×

Q. न्यायिक समीक्षा की अवधारणा और भारतीय संदर्भ में इसके महत्त्व की जाँच कीजिए। न्यायपालिका और विधायिका के बीच संबंधों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • न्यायिक समीक्षा की संकल्पना का परीक्षण कीजिए।
  • भारतीय संदर्भ में न्यायिक समीक्षा के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
  • न्यायपालिका और विधायिका के बीच संबंधों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।

 

उत्तर:

न्यायिक समीक्षा, न्यायपालिका की वह शक्ति है, जिसके द्वारा वह कानूनों और कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता की जाँच कर सकती है। इसे यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13, अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 से  प्राप्त होता है । यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है, कि कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं कर सकती है और इस तरह से यह सिद्धांत नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

Enroll now for UPSC Online Course

न्यायिक समीक्षा की संकल्पना

  • संवैधानिक सुरक्षा: न्यायिक समीक्षा, संवैधानिक सुरक्षा के रूप में कार्य करती है और यह सुनिश्चित करती है कि विधायी और कार्यकारी कार्य संविधान के अनुरूप हों। यह सत्ता के स्वच्छंद उपयोग को रोकती है और राष्ट्र के लोकतांत्रिक ताने-बाने को सुरक्षित रखती है।
    • उदाहरण के लिए: केशवानंद भारती वाद (1973) में, संवैधानिक संशोधन की न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ‘मूल संरचनाके सिद्धांत की स्थापना की।
  • मौलिक अधिकारों का संरक्षण: न्यायिक समीक्षा, न्यायालयों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून या सरकारी कार्रवाई को अमान्य करार देकर नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का अधिकार देती है।
    • उदाहरण के लिए: मेनका गांधी वाद (1978) में, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के दायरे को बढ़ाया, जिससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले कानूनों की न्यायिक जांच सुनिश्चित हुई।
  • अनुच्छेद 13 के अंतर्गत दायरा: अनुच्छेद 13 स्पष्ट रूप से न्यायिक समीक्षा का प्रावधान करता है, जिसमें कहा गया है कि मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला कोई भी कानून अमान्य होगा। यह प्रावधान न्यायपालिका को असंवैधानिक कानूनों को रद्द करने का अधिकार देता है। 
    • उदाहरण के लिए: IR Coelho वाद (2007) में, सुप्रीम कोर्ट ने‌ निर्णय दिया कि नौवीं अनुसूची के अंतर्गत आने वाले कानून भी न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे, यदि  वे मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।
  • कार्यपालिका की शक्तियों पर नियंत्रण: न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है, कि कार्यपालिका अपनी संवैधानिक शक्तियों का गलत इस्तेमाल न करे। इस तरह से यह कार्यपालिका की शक्तियों पर नियंत्रण स्थापित करने का भी कार्य करती है।
    • उदाहरण के लिए: ADM जबलपुर वाद (1976) में, आपातकाल के दौरान न्यायपालिका के निर्णय ने कार्यकारी कार्यों की जाँच के लिए मजबूत न्यायिक समीक्षा तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • प्रत्यायोजित विधान की समीक्षा: न्यायपालिका के पास प्रत्यायोजित विधान की जाँच करने का अधिकार है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कार्यपालिका द्वारा बनाए गए अधीनस्थ कानून संसद द्वारा दिए गए अधिकार के दायरे से बाहर न जाएं। 
    • उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक समीक्षा के तहत कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करते हुए वर्ष 2003 में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) के प्रावधानों को निरस्त कर दिया

भारतीय संदर्भ में न्यायिक समीक्षा का महत्त्व

  • मूल संरचना का संरक्षण: संविधान की मूल संरचना की सुरक्षा के लिए न्यायिक समीक्षा आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति, मौलिक सिद्धांतों को कमजोर न करे। 
    • उदाहरण के लिए: मिनर्वा मिल्स वाद (1980) में , सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना के सिद्धांत को दोहराया और न्यायिक स्वतंत्रता को खतरा पहुँचाने वाले संशोधनों को खारिज कर दिया।
  • मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि कानून और नीतियाँ नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें, विशेष रूप से राज्य की मनमानी कार्रवाइयों के मामले में। 
    • उदाहरण के लिए: नवतेज सिंह जौहर वाद (2018) में , सुप्रीम कोर्ट ने LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते हुए धारा 377 को अमान्य घोषित कर दिया।
  • संघवाद की सुरक्षा: न्यायिक समीक्षा, संघ और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करके संघीय ढाँचे को बनाए रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि दोनों सरकारें अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करें। 
    • उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट ने संघीय सिद्धांतों को संरक्षित करते हुए अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के दुरुपयोग को सीमित करने के लिए एस. आर. बोम्मई वाद (1994) में मध्यक्षेप किया।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: शासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए और सत्ता के दुरुपयोग को रोकते हुए न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी निकाय अपने कार्यों के लिए जवाबदेह रहें। 
    • उदाहरण के लिए: विनीत नारायण वाद (1997) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच में पारदर्शिता के लिए दिशा-निर्देश स्थापित किए, जिसमें कार्यपालिका को जवाबदेह बनाया गया।
  • विधि के शासन को सशक्त बनाना: विधि के शासन को बनाए रखने के लिए न्यायिक समीक्षा का सिद्धांत अत्यंत महत्त्वपूर्ण और मौलिक है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सरकार स्थापित कानूनी सिद्धांतों के अनुसार कार्य करे, न कि कानून के दायरे के बाहर जाकर।

न्यायपालिका और विधायिका के बीच संबंधों पर न्यायिक समीक्षा का प्रभाव

  • न्यायिक स्वतंत्रता बनाम संसदीय संप्रभुता: न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत ने कभी-कभी कानूनों की समीक्षा करने में न्यायपालिका की भूमिका और संसद की कानून बनाने की शक्तियों के बीच संघर्ष उत्पन्न किया है, जिससे न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठे हैं । 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) वाद (2015) में न्यायपालिका ने संसद द्वारा पारित एक संवैधानिक संशोधन को रद्द कर दिया, जिससे तनाव उत्पन्न हुआ।
  • न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक: न्यायिक समीक्षा के बढ़ते उपयोग ने न्यायिक अतिरेक के विषय से संबंधित विवाद को जन्म दिया है जिसमें न्यायपालिका को विधायी कार्यों में अतिक्रमण करते हुए देखा गया है। 
    • उदाहरण के लिए: 2G स्पेक्ट्रम वाद (2012) में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाइसेंस रद्द करने से नीतिगत निर्णयों में न्यायिक हस्तक्षेप के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हुईं, जिन्हें आमतौर पर कार्यपालिका द्वारा लिया  जाता है।
  • न्यायिक समीक्षा के प्रति विधायी प्रतिक्रियाएँ: संसद ने कभी-कभी न्यायिक समीक्षा के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए न्यायालय के निर्णयों को निरस्त करने के लिए संशोधन पारित किए हैं। 
    • उदाहरण के लिए: नौवीं अनुसूची कुछ कानूनों को न्यायिक जाँच से बचाने के लिए बनाई गई थी, लेकिन I.R.Coelho वाद (2007) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इन कानूनों पर भी न्यायिक समीक्षा को बहाल कर दिया।
  • विधायी जवाबदेही सुनिश्चित करना: न्यायिक समीक्षा, संसद पर एक नियंत्रण के रूप में कार्य करती है और यह सुनिश्चित करती है, कि संसद अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर कार्य करे। इसने विधायी जवाबदेही को मजबूत किया है और संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखा है। 
    • उदाहरण के लिए: केशवानंद भारती वाद (1973) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने, मूल संरचना को बदलने की संसद की शक्ति को सीमित कर दिया जिससे संवैधानिक संशोधनों में जवाबदेही सुनिश्चित हुई।
  • संवैधानिक संवाद को बढ़ावा देना: न्यायिक समीक्षा, न्यायपालिका और विधायिका के बीच संवाद को बढ़ावा देती है तथा संसद को संवैधानिक मानदंडों का पालन करने वाले कानून बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है और लोकतांत्रिक शासन को बढ़ावा देती है । 
    • उदाहरण के लिए: सूचना का अधिकार अधिनियम (2005), सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे निर्णयों के बाद पारित किया गया था जिनमें सार्वजनिक प्रशासन में पारदर्शिता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया था।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

न्यायिक समीक्षा, भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला है, जो मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है और संविधान की मूल संरचना को बनाए रखती है। यह विधि के शासन को बढ़ावा देते हुए और जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए, विधायिका और कार्यपालिका की शक्ति को संतुलित करती है। न्यायपालिका और संसद के बीच कभी-कभी होने वाले तनावों के बावजूद, न्यायिक समीक्षा अपने मूल सिद्धांतों को कायम रखते हुए और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए, भारत के संवैधानिक लोकतंत्र को मजबूत करती है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.