प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की सामाजिक-आर्थिक नीतियों पर विलंबित जनगणना के परिणामों की जाँच कीजिए।
- उन उपायों पर प्रकाश डालिए, जिन्हें इन प्रभावों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए लागू किया जाना चाहिए।
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उत्तर:
वर्ष 2021 के बाद से भारत की जनगणना में विलम्ब का सामाजिक-आर्थिक योजना एवं विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। प्रत्येक दस वर्ष में आयोजित होने वाली जनगणना नीति-निर्माण, संसाधन आवंटन तथा कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करती है। COVID-19 एवं प्रशासनिक चुनौतियों के कारण स्थगन महत्वपूर्ण डेटा संग्रह को बाधित करता है, साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने एवं लक्षित नीति हस्तक्षेप को प्रभावित करता है।
भारत की सामाजिक-आर्थिक नीतियों पर विलंबित जनगणना के परिणाम
- संसाधन आवंटन पर प्रभाव: अद्यतन जनगणना डेटा की अनुपस्थिति विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए संसाधनों के सटीक वितरण को प्रभावित करती है, जिससे अक्षमताएँ होती हैं एवं योग्य लाभार्थियों का संभावित लाभ प्राप्त नही हो पाता है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत धन का आवंटन जनसंख्या डेटा पर निर्भर करता है, जो पुराना डेटा होने पर संसाधनों को दिशाहीन कर देता है।
- योजना एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में चुनौतियाँ: शहरी नियोजन, बुनियादी ढाँचे के विकास एवं सेवा वितरण के लिए जनगणना डेटा महत्वपूर्ण है। जनगणना में देरी के परिणामस्वरूप पुरानी योजनाएँ बन सकती हैं, जो वर्तमान जनसंख्या आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
- उदाहरण के लिए: स्मार्ट सिटी पहल उपयोगिताओं की योजना बनाने के लिए सटीक जनसांख्यिकीय डेटा पर निर्भर करती है, जो देरी से जनगणना परिणामों के कारण समझौता किया गया है।
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में व्यवधान: कमजोर आबादी को लक्षित करने वाले सामाजिक कल्याण कार्यक्रम सटीक जनसांख्यिकीय एवं सामाजिक-आर्थिक डेटा पर निर्भर करते हैं। अद्यतन जानकारी की कमी कार्यक्रम की प्रभावशीलता तथा पहुँच में बाधा डालती है।
- उदाहरण के लिए: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), जो लाभार्थियों की पहचान करने एवं उन्हें सेवा प्रदान करने के लिए जनगणना डेटा का उपयोग करती है, को लक्षित आबादी तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- चुनावी सीमाओं एवं प्रतिनिधित्व पर प्रभाव: चुनावी निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन जनगणना के जनसंख्या आँकड़ों पर आधारित है। जनगणना में देरी से निष्पक्ष राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रभावित होता है, जिससे संभावित रूप से चुनावी परिणामो पर प्रभाव पड़ सकता हैं।
- उदाहरण के लिए: परिसीमन आयोग को समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को समायोजित करने के लिए सटीक जनसंख्या डेटा की आवश्यकता होती है।
- गलत आर्थिक संकेतक: कई आर्थिक संकेतक, जैसे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद एवं बेरोजगारी दर, की गणना जनसंख्या डेटा का उपयोग करके की जाती है। पुराने जनगणना डेटा इन आँकड़ों को विकृत कर सकते हैं, जिससे त्रुटिपूर्ण आर्थिक नीतियां बन सकती हैं।
प्रभावों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के उपाय
- डिजिटल डेटा संग्रह विधियों को लागू करना: डेटा संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से जनगणना प्रक्रिया में तेजी आ सकती है एवं रियल टाइम अपडेट सुनिश्चित हो सकता है, देरी कम हो सकती है तथा डेटा सटीकता बढ़ सकती है।
- उदाहरण के लिए: पायलट अध्ययनों में डेटा संग्रह के लिए मोबाइल ऐप्स के उपयोग ने दक्षता एवं डेटा सटीकता में सुधार में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
- राज्य एवं केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना: बेहतर समन्वय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकता है एवं समय पर निष्पादन सुनिश्चित कर सकता है, जनगणना विलम्ब को कम कर सकता है तथा बेहतर डेटा प्रबंधन को बढ़ावा दे सकता है।
- जन जागरूकता अभियान: जनता को जनगणना के महत्व के बारे में शिक्षित करने से भागीदारी दर बढ़ सकती है, जिससे अधिक व्यापक एवं सटीक डेटा संग्रह हो सकेगा।
- नियमित अंतरिम सर्वेक्षण: अंतरिम सर्वेक्षण आयोजित करने से प्रमुख जनसांख्यिकी पर अद्यतन डेटा प्रदान किया जा सकता है, जो जनगणना पूरी होने तक एक अस्थायी समाधान के रूप में कार्य करता है।
- उदाहरण के लिए: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रोजगार आँकड़ों पर अंतरिम अपडेट प्रदान करता है, जो जनगणना डेटा में देरी के कारण अंतराल को कम कर सकता है।
- डेटा प्रबंधन एवं विश्लेषण क्षमताओं को मजबूत करना: उन्नत डेटा प्रबंधन प्रणालियों में निवेश करने से जनगणना डेटा की गुणवत्ता एवं उपयोगिता बढ़ सकती है, जिससे यह नीति निर्माण के लिए अधिक विश्वसनीय हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: जनगणना कार्यों में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के एकीकरण से डेटा विज़ुअलाइजेशन एवं विश्लेषण क्षमताओं में सुधार हुआ है।
अंततः भारत को समय पर जनगणना पूरी करने एवं मजबूत डेटा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, सार्वजनिक विश्वास बढ़ाना तथा अंतर-एजेंसी समन्वय को बढ़ावा देना आवश्यक है। इन रणनीतियों को प्राथमिकता देकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी सामाजिक-आर्थिक नीतियां डेटा-संचालित, समावेशी और अपनी विविध आबादी की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी हैं।
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