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Q. डिजिटल युग के अपराधों से संबंधित भारत के नए आपराधिक संहिताओं में चूक की जाँच कीजिये और वर्तमान के तेजी से बदलते समाज में कानूनी ढाँचे को प्रासंगिक बनाए रखने के उपाय सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • डिजिटल युग के अपराधों से संबंधित भारत के नए आपराधिक संहिताओं में व्याप्त कमियों की  जाँच कीजिए।
  • वर्तमान के तेजी से बदलते समाज में कानूनी ढाँचे को प्रासंगिक बनाए रखने के उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

हाल ही में भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, औपनिवेशिक युग के कानूनों से भारतीय न्याय संहिता और भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता में बदलाव किया गया है। हालाँकि, नई संहिता में साइबरस्टॉकिंग और ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी जैसे डिजिटल युग के अपराधों से निपटने के लिए व्यापक प्रावधानों का अभाव है, जिनकी  आज के तकनीकी रूप से संचालित समाज में प्रासंगिकता तीव्रता से बढ़ रही है।

 डिजिटल युग के अपराधों से संबंधित भारत की नई आपराधिक संहिताओं में व्याप्त कमियाँ

  • व्यापक साइबर अपराध संबंधी  कानूनों का अभाव: नई संहिता  वर्तमान के डिजिटल युग  बढ़ रहे साइबर अपराधों जैसे कि साइबरस्टॉकिंग, फिशिंग और डेटा उल्लंघन के दायरे  को पर्याप्त रूप से परिभाषित नहीं करती हैं।  
    • उदाहरण के लिए: भारत में फिशिंग और ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं के बावजूद, नए कानून ऐसे अपराधों पर मुकदमा चलाने में शामिल जटिलताओं को कवर नहीं करते हैं।
  • डेटा गोपनीयता के लिए अपर्याप्त प्रावधान: डेटा उल्लंघनों पर बढ़ती चिंता के साथ, डेटा संरक्षण और गोपनीयता उल्लंघन के लिए विशिष्ट प्रावधान प्रदान करने में नई  आपराधिक संहिता  विफल रही हैं।
  • डिजिटल साक्ष्य हैंडलिंग के संदर्भ में  प्रोटोकॉल का अभाव: वर्तमान आपराधिक संहिताओं में डिजिटल साक्ष्यों को एकत्रित करने, उन्हें संरक्षित करने तथा न्यायलय में प्रस्तुत करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है, जो डिजिटल अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक है।
  • साइबर बुलिंग और उत्पीड़न के खिलाफ अपर्याप्त प्रावधान: डिजिटल उत्पीड़न, विशेष रूप से महिलाओं और नाबालिगों को लक्षित करना, नए कानूनी ढाँचे में  इस संदर्भ में किए गए प्रावधान  अपर्याप्त  है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार,  साइबर उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि हुई है, विशेष तौर पर महिलाओं के खिलाफ, परंतु नई संहिता ऐसे अपराधों के लिए कड़े दंड निर्दिष्ट नहीं करती हैं।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों से निपटने में कमियाँ: नए कानून उभरती हुई प्रौद्योगिकियों से संबंधित अपराधों, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी घोटाले और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दुरुपयोग को ध्यान में नहीं रखते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी ने डिजिटल और आभासी वातावरण में अपराधों को संबोधित करने के लिए  वर्तमान  में एक कानूनी ढाँचे की  आवश्यकता को दर्शाया  है।

वर्तमान  के तेजी से बदलते समाज में कानूनी ढाँचे को प्रासंगिक बनाए रखने के उपाय

  • व्यापक साइबर अपराध कानून को शामिल करना:  हैकिंग, आइडेंटिटी थेफ्ट  और साइबरस्टॉकिंग सहित साइबर अपराध के विभिन्न रूपों को लक्षित करते हुए विशिष्ट कानून बनाने की आवश्यकता है, ताकि पीड़ितों को प्रभावी विधिक सहायता  मिल सके। 
    • उदाहरण के लिए: सूचना और संचार नेटवर्क उपयोग को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण कोरिया के अधिनियम में साइबर अपराधों के खिलाफ व्यापक प्रावधान शामिल हैं, जिसका भारत अनुकरण कर सकता है।
  • डेटा सुरक्षा कानूनों को बेहतर बनाना: डेटा संग्रह, भंडारण और साझाकरण पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ डेटा गोपनीयता विनियमों को मजबूत करना।
    • उदाहरण के लिए:  इन कमियों को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 में  संशोधित किया जा सकता है और आवश्यक परिवर्तन कर  लागू किया जा सकता है।
  • डिजिटल साक्ष्य के लिए प्रोटोकॉल विकसित करना: न्यायालयों में डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने, प्रमाणित करने और प्रस्तुत करने के लिए मानक स्थापित करना, ताकि इसे आपराधिक कार्यवाही में यह स्वीकार्य और विश्वसनीय बनाया जा सके  है।
  • डिजिटल उत्पीड़न के खिलाफ उपायों को मजबूत करना: साइबरबुलिंग और डिजिटल उत्पीड़न के पीड़ितों के लिए सख्त दंड और सहायता प्रणाली प्रारंभ करना, जिसमें महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया जाएगा। 
    • उदाहरण के लिए: महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम (CCPWDC) योजना एक अज्ञात रिपोर्टिंग पोर्टल के माध्यम से समर्थन द्वारा डिजिटल उत्पीड़न उपायों को बढ़ाती है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए कानूनी ढाँचे को अपडेट करना: ऐसे कानून बनाना जो ब्लॉकचेन, AI और IoT जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करना, ताकि तकनीकी प्रगति के साथ सामंजस्य बनाए रखा जा सके।
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) एक लचीला ढाँचा प्रदान करता है जो डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकसित परिदृश्य को संबोधित करता है।

डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत के कानूनी ढाँचे को विकसित किया जाना चाहिए। व्यापक साइबर अपराध कानूनों को शामिल करके, डेटा सुरक्षा उपायों को बढ़ाकर और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए प्रोटोकॉल को अपडेट करके, भारत एक मजबूत और उत्तरदायी कानूनी प्रणाली सुनिश्चित कर सकता है। यह विकास तेजी से डिजिटल हो रहे विश्व में नागरिकों की सुरक्षा और समाज में विश्वास, सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

 

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