प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि भारत में अनुसंधान एवं विकास के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन के बावजूद अनुसंधान परिणाम क्यों कमतर रह गया है?
- भारत को अनुसंधान के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में परिवर्तित करने में आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- भारत को अनुसंधान के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में परिवर्तित करने के लिए व्यापक उपाय सुझाइये, ताकि निजी क्षेत्र की सतत भागीदारी और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का विकास सुनिश्चित हो सके।
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उत्तर
सरकार ने हाल ही में बजट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को ₹28,000 करोड़ आवंटित किए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना वृद्धि दर्शाता है। हालाँकि, R&D पर भारत का कुल व्यय, GDP का लगभग 0.65% है, जो दक्षिण कोरिया (4.8%) और चीन (2.4%) जैसे देशों से काफी पीछे है। हालांकि R&D के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि हुई है, परंतु इन निवेशों को सार्थक अनुसंधान परिणामों में परिवर्तित करना एक चुनौती बनी हुई है।
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पर्याप्त बजटीय आवंटन के बावजूद अनुसंधान परिणाम कमतर बने हुए हैं
- निजी क्षेत्र का कम निवेश: निजी क्षेत्र का अनुसंधान एवं विकास निवेश केवल 36% ही है , जो नवाचार को सीमित करता है। अधिकांश कंपनियां, मौलिक शोध (जिसमें अधिक समय लगता है) के बजाय त्वरित रिटर्न के लिए अनुपयुक्त शोध को प्राथमिकता देती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत का दवा उद्योग स्वतंत्र शोध में निवेश करने के बजाय दवा की खोज के लिए CSIR जैसे सरकारी वित्तपोषित संस्थानों पर बहुत अधिक निर्भर करता है ।
- कुशल कार्यबल की कमी: कार्यबल में प्रशिक्षित शोधकर्ताओं, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की कमी है, जिससे नवाचार क्षमता कम हो रही है। सीमित फंडिंग, करियर ग्रोथ और इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण कई प्रतिभाशाली व्यक्ति देश से पलायन कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: ब्रेन ड्रेन की घटना के कारण शीर्ष भारतीय AI शोधकर्ता, घरेलू स्तर पर योगदान देने के बजाय Google DeepMind, Meta और OpenAI के लिए काम कर रहे हैं।
- कमजोर संस्थागत संबंध: शिक्षाविदों, उद्योग और सरकार के बीच खराब सहयोग, अनुसंधान के व्यावसायीकरण में बाधा डालता है। विश्वविद्यालय सैद्धांतिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि उद्योगों के पास अत्याधुनिक अनुसंधान तक पहुँच नहीं है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय नवाचार सर्वेक्षण में बताया गया है कि केवल 27% भारतीय स्टार्टअप के पास शैक्षणिक संस्थानों के साथ औपचारिक अनुसंधान और विकास सहयोग है।
- सीमित IP सृजन: भारत में पेटेंट दाखिल करने की दर कम है, जो कमजोर बौद्धिक संपदा सृजन को दर्शाता है । दायर किए गए कई पेटेंट, कम उद्योग भागीदारी के कारण व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, भारत ने 64,480 पेटेंट दाखिल किए जबकि चीन ने 1.64 मिलियन से अधिक पेटेंट दाखिल किए, जो अनुसंधान से व्यावसायीकरण रूपांतरण में अंतर को दर्शाता है।
- अपर्याप्त अनुसंधान अवसंरचना: बजट में वृद्धि के बावजूद, प्रयोगशालाएँ, सेमीकंडक्टर फ़ैब और टेस्टिंग फैसेलिटीज की संख्या अपर्याप्त हैं। केवल वित्तपोषण से महत्वपूर्ण अवसंरचना की कमी की भरपाई नहीं हो सकती।
- उदाहरण के लिए: सेमीकंडक्टर मिशन का लक्ष्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है, लेकिन भारत अभी भी स्थानीय फ़ैब की कमी के कारण अपने 90% से अधिक सेमीकंडक्टर आयात करता है ।
भारत को अनुसंधान क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र में बदलने में आने वाली संरचनात्मक चुनौतियाँ
- खंडित नीति कार्यान्वयन: कई मंत्रालय अनुसंधान एवं विकास की देखरेख करते हैं, जिससे नियमों में ओवरलैपिंग होती है और फंड आवंटन व परियोजना निष्पादन में अक्षमता उत्पन होती है।
- उदाहरण के लिए: स्टार्टअप इंडिया पहल में R&D घटक DPIIT, DST और नीति आयोग के तहत हैं जिससे फंड वितरण में देरी होती है।
- कमज़ोर नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: भारत में वेंचर कैपिटल, इनक्यूबेशन सेंटर और मजबूत स्टार्टअप फंडिंग की कमी है। अप्रत्याशित रिटर्न के कारण निवेशक, उच्च जोखिम वाले R&D उपक्रमों को फंड देने से कतराते हैं।
- धीमी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रणाली: प्रयोगशाला अनुसंधान से लेकर वाणिज्यिक उत्पादों तक होने वाला संक्रमण अक्षम है। अनुसंधान संस्थानों को उद्योग के साथ सहयोग करने के लिए सीमित प्रोत्साहन ही मिलता है।
- उदाहरण के लिए: ISRO के NAVIC सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम में वाणिज्यिक उपयोग की क्षमता है, लेकिन इसे अभी तक कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स में पूरी तरह से एकीकृत नहीं किया गया है।
- उन्नत अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं का अभाव: अत्याधुनिक अनुसंधान के लिए उच्च स्तरीय परीक्षण प्रयोगशालाओं, AI कंप्यूटिंग क्लस्टर और सेमीकंडक्टर फैब्स की आवश्यकता होती है, जिनकी भारत में कमी है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय AI अनुसंधान स्थानीय अनुपलब्धता के कारण Google TPU और NVIDIA GPU जैसे विदेशी क्लाउड कंप्यूटिंग बुनियादी ढाँचे पर निर्भर करता है ।
- विनियामक और प्रशासनिक देरी: अनुदान, मंजूरी और पेटेंट अनुमोदन प्राप्त करने में लंबी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं, जो शोधकर्ताओं और उद्यमियों को हतोत्साहित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत में, पेटेंट अनुमोदन में 2-3 साल से अधिक समय लगता है, जबकि चीन और अमेरिका में, इसमें 1-2 साल लगते हैं, जिससे बाजार में प्रवेश में देरी होती है।
भारत को अनुसंधान का महाशक्ति बनाने के लिए व्यापक उपाय
- निजी क्षेत्र के प्रोत्साहनों को बढ़ाना: उच्च जोखिम, उच्च लाभ वाली परियोजनाओं में दीर्घकालिक निजी अनुसंधान एवं विकास तथा निवेश और भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए कर छूट, सब्सिडी और सह-वित्तपोषण मॉडल प्रदान करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए PLI योजना ने विनिर्माण को बढ़ावा दिया है; अनुसंधान एवं विकास के लिए इसी तरह की PLI कॉर्पोरेट नवाचार को बढ़ावा दे सकती है।
- विश्वविद्यालय-उद्योग सहयोग को मजबूत करना: संयुक्त अनुसंधान प्रयोगशालाएँ स्थापित करनी चाहिए और कॉर्पोरेट प्रायोजित PhD को प्रोत्साहित करना चाहिए। ज्ञान के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के लिए टेक्नोलॉजी पार्क को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: IIT मद्रास रिसर्च पार्क, स्टार्टअप और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को शिक्षाविदों के साथ मिलकर काम करने में सक्षम बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप पेटेंट दाखिल करने में वृद्धि होती है।
- विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे का विकास: उन्नत अनुसंधान का समर्थन करने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र, सेमीकंडक्टर फैब, क्वांटम लैब और बायोटेक क्लस्टर स्थापित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: चीन के शेनझेन साइंस पार्क ने सरकार द्वारा सहायता प्राप्त सुविधाओं के माध्यम से AI, बायोटेक और सेमीकंडक्टर उन्नति को बढ़ावा दिया है।
- पेटेंट अनुमोदन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में तेजी लाना: पेटेंट पंजीकरण को सरल बनाना, उद्योग-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास अनुदान योजनाएं बनाना, तथा विश्वविद्यालयों को अनुसंधान परिणामों का व्यावसायीकरण करने का आदेश देना चाहिए।
- प्रतिभा को आकर्षित करना और बनाए रखना: प्रतिभा पलायन को रोकने और वैश्विक शोधकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए अनुसंधान फेलोशिप, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और उच्च वेतन वाली R&D भूमिकाओं को बढ़ाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: रामानुजन फेलोशिप, वैश्विक भारतीय शोधकर्ताओं को आकर्षित करती है, लेकिन उच्च प्रोत्साहन देकर इसके प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।
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भारत को अनुसंधान के क्षेत्र में एक शक्तिशाली देश बनने के लिए, ‘इनोवेट टू एलीवेट’ (Innovate to Elevate) के मंत्र का पालन करना चाहिए। प्रशासनिक बाधाओं को दूर करना, उद्योग-अकादमिक संबंधों को बढ़ावा देना और निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में क्रांति ला सकता है। अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाकर, स्टार्टअप को बढ़ावा देकर और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर भारत एक आत्मनिर्भर और सतत नवाचार अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
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