प्रश्न की मुख्य माँग
- जलवायु-प्रेरित प्रवासन के प्रमुख चालकों का परीक्षण कीजिए।
- मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानूनी और मानवीय ढाँचे के समक्ष इससे उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- कानूनी और मानवीय चुनौतियों को कम करने के लिए आगे की राह लिखिए।
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उत्तर
हालाँकि वैश्विक ध्यान भू-राजनीतिक संकटों पर केंद्रित है, जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन में वृद्धि अभी भी जारी है। वर्ष 2024 में, चरम मौसम की घटनाओं के कारण 8,24,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए, फिर भी जलवायु शरणार्थी कानूनी रूप से अपरिचित और नीतिगत रूप से अदृश्य बने हुए हैं। जैसे-जैसे पारिस्थितिकी पतन बढ़ता है, जलवायु परिवर्तन के कारण पलायन करने को मजबूर लोगों के लिए परिभाषा, कानूनी और सुरक्षा संबंधी कमियों को दूर करने की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है।
जलवायु-प्रेरित प्रवास के प्रमुख चालक
- चरम मौसम की घटनाएँ और प्राकृतिक आपदाएँ: वर्ष 2024 में 600 से अधिक चरम मौसम की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें बाढ़, सूखा और तूफान के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ।
- समुद्र का बढ़ता स्तर और जलमग्नता का खतरा: तटीय क्षेत्रों को दीर्घकालिक जलप्लावन के खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे स्थायी रूप से विस्थापन की आवश्यकता पड़ रही है।
- उदाहरण: वर्ष 2050 तक, गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का 17% हिस्सा जलमग्न हो सकता है, जिससे बांग्लादेश में लगभग 2 करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं।
- मरुस्थलीकरण और कृषि को नुकसान: लंबे समय तक सूखा पड़ने से खाद्य सुरक्षा और आजीविका बाधित होती है, विशेषकर ग्लोबल साउथ में।
- उदाहरण के लिए: मध्य अमेरिका के ड्राई कॉरिडोर में फसल विफलता और तूफानों के कारण 14 लाख युवा विस्थापित हुए।
- हिमनदों का पिघलना और हिमालयी प्रस्फुटन से बाढ़: पिघलते हिमनदों के कारण उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों में अचानक बाढ़ और आवास ह्वास का खतरा बढ़ जाता है।
- उदाहरण: हिमनद-पोषित क्षेत्रों में लोगों को अप्रत्याशित आपदा चक्रों के कारण बार-बार विस्थापन का सामना करना पड़ता है।
- जलवायु-संघर्ष संबंध: पारिस्थितिकी तनाव संसाधन-आधारित संघर्ष को बढ़ाता है, जिससे बहु-कारण विस्थापन को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: साहेल में, सशस्त्र संघर्ष के साथ मरुस्थलीकरण के कारण बुर्किना फासो में 2 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए।
- लघु द्वीपीय राष्ट्रों की भेद्यता: संपूर्ण द्वीपीय राष्ट्रों को बढ़ते समुद्री स्तर के कारण अस्तित्व संबंधी खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
- उदाहरण: किरिबाती और तुवालु को वर्ष 2050 तक रहने योग्य बने रहने के लिए रक्षा हेतु 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता हो सकती है।
- अवसंरचना की अपर्याप्तता और शहरी भीड़भाड़: जैसे-जैसे विस्थापित लोग शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं, बुनियादी ढाँचे का पतन और जलवायु परिवर्तन विस्थापन चक्र को और खराब देते हैं।
कानूनी और मानवीय ढाँचे के लिए चुनौतियाँ
- कानूनी मान्यता का अभाव: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन में विस्थापन के पर्यावरणीय कारणों को शामिल नहीं किया गया है।
- संकल्पनात्मक भ्रम और परिभाषा का अभाव: कोई वैश्विक रूप से स्वीकृत शब्द मौजूद नहीं है; “जलवायु प्रवासी” या “आपदा विस्थापित व्यक्ति” जैसे वाक्यांशों में एकरूपता का अभाव है।
- उदाहरण: UNHCR “जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के कारण विस्थापित व्यक्तियों” को प्राथमिकता देता है, न कि “जलवायु शरणार्थियों” को।
- स्वैच्छिक और जबरन प्रवास के बीच अस्पष्टताएँ: धीरे-धीरे होने वाली आपदाएँ विस्थापन को अनैच्छिक के रूप में कानूनी रूप से वर्गीकृत करना जटिल बना देती हैं।
उदाहरण: समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण पूर्व-स्थानांतरण में शरणार्थी का दर्जा नहीं होता।
- सीमा पार सुरक्षा तंत्र का अभाव: अधिकांश विस्थापित व्यक्ति सीमाओं के भीतर ही रहते हैं और अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी संरक्षण के दायरे से बाहर रहते हैं।
उदाहरण: केवल क्षेत्रीय या विवेकाधीन ढाँचे, जैसे न्यूजीलैंड का मानवीय वीजा, ही कोई कवर प्रदान करते हैं।
- राज्य के समक्ष चुनौतियाँ और संस्थागत पतन: प्रभावित राज्यों में संसाधनों की कमी के कारण नागरिकों की सुरक्षा करने की क्षमता का अभाव हो सकता है।
- उदाहरण: जलवायु आपदाएँ राज्यों की विस्थापित आबादी को सहारा देने की क्षमता को समाप्त कर देती हैं।
- ‘सॉफ्ट लॉ’ फ्रेमवर्क पर निर्भरता: नानसेन पहल (Nansen Initiative) और ग्लोबल कॉम्पैक्ट्स जैसी पहलों में कानूनी पक्ष का अभाव है और वे राज्य की सद्भावना पर निर्भर हैं।
- उदाहरण: ग्लोबल कॉम्पैक्ट ऑन माइग्रेशन, जलवायु चालकों को मान्यता देता है, लेकिन कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं लगाता है।
- मानवाधिकार बनाम राज्य संप्रभुता तनाव: संरक्षण के अधिकार को सीमा सुरक्षा और संप्रभुता के साथ सामंजस्य बिठाना विवादास्पद बना हुआ है।
- उदाहरण: ICCPR के जीवन के अधिकार पर आधारित 2020 UNHRC का निर्णय आशा प्रदान करता है, लेकिन यह सभी राज्यों पर बाध्यकारी नहीं है।
कानूनी और मानवीय चुनौतियों को कम करने के लिए आगे की राह
- जलवायु शरणार्थियों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक ढाँचा विकसित करना: वर्ष 1951 शरणार्थी सम्मेलन के दायरे का विस्तार करना चाहिए या शरणार्थी संरक्षण के आधार के रूप में जलवायु-प्रेरित विस्थापन को मान्यता देने वाली एक नई अंतरराष्ट्रीय संधि तैयार करनी चाहिए।
- ‘जलवायु शरणार्थी’ की एक समान परिभाषा स्थापित करना: अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पहचान, सहायता और कानूनी स्थिति में स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए एकल, समावेशी परिभाषा पर सहमत होना चाहिए।
- जलवायु विस्थापन को मानवाधिकार ढाँचे में एकीकृत करना: मौजूदा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के फैसलों (जैसे वर्ष 2020 का ICCPR निर्णय) को लागू करना चाहिए और विस्थापन को जीवन एवं सम्मान के मौलिक अधिकार से जोड़ना चाहिए।
- क्षेत्रीय कानूनी उपकरणों को मजबूत करना: आंतरिक और सीमा पार जलवायु प्रवासन को संबोधित करने के लिए अफ्रीका के कंपाला कन्वेंशन और प्रशांत द्वीप सहयोग ढाँचे जैसे क्षेत्रीय रूप से बाध्यकारी मॉडलों को दोहराना और उनका विस्तार करना चाहिए।
- मानवीय वीजा और नियोजित पुनर्वास योजनाओं को संस्थागत बनाना: देशों को वैश्विक समर्थन के साथ जलवायु-प्रत्यास्थ वीजा मार्ग और सक्रिय पुनर्वास कार्यक्रम शुरू करने चाहिए, विशेष रूप से छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (SIDS) के लिए।
- सुभेद्य क्षेत्रों में अनुकूलन और प्रत्यास्थता निधि: जलवायु वित्त को “लॉस एंड डैमेज फंड”, क्षमता निर्माण और प्रत्यास्थ बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से विस्थापन-प्रवण वैश्विक दक्षिण क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए ।
निष्कर्ष
जलवायु-जनित विस्थापन अब भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए एक जीवंत संकट है। फिर भी, एक स्पष्ट कानूनी पहचान, सुरक्षा तंत्र और समन्वित नीतिगत प्रतिक्रिया का अभाव जलवायु शरणार्थियों को कानूनी अनिश्चितता की स्थिति में रखता है। समावेशी वैश्विक समझौतों, बाध्यकारी समझौतों और क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से वैचारिक, कानूनी और नीतिगत अंतरालों को कम करना अत्यंत आवश्यक है। जलवायु शरणार्थियों को एक वैध श्रेणी के रूप में मान्यता देना न केवल एक मानवीय अनिवार्यता है, बल्कि पारिस्थितिकी व्यवधान के इस युग में जलवायु न्याय और वैश्विक समता के लिए भी आवश्यक है।
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