प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत-अमेरिका संबंधों में वर्तमान तनाव के बीच शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के अंतर्गत भारत के लिए बढ़ती चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- SCO में रणनीतिक स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए भारत के लिए आगे की राह सुझाइये।
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उत्तर
भारत का शंघाई सहयोग संगठन (SCO) से जुड़ाव, अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों की पृष्ठभूमि में, अवसरों और चुनौतियों दोनों को प्रस्तुत करता है। एक ओर यह मंच भारत को क्षेत्रीय बहुपक्षीय सहयोग, आतंकवाद-रोधी तंत्र और ऊर्जा सुरक्षा जैसे विषयों पर नए अवसर प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर चीन व पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता इस संगठन के भीतर शक्ति-संतुलन को भारत के विरुद्ध मोड़ सकती है। ऐसे परिदृश्य में भारत के लिए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है।
SCO में भारत के लिए चुनौतियाँ
- चीन का बढ़ता प्रभुत्व: शंघाई सहयोग संगठन चीन के लिए ऐसा मंच है जहाँ वह स्वयं को दक्षिण एशिया के प्रमुख संरक्षक (Primary Benefactor) के रूप में प्रस्तुत करता है और भारत के प्रभाव को सीमित करने का प्रयास करता है।
- उदाहरण के लिए: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पहल के अंतर्गत चीन ने पाकिस्तान–अफगानिस्तान और पाकिस्तान–बांग्लादेश त्रिपक्षीय संवाद (Trilaterals) स्थापित किए हैं, जिससे उसका रणनीतिक प्रभाव गहरा होता जा रहा है।
- पाकिस्तान के कूटनीतिक कदम: पाकिस्तान, SCO मंच का प्रयोग भारत विरोधी आख्यान का प्रसार करने और आतंकवाद विरोधी प्रयासों को रोकने के लिए करता है।
- उदाहरण के लिए: संगठन के स्पष्ट आतंकवाद-निरोधी एजेंडा के बावजूद, चीन के संरक्षण में पाकिस्तान को सीमा-पार आतंकवाद के लिए किसी कठोर आलोचना का सामना नहीं करना पड़ता।
- चीन के साथ आर्थिक भेद्यताएँ: भारत, दुर्लभ मृदा मैग्नेट्स (Rare Earth Magnets) और सुरंग-निर्माण उपकरणों जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में चीनी आयात पर निर्भर है।
- उदाहरण के लिए: दुर्लभ मृदा मैग्नेट्स पर बीजिंग के प्रतिबंध ने वर्ष2024 में भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग को बाधित कर दिया।
- दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (SAARC) का हाशियाकरण: सार्क (SAARC) की निष्क्रियता ने SCO को उस स्थान पर स्थापित कर दिया है, जहाँ पारंपरिक रूप से भारत प्रभावी रहा करता था।
- उदाहरण के लिए: मालदीव, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका जैसे देश सक्रिय रूप से SCO से जुड़े हुए हैं, वहीं चीन बांग्लादेश की सदस्यता का समर्थन कर रहा है, जिससे भारत का पारंपरिक क्षेत्रीय प्रभाव कमजोर होता जा रहा है।
- सीमित व्यापार लाभ: SCO मंच पर भारत के लिए बहुत सीमित व्यापारिक अवसर हैं, जबकि अमेरिकी बाजार कहीं अधिक लाभकारी सिद्ध होता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में रूस और चीन को भारत का निर्यात क्रमशः 5 बिलियन डॉलर और 15 बिलियन डॉलर था, जबकि अमेरिका को 88 बिलियन डॉलर था।
- अनसुलझे सीमा एवं सुरक्षा तनाव: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की सैन्य उपस्थिति भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है और यह द्विपक्षीय विश्वास बहाली को कमजोर करती है।
- उदाहरण के लिए: सीमा विवाद के समाधान की दिशा में कोई ठोस प्रगति न होने से SCO मंच पर भारत का प्रभाव सीमित बना रहता है।
भारत की सामरिक स्वायत्तता की रक्षा के लिए आगे की राह
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संतुलन को पुनर्जीवित करना: भारत को अपने परंपरागत साझेदारों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान (ASEAN) देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करना चाहिए। इससे SCO-केंद्रित निर्भरता को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत के प्रधानमंत्री द्वारा टोक्यो में प्रस्तावित पहलें रक्षा, तकनीकी सहयोग और व्यापार विविधीकरण पर केंद्रित हैं, जो भारत के लिए पूर्वी एशिया में एक सुदृढ़ संतुलन तैयार करती हैं।
- आतंकवाद निरोधक एजेंडे के लिए SCO का लाभ उठाना: भारत को SCO के मंच पर राज्य-प्रायोजित (State-sponsored) आतंकवाद के विरुद्ध बाध्यकारी तंत्र स्थापित करने के लिए निरंतर दबाव बनाना होगा।
- उदाहरण के लिए: भारत बार-बार SCO और संयुक्त राष्ट्र मंच पर पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित करने की माँग करता रहा है।
- ऊर्जा विविधीकरण को बढ़ावा देना: रूस पर तेल और गैस की अधिक निर्भरता को संतुलित करने हेतु भारत को खाड़ी देशों और अमेरिका के साथ ऊर्जा साझेदारी को और मजबूत बनाना होगा। इससे ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी और बाहरी दबाव घटेगा।
- क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार का विस्तार: भारत को मध्य एशिया और यूरेशिया तक पहुँच बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) और चाबहार बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट्स को गति देनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: चाबहार बंदरगाह विकास परियोजना भारत को पाकिस्तान को बायपास करते हुए मध्य एशिया तक सीधी पहुँच प्रदान करती है।
- रणनीतिक स्वायत्तता नीतियों को संस्थागत बनाना: भारत को घरेलू उत्पादन, दुर्लभ मृदा धातुओं (Rare Earths) के प्रसंस्करण और रक्षा-प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना होगा।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में घोषित उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ महत्त्वपूर्ण खनिजों और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भारत की क्षमता को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया कदम हैं।
निष्कर्ष
स्वायत्तता की रक्षा के लिए, भारत को SCO की व्यावहारिकता को जापान, आसियान और खाड़ी देशों के साथ मजबूत संबंधों के साथ संतुलित करना चाहिए, व्यापार और ऊर्जा में विविधता लानी चाहिए, PLI के माध्यम से प्रत्यास्थता बढ़ानी चाहिए और समावेशी विकास व क्षेत्रीय शांति के लिए वसुधैव कुटुम्बकम द्वारा निर्देशित INSTC का लाभ उठाना चाहिए।
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