त होती है।
    • उदाहरण: छोटे पैमाने पर उत्खनन से नदी के किनारों, पहाड़ियों और बाढ़ के मैदानों में काम करने वाले श्रमिकों को आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं।
  • ऊर्जा और प्रौद्योगिकी परिवर्तन के लिए आवश्यक: कुछ खनिजों को गौण से प्रमुख के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया है, जो अब भारत की हरित ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करते हैं।
    • उदाहरण: हाल ही में पुनर्वर्गीकृत बेराइट्स और क्वार्ट्ज, तेल ड्रिलिंग और सौर उपकरणों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • विकेंद्रीकृत शासन स्थानीय नियोजन को प्रोत्साहित करता है: राज्य गौण खनिजों को विनियमित करते हैं, जिससे स्थानीय भू-विज्ञान के अनुकूल क्षेत्र-विशिष्ट प्रबंधन संभव होता है।

अन्वेषण और शासन में चुनौतियाँ

  • अनियंत्रित अवैध एवं अवैज्ञानिक खनन: अनियमित खनन से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है और संसाधनों का ह्रास होता है।
  • पर्यावरणीय क्षरण और जैव विविधता ह्वास: खनन से जलीय और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
    • उदाहरण: रेत निष्कर्षण ने घड़ियालों और गंगा नदी डॉल्फिन की संख्या में गिरावट देखी गई है।
  • पर्यावरण नियमों का कमजोर प्रवर्तन: अदालती आदेशों के बावजूद, उचित मंजूरी या EIA के बिना खनन जारी है।
    • उदाहरण: दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 2012) में सर्वोच्च न्यायालय ने 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले क्षेत्रों के लिए पर्यावरण संरक्षण को अनिवार्य कर दिया था, जिसका अक्सर उल्लंघन किया जाता है।
  • विखंडित कानूनी ढाँचा: राज्य-विशिष्ट नियमों के कारण असंगतता और कमजोर निगरानी प्रणाली उत्पन्न होती है।
  • क्षेत्र में संघर्ष और अपराधीकरण: खनन माफिया कानून प्रवर्तन और पर्यावरण रक्षकों के लिए खतरा हैं।
  • खनन भूमि के पुनर्वास का अभाव: परित्यक्त खनन स्थल भूमि की गुणवत्ता को खराब करते हैं और भविष्य की उपयोगिता को कम करते हैं।
  • नीति निर्माताओं द्वारा कम प्राथमिकता: प्रमुख खनिज नीति पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि गौण खनिजों पर कम ध्यान दिया जाता है।

सतत् शासन के लिए उपाय

  • गौण खनिजों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय ढाँचा: राज्यों में विनियमन और प्रवर्तन को सुसंगत बनाने के लिए एक एकीकृत मॉडल कानून।
    • उदाहरण: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के रेत खनन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य संधारणीय निष्कर्षण मानदंड हैं।
  • कठोर पर्यावरणीय मंजूरी और EIA प्रवर्तन: सभी कार्यों के लिए EC और वैज्ञानिक खनन योजनाओं को अनिवार्य बनाना।
  • संसाधन प्रशासन में सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत को अपनाना: प्राकृतिक संसाधनों को सार्वजनिक संपत्ति के रूप में समझना चाहिए, जिनका प्रबंधन सामूहिक लाभ के लिए किया जाए।
  • निगरानी और पारदर्शिता के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: खनन गतिविधियों पर नजर रखने और अवैध  गतिविधियों को रोकने के लिए GIS, ड्रोन और ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक खनिजों के संधारणीय विकल्पों को बढ़ावा देना: कृतिम रेत और पुनर्चक्रित निर्माण सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • मजबूत अंतर-एजेंसी समन्वय और जवाबदेही: प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, वन विभागों और खनन नियामकों के बीच तालमेल सुनिश्चित करना चाहिए।
  • जन-केंद्रित और पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील नीतियाँ: निगरानी और लाभ-साझाकरण तंत्र में सामुदायिक भागीदारी। उदाहरण: रेत खनन फ्रेमवर्क (2018) जिला सर्वेक्षणों के माध्यम से स्थायी निष्कर्षण को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

गौण खनिज, यद्यपि विकेंद्रीकृत और स्थानीय रूप से प्रबंधित हैं, भारत के विकास पथ के केंद्र में हैं। हालाँकि, उनका अनियंत्रित दोहन पर्यावरणीय अखंडता और सामाजिक व्यवस्था को कमजोर करता है। विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण के बीच संतुलन बनाने वाला एक मजबूत राष्ट्रीय ढाँचा, जो कानूनी मिसाल और जनविश्वास द्वारा निर्देशित हो, स्थायी खनिज प्रशासन के लिए आवश्यक है।

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